*(कमलनाथ-विनायक फीचर्स)*
“अगर देश के किसी गाँव में किसी व्यक्ति को जातिसूचक शब्द कहकर अपमानित किया जाता है तो समझ लीजिए वहाँ आज़ादी नहीं पहुँची। वह गाँव आज़ाद नहीं है।” आज़ादी के कुछ वर्ष बाद देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल क़िले की प्राचीर से यह बात कही थी। और आज भी देश या प्रदेश के विकास का सबसे बड़ा पैमाना यही है कि किसी प्रदेश में दलितों और आदिवासियों की स्थिति कैसी है? कहीं उनके ऊपर अत्याचार तो नहीं हो रहे हैं? दुर्भाग्य से हम देखते हैं तो मध्य प्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल है जहाँ 20 वर्ष से भाजपा की सरकार है और जहाँ दलितों और आदिवासियों का सबसे अधिक उत्पीड़न हो रहा है।
इन अत्याचारों की मुख्य वजह यह है कि भारतीय जनता पार्टी का चरित्र ही दलित, आदिवासी और संविधान विरोधी है। एक तरफ़ संसद में भाजपा नेता और गृह मंत्री अमित शाह संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का अपमान करते हैं और दूसरी तरफ़ बीजेपी राज में दलितों को लाठियों से पीट-पीटकर मौत के घाट उतारा जा रहा है। पुलिस कस्टडी में दलित आदिवासियों की मौत हो रही हैं।
दलितों, आदिवासियों की कब्रगाह बना मध्यप्रदेश दलितों पर अत्याचार के मामले में तीसरे स्थान पर है। पिछले दिनों शिवपुरी जिले के इंदरगढ़ गांव का दिल दहला देने वाला वीडियो सामने आया, जहाँ दबंगों ने दलित नारद जाटव को पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया। मध्य प्रदेश के देवास जिले में एक दलित बेटे की हत्या कर दी गई। इछावर में दलितों को मंदिर जाने से रोका गया। दलितों को आतंकित करने वाली ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं लेकिन सरकार चुप्पी साधे है। सतवास में दलित की हत्या पर सरकार मौन है।
पिछले एक साल में प्रदेश में दलितों पर काफी अत्याचार हुए हैं। वह चाहे शिवपुरी की घटना हो या सागर की घटना हो। मध्यप्रदेश के सागर जिले के ग्राम बरोदिया नोनागिर में दलित युवती द्वारा छेड़छाड़ की शिकायत से गुस्साए गुंडों ने युवती के भाई नितिन अहिरवार की पिछले वर्ष अगस्त माह में हत्या कर दी थी। हत्या में बीजेपी नेताओं की संलिप्तता सामने आई थी। पीड़ित परिवार समझौते के लिये तैयार नहीं हुआ तो दो दिन पूर्व पीड़िता के चाचा राजेंद्र अहिरवार की भी हत्या कर दी गई। मंदसौर जिले के एक गांव में एक महिला का पीछा करने के आरोप में दलित व्यक्ति को चेहरा काला करके, गले में जूतों की माला डालकर घुमाया गया। इन घटनाओं के बाद एक बार फिर साबित हो गया था कि प्रदेश में दलित वर्ग सुरक्षित नहीं है। यह दोनों घटनाएं तो सिर्फ ऐसी थी जो सुर्खियों में ज्यादा रहीं लेकिन ऐसी न जाने हजारों घटनाएं हैं जो रोज दलितों से साथ घट रही हैं।
हम जानते हैं कि प्रदेश में दलित आदिवासियों की संख्या ज्यादा है। वे प्रदेश के बहुत बड़े क्षेत्र में निवासरत हैं। इन्हें भी आत्म सम्मान के साथ जीने का अधिकार है। यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह उन्हें सुरक्षा प्रदान करें। लेकिन रोज आदिवासियों के शोषण की घटनाओं से तो यही लगता है कि भाजपा सरकार इन्हें अपना वर्ग मानती ही नहीं है।
अगर हम नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखें तो प्रदेश में दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार के मामले में लगातार बढ़ोतरी हुई है। साल 2021 में प्रदेश में एससी/एसटी एक्ट के तहत 02 हज़ार 627 मामले दर्ज हुए थे। वहीं, दलितों पर अत्याचार के 07 हज़ार 214 मामले दर्ज किए गए।
ऐसे कई मामले सामने आए जो देश भर में चर्चा का विषय बने। इनमें सबसे ज़्यादा सीधी के पेशाब कांड को लोग जानते हैं। एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें भाजपा कार्यकर्ता प्रवेश शुक्ला एक आदिवासी व्यक्ति पर पेशाब कर रहा था। दलितों पर अत्याचार के कई दूसरे मामले भी सामने आए जब मध्यप्रदेश में दलित और आदिवासियों के साथ अत्याचार किया गया था। दलितों और आदिवासियों के लिए काम करने वाले लोगों का मानना है कि इस तरह से यदि इनकी अस्मिता और अधिकारों के साथ खिलवाड़ किया जाता रहा तो इनकी स्थिति और बदतर हो जाएगी। मध्य प्रदेश पहले ही महिला अत्याचार के मामलों के कारण शर्मसार होता रहा है।
*एसटी क्राइम रेट में एनसीआरबी की रिपोर्ट*
एनसीआरबी के आंकड़ों की बात करें तो साल 2022 में आदिवासियों के ऊपर हुए अत्याचारों के 2979 मामले सामने आए जो कि पिछले साल के क्राइम के मुकाबले में 13 फीसदी अधिक थे। इसमें तीन साल से प्रदेश टॉप पर बना हुआ है। 2,521 मामलों के साथ राजस्थान दूसरे और 742 मामलों के साथ महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है। इन तीन सालों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। विजयपुर में विधानसभा उपचुनाव के दौरान आदिवासियों के घर जलाए गए। प्रदेश में कानून व्यवस्था नाम की चीज बची ही नहीं है। राज्य में जो हत्याएं और यातनाएं हो रही हैं, उससे भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बार-बार बेनकाब हो रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े कहते हैं कि पिछले तीन से चार साल में पांच लाख दलित और आदिवासी बहनें गायब हुई हैं।
*देशभर में दर्ज हुए 10 हजार से अधिक मामले*
देश भर में साल 2022 में एसटी के खिलाफ अपराध के कम से कम 10,064 मामले दर्ज किए गए, जो 14.3% की वार्षिक वृद्धि है। इसके साथ ही प्रदेश में इस केटेगरी में क्राइम रेश्यो साल 2021 में 8.4 फीसदी से बढ़कर साल 2022 में 9.6 हो गया है।
एससी अपराध की बात की जाए तो सामान्य चोट के 1607 मामलें और गंभीर चोट के 52 तो वहीं, हत्या के 61 मामले सामने आए है। देश का दुर्भाग्य है कि दलितों के साथ अपराध के मामलों में उच्च स्थान पर है।
यह स्थिति तब है, जब प्रदेश में भाजपा पिछले 20 वर्षों से सत्ता में है। भाजपा का शासन दलित-विरोधी नीतियों और संविधान-विरोधी सोच का प्रत्यक्ष उदाहरण है। अत्याचारियों को सजा देने के बजाय उन्हें राजनीतिक संरक्षण दिया जाता है। यह लड़ाई अब केवल अन्याय के खिलाफ नहीं, बल्कि दलितों की गरिमा और उनके संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए है। पूरी कांग्रेस पार्टी इन अत्याचारों के खिलाफ मजबूती से खड़ी है और हर दलित भाई-बहन को न्याय दिलाने के लिए हर संभव संघर्ष करेगी। न्याय की इस लड़ाई में कांग्रेस एक कदम भी पीछे नहीं हटेगी।इन सब घटनाओं को लेकर कांग्रेस द्वारा संविधान की रक्षा के लिए 25 जनवरी 2025 को महू में ‘जय भीम-जय संविधान, जय बापू’ आयोजन किया जा रहा है। इसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, सभी सीडब्ल्यूसी मेंबर समेत पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल होंगे।
दुर्भाग्य की बात है मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव दलितों पर होने वाले अत्याचार और शोषण को लेकर कुछ भी कहने से बचते हैं। वे दलितों की सुरक्षा करना ही नहीं चाहते। प्रदेश का गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास है। मध्यप्रदेश में कानून व्यवस्था लचर होने से दलित आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। यह मुख्यमंत्री का दायित्व है कि ऐसे संवेदनशील मामलों पर तुरंत संज्ञान लेना चाहिए ताकि आज प्रदेश में इस वर्ग में जो दहशत और दवाब का माहौल पनप रहा है उस पर अंकुश लग सके। (विनायक फीचर्स) *(लेखक, मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ नेता हैं)*
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