महातीर्थ प्रयागराज : जहाँ सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने सृष्टि का प्रथम यज्ञ किया था सम्पन्न

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+ यहाँ माधव रूप में विराजित भगवान विष्णु स्वयम् हैं इस पावन नगरी के अधिष्ठाता
+ सनातन के महान ऋषियों की तपोभूमि व ज्ञानभूमि रही है यह तीर्थ नगरी
+ अनेकानेक पौराणिक मन्दिरों एवं अलौकिक स्थलों की आभा से आलोकित है सम्पूर्ण तीर्थ क्षेत्र
+ मोक्षदायी माना गया है यहाँ अविरल त्रिवेणी संगम पर स्नान
+ ऐतिहासिक लाक्षागृह यहाँ पाण्डवकालीन राज व्यवस्था का है जीवन्त प्रमाण
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प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश ), तीर्थों का भी तीर्थ अर्थात महातीर्थ प्रयाग जहाँ अपने गौरवशाली अतीत के लिए जग प्रसिद्ध है वहीं वर्तमान में सनातन धर्म, संस्कृति एवं ज्ञान के प्रमुखतम केन्द्र के रूप में भी जाना जाता है। इस तीर्थ नगरी का धार्मिक, सास्कृतिक व आध्यात्मिक महत्व इस ऋषि वाक्य से समझा जा सकता है कि–
” प्रयागस्य प्रवेशाद्वै पापं नश्यतिः तत्क्षणात ” । अर्थात प्रयाग तीर्थ की पुण्य भूमि में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्मों का नाश हो जाता है।
सनातन मान्यतानुसार यह माना गया है कि सृष्टि कर्ता ब्रह्मा जी ने सृष्टि का पहला यज्ञ इसी पावन क्षेत्र में सम्पन्न किया था । सृष्टि रचना का सारा कार्य पूर्ण होने के बाद सृष्टिकर्ता ने इसी पवित्र नगरी को प्रथम यज्ञानुष्ठान के लिए सर्वोत्तम मानकर यज्ञ पूर्ण किया था । इसी प्रथम यज्ञ के ” प्र ” और ” याग ” अर्थात यज से मिलकर यह तीर्थ क्षेत्र प्रयाग कहलाया । भगवान विष्णु इस पावन तीर्थ नगरी के स्वयम अधिष्ठाता हैं, जो आज भी माधव रूप में यहाँ विराजमान हैं। भगवान विष्णु के यहाँ बारह स्वरूप अनन्त काल से पूजित, वन्दित एवं परम सुशोभित हैं, जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है। यह पवित्र भूमि जहाँ सोम, वरुण तथा प्रजापति की जन्म स्थली कही जाती है, वहीं सनातन धर्म परम्परा के महान आधार ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा तथा ऋषि पन्ना की तपस्थली व ज्ञानस्थली थी। वैदिक धर्म ग्रन्थों के अनुसार ऋषि भारद्वाज यहाँ 5000 ई.पू . निवास करते हुए जप-तप, पठन-पाठन में रत रहते थे । उनके आश्रम में तब 10,000 से भी अधिक शिष्य गण शिक्षा ग्रहण करते थे। ऋषि भारद्वाज को प्राचीन विश्व का महानतम दार्शनिक माना गया है।
बड़े भूभाग में विस्तारित यह प्रयाग तीर्थ क्षेत्र सदियों से ही सनातन देवी-देवताओं के पौराणिक मन्दिरों तथा उनके धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक समृद्धि के लिए जाने जाते हैं। वर्तमान प्रयागराज जनपद में आज भी यत्र-तत्र विद्यमान ऐसे अनेकों प्राचीन मन्दिरों तथा धर्म स्थलों की अलौकिक आभा से यह पुण्य क्षेत्र सदैव सर्वत्र आलोकित है ।

 

तीर्थराज प्रयाग का नाम स्मरण होते ही यहाँ पवित्र त्रिवेणी संगम का अदभुत अलौकिक दृष्य आंखों के सामने स्वतः दृष्यमान हो उठता है।

प्रयाग तीर्थ सनातनी हिन्दुओं के लिए पवित्रतम नही– गंगा, यमुना व सरस्वती नदी के संगम तट पर स्थित है । इसीलिए इस पवित्र संगम स्थल को त्रिवेणी संगम कहा गया है। यद्यपि इस संगम तट पर गंगा नही का मटमैला जल व यमुना नदी का श्याम वर्ण जल ही आपस में मिलते हुए देखे जाते हैं, परन्तु हिन्दू धर्म ग्रन्थों के मुताबिक सरस्वती नदी यहाँ पर गुप्त रूप में गंगा जी और यमुना जी के जल में प्रवाहित रहती है। सनातन की ये तीन नदियो की धाराएं ईड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ी के रूप मे भी जानी जाती हैं।
त्रिवेणी के इस संगम स्थल पर प्रत्येक बारह वर्ष में महाकुम्भ मेले का भव्य आयोजन होता है । इसके अलावा भारतवर्ष के तीन अन्य तीर्थों जैसे हरिद्वार, उज्जैन व नाशिक में भी प्रत्येक बारह वर्षों के अन्तराल में महाकुम्भ का आयोजन होता है। त्रिवेणी संगम पर अविरल बहती नदियों की मन मोहक धाराएं श्रद्धालुओं को अनायास ही अलौकिक आनन्द की अनुभूति करा देती हैं । शास्त्रों में कहा गया है कि त्रिवेणी संगम पर पवित्र स्नान करने से मोक्ष स्वतः सुलभ हो जाता है। अर्थात यहाँ किया गया स्नान निःसन्देह मोक्षदायी होता है।
तीर्थराज प्रयाग क्षेत्र में जहाँ अनेकानेक धर्म स्थलों, मन्दिरों तथा ऐतिहासिक धरोहरों के लिए देश – दुनियां में जाना जाता है, वहीं इस क्षेत्र में बहुत से भ्रमण स्थल भी तीर्थ यात्रियों व श्रद्धालुओ के लिए आकर्षण के केन्द्र रहे हैं। त्रिवेणी संगम पर स्नान करने के पश्चात श्रद्धालु यहां परम सुशोभित मन्दिरो के दर्शनार्थ निकलते हैं। यहाँ जगह – जगह अनेक ऐतिहासिक गौरव के प्रमाण भी मिलते हैं, जिनमें पाण्डवकालीन इतिहास से जुड़े लाक्षागृह विशेष महत्व रखता है।
त्रिवेणी संगम के समीप ही वर्तमान झूंसी क्षेत्र है, जहाँ कभी चंद्रवंशी राजा पुरुरव का राज्य था। समीपवर्ती कौशाम्बी क्षेत्र वत्स और मौर्य साम्राज्य के दौरान अपनी समृद्धि व खुशहाली के लिए जाना जाता था। 643 ई में चीनी यात्री ह्वेन सांग ने अपने भारत भ्रमण के दौरान इस राज्य की यात्रा भी की थी। अपने प्रयाग प्रवास के दौरान उसने यहाँ की शासन व्यवस्था, समृद्धि, धार्मिक आस्था, जन जीवन, परम्परा व परस्पर मधुर सम्बन्धो को लेकर अनेक संग्रहों का लेखन किया । इतना ही नहीं प्रयाग के धार्मिक वैभव का भी जीभर गुणगान किया था।
प्रयागराज उत्तर प्रदेश के बड़े जनपदों में से एक है। पवित्र गंगा, यमुना व गुप्त सरस्वती नदियों के संगम तट पर बसे होने के कारण सनातनी हिन्दुओ के लिए इस तीर्थ क्षेत का विशेष महत्व है । ऐतिहासिक साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि प्रयाग, जो कि वर्तमान में प्रयागराज कहा जाता है, में ही
आर्य लोगों की बस्तियां बहुतायत में स्थापित थी। इस दृष्टि से भी प्रयाग नगरी भारत के महान ऐतिहासिक व पौराणिक नगरो में से एक मानी जाती है।

प्रयागराज में त्रिवेणी संगम का दर्शन , पवित्र स्नान तत्पश्चात विधिवत पूजन- वन्दन का सनातनी हिन्दू समाज के लिए एक अलग ही महत्व है। समूचे तीर्थ क्षेत्र को लेकर अनेक ऐतिहासिक घटनाएं, पौराणिक कथाए व जन श्रुतियां भी प्रचलित रही हैं। यहाँ के धार्मिक भ्रमण स्थलों में एक अत्यन्त रमणीक स्थल है श्रृंगवेरपुर । यह प्रयागराज से तकरीबन 45 किमी दूर लखनऊ रोड पर स्थित है। लोक कथाओं में वर्णित है कि भगवान राम ने वनवास जाते समय सीता जी और लक्ष्मण के साथ इसी स्थान पर गंगा नदी को पार किया था। रामायण में इस स्थान का वर्णन निशादराज यानी मछुवारों का राजा के राज्य की राजधानी के रूप में किया गया है। प्रसंग आता है कि भगवान श्री राम, सीता जी व लक्ष्मण को एक रात्रि यहीं पर रुकना पड़ा था, क्योंकि मांझी ने गंगा पार कराने से इंकार कर दिया था। दूसरे दिन निशादराज स्वयं वहाँ पर उपस्थित हुए लेकिन उन्होंने भी शर्त रख दी कि भगवान राम उनको अपने चरणों को धोने की अनुमति दे दें तो समस्या हल हो जायेगी। इस पर राम ने निशादराज को इसकी अनुमति दे दी । निशादराज ने गंगा जल से प्रभु राम के चरण धोये फिर उस जल को पी कर अपनी गहरी श्रद्धा का उदाहरण प्रस्तुत किया। वर्तमान इस स्थल को रामचुरा नाम से जाना जाता है, जहाँ पर एक छोटा मन्दिर भी स्थापित है। यहाँ का वातावरण अत्यधिक रमणीक व शान्त है। आगन्तुक यहाँ पहुंच कर परम आनन्द की अनुभूति करते हैं।
श्रृंगवेरपुर में उत्खनन कार्यों के दौरान श्रृगी ऋषि का एक मन्दिर सामने आया है। माना जाता है कि श्रृंगी ऋषि के नाम से ही इस स्थान को श्रृंगवेरपुर कहा जाता है।
प्रयागराज का इस्कॉन मन्दिर भी काफी आकर्षक व मन मोहक है। यमुना नदी के किनारे स्थित मन्दिर परिसर में एक गौशाला व एक धर्मशाला भी बने हुए हैं। यहाँ पर वर्ष 2003 में राधा वेणी माधव देवताओं को प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापित किया गया था। भारी संख्या में भक्तगण व श्रद्धालु यहाँ दर्शन, पूजन व ध्यान के लिए पहुंचते हैं।
प्रयागराज में ही श्री अखिलेश्वर महादेव मन्दिर काफी प्रसिद्ध है। यह मन्दिर चिनमाया मिशन के तहत घाट रोड के समीप लगभग 500 वर्ग फुट में निर्मित है। इस महादेव मन्दिर की नींव स्वामी तेजोमयानन्द जी और चिन्मय मिशन के स्वामी सुबोधानन्द जी द्वारा रखी गयी थी।
ऋग्वेद काल से ही प्रयाग तीर्थ क्षेत्र में अनेक भव्य मन्दिर निर्मित थे, जिनका गौरवशाली इतिहास रहा है। यह भूमि माधो मन्दिरों की भूमि के रूप में भी जानी जाती है। यहाँ 12 माधो मन्दिर विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं । इनमें साहेब माधो मन्दिर चातनागा बाग में स्थित है। माना जाता है कि वेद व्यास द्वारा शिवपुराण की रचना इसी स्थान पर की थी। अद्वेनी माधो मन्दिर दारागंज में स्थित है, जहाँ भगवान लक्ष्मी नारायण जी की भव्य मूर्ति स्थापित है।
दर्वेश्वरनाथ मन्दिर में भगवान विष्णु की एक मूर्ति स्थापित है, जिन्हें मनोहर माधो कहा जाता है। इसी तरह अग्निकोट – अरैल में चारा माधो, छेओकी रेलवे स्टेशन के समीप गदा माधो मन्दिर है तो देवरिया गांव में आदम माधो, खुलदावाद से २ किमी दूर अनंत माधो, द्रोपदी घाट के समीप बिन्दु माधो जबकि नागबसुकी के पास अशी माधो मन्दिर स्थित है।
इसी प्रकार सन्ध्या वट के नीचे संकट हरण माधो, अरैल में विष्णुयाध मन्दिर और अक्षय वट के निकट वट माधो मन्दिर निर्मित हैं। इन भव्य मन्दिरों में सनातन संस्कृति का महान इतिहास समाहित है।
वर्तमान कोलोनगंज क्षेत्र में भारद्वाज आश्रम स्थित भारद्वाजेश्वर महादेव मंदिर भी भक्तों की आस्था का एक प्रमुख केन्द्र है। इसके अलावा यहाँ बड़ी संख्या में भव्य मूर्तियां स्थापित हैं, जिनमें राम, लक्ष्मण, महिषासुर मर्दिनी, शेषनाग, सूर्य तथा नरवराह की मूर्तियां प्रमुख हैं। महर्षि भारद्वाज आयुर्वेद के प्रथम संरक्षक माने जाते हैं। वर्तमान में यह आश्रम आनन्द भवन के पास स्थित है।
प्रसिद्ध नागवासुकी मन्दिर संगम के उत्तर में गंगा तट पर दारागंज के पास स्थित है, जहाँ नागराज, गणेश, पार्वती व भीष्म पितामह की मूर्तियां हैं । परिसर में ही एक शिव मन्दिर भी है, जहाँ नाग पंचमी पर एक मेला आयोजित होता है।
मिंटो पार्क के पास यमुना तट पर मन कामेश्वर मन्दिर स्थित है, जहाँ काले पत्थर का शिवलिंग और गणेश व नन्दी की प्रतिमाएं स्थापित हैं। 80 फिट ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह शिवलिंग सुरम्य वातावरण के बीच बरबस ही मन को मोह लेता है। कहा जाता है कि यह शिवलिंग भगवान राम द्वारा स्थापित किया गया था। यहीं फाफामऊ सोरों तहसील में पत्थर निर्मित पड़ला महादेव मन्दिर है । शिवरात्रि पर यहाँ विशाल मेला लगता है।
प्रयाग के ही मीरपुर क्षेत्र में 108 फुट ऊंचा ललिता देवी मन्दिर स्थित है, जिसे 51 शक्तिपीठो में से एक माना जाता है। मन्दिर परिसर में एक प्राचीन पीपल वृक्ष और बहुत सी मूर्तियां स्थापित हैं। पाण्डवकालीन प्रसिद्ध लाक्षागृह गंगा तट पर हंडिया से 6 किमी दूर स्थित है । वहीं आलोपी बाग में आलोपी देवी का मन्दिर है जिसे शक्तिपीठ का सम्मान प्राप्त है। इसी प्रकार प्रयाग के दक्षिण की तरफ यमुना तट पर तक्षकेश्वर नाथ महादेव मंदिर है । पास में ही एक तक्षक कुण्ड है । एक कथा प्रचलित है कि तक्षक नागिन ने भगवान कृष्ण के पीछा करने पर यहीं आश्रय लिया था। यहा बहुत से शिवलिंग तथा हनुमान मूर्ति समेत अनेक मूर्तियां हैं ।
समुद्र कूप भी एक प्रसिद्ध धर्म स्थल है जो गंगा तट पर एक ऊंचे टीले पर स्थित है। राजा समुद्र गुप्त द्वारा निर्मित होने के कारण ही इसे समुद्र कूप कहा जाता है।
मन्दिरों की लम्बी श्रृंखला में सोमेश्वर मंदिर की महिमा भी न्यारी है । यमुना तट पर किले के भीतर यह भूमिगत निर्मित है । यहाँ एक शिवलिंग के साथ ही लगभग 4 दर्जन भव्य मूर्तियां भी हैं।

इसी प्रकार प्रयागराज से लगभग 70 किमी उत्तर पश्चिम प्रसिद्ध पौराणिक शीतला माता का मन्दिर है। यही पास ही महान सत मलूकदास की समाधि है और एक आश्रम भी है । मन्दिर के पास में ही एक तालाब बना हुआ है। इसके साथ ही प्रयाग के उत्तर दिशा में 50 किमी दूर प्रभास गिरि क्षेत्र है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने तीर लगने के बाद इस नश्वर देह का यहीं पर त्याग किया था। यह क्षेत्र भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है।
प्रयागराज के उत्तरी ओर गगा तट पर शिवकुटी मन्दिर व आश्रम है । यहीं लक्ष्मी नारायण मन्दिर तथा एक भव्य दुर्गा मन्दिर भी है, जहाँ श्रावण मास में विशाल मेले का आयोजन होता है। नगर के सूरजकुड़ क्षेत्र में प्राचीन कमौरी नाथ महादेव मन्दिर स्थित है। यहाँ पर पचमुखी महादेव की एक ,सुन्दर मूर्ति भी है। शहर के बीच में ही प्रसिद्ध हटकेश्वर नाथ मन्दिर है । इसके साथ ही कृष्णा परनामी भजन मन्दिर, सुजावन देव मन्दिर, बरगद घाट शिव मन्दिर, सिद्धेश्वरी पीठ , शंकर विमान मंडपम, शकर मन्दिर महावन, वेणी माधव मन्दिर, दुर्वासा आश्रम, तथा अमिलिया शीतला देवी मन्दिर समेत सैकड़ों अन्यान्य मन्दिर यहाँ स्थित हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि प्रयागराज क्षेत्र की महिमा यहा कण – कण में महसूस की जा सकती है।
मदन मधुकर जलाल

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