शतरंज की बिसात पर महेंद्र का हुनर बोलता है

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शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति अपने हौसले के दम पर स्वयं में निखार लाकर प्रगति के पथ पर निरंतर आगे बढ़ता जाता है ।
“जहां चाह वहां राह” इस वाक्य को चरितार्थ किया है मूकबधिर शतरंज खिलाड़ी महेंद्र पाल ने। शारीरिक असमर्थता और चुनौतियों से भरपूर संघर्ष करने के बावजूद आज उनका मनोबल इतना ऊंचा है कि पंडरिया जैसे छोटे कस्बे से शतरंज की बिसात पर अपना जौहर दिखाते हुए अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। मैसूर में आयोजित 25 वीं राष्ट्रीय बधिर शतरंज प्रतियोगिता में चौथा स्थान प्राप्त कर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा हेतु भारतीय टीम में जगह बनाने में शानदार कामयाबी हासिल की है।
*पारिवारिक पृष्ठभूमि*
महेंद्र के साथ घर पर माता – पिता व भाई – बहन रहते हैं। महेंद्र के दो छोटे – छोटे बच्चे है। पिता जी का गांव में ही एक छोटी सी किराने की दुकान है।जहां महेंद्र दुकान मे बैठकर अपने पिताजी के साथ उनके कामों में हाथ बटाते हैं।
*शतरंज के प्रति रुझान*
महेंद्र पाल जब कक्षा चौथी में पढ़ते थे उसी समय से स्कूल में थोड़ा बहुत शतरंज खेलना सीख लिया था। धीरे – धीरे उनका रुझान इसमें बढ़ता गया । महेंद्र पंडरिया गांव से पांच किलोमीटर दूर तखतपुर शतरंज क्लब में सायकल या फिर किसी से बाइक में लिफ्ट मांग कर आते थे खेलने। शतरंज की बारीकियां इन्होंने तखतपुर के शतरंज क्लब से सीखी । महेंद्र रोजाना 8 से 10 घंटे क्लब में ही अभ्यास किया करते थे ।
*आर्थिक तंगी के बावजूद सफलता के शिखर पर*
40 वर्षीय शतरंज खिलाड़ी महेंद्र पाल की माली हालत ठीक नहीं है। महेंद्र ने कक्षा 8 वीं तक की पढ़ाई मूकबधिर विद्यालय तिफरा (बिलासपुर) से की है। आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं होने के कारण नियमित रूप से पढ़ाई नहीं कर सके। 10 वीं कक्षा की परीक्षा इन्होंने ओपन बोर्ड से उत्तीर्ण की । शहर से बाहर शतरंज खेलने के लिए आने – जाने हेतु उनके पास पैसे नहीं होते थे । उनके खेल को देखकर परिवार वालों ने और दोस्तों ने आर्थिक मदद की और वे राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में शामिल हो सके। महेंद्र ने आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद शतरंज के प्रति अपनी अभिरुचि को कम होने नही दिया। शतरंज खेल के प्रति उनकी लगन और मेहनत का फल है जिसके चलते आज वे देश – प्रदेश में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना पाए हैं।

*दिग्गज खिलाड़ियों को दे चुके है मात*
शतरंज की बिसात पर महेंद्र के दौड़ते है हाथी और घोड़े। प्यादे की चाल हो या वजीर की। घोड़े की टेढ़ी चाल हो या ऊंट की तिरछी। प्रतिद्वंदी के लिए इनके दांव – पेंच को समझ पाना टेढ़ी खीर है। जब शतरंज की बिसात बिछती है तो अच्छे – अच्छे दिग्गज खिलाड़ी इनकी प्रतिभा के सामने घुटने टेक देते हैं।

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*शतरंज सम्राट की जादुई बाजी देखने से बढ़ा मानसिक मनोबल*

महेंद्र पाल के कोच रामकुमार ठाकुर ने बताया कि स्पर्धा के दौरान एक मैच हार जाने के बाद उनका आत्मबल डगमगा गया था तब मैंने हेमंत खुटे की शतरंज की जादुई बाजी उन्हें बोर्ड पर रात में खेलकर दिखायी थी। जादुई बाजी देखकर वे काफी प्रफुल्लित हुए और प्रतियोगिता की आखिरी बाजी उन्होंने भी जादुई अंदाज में खेलते हुए जीत ली और इस तरह से मैसूर में आयोजित 25 वीं राष्ट्रीय बधिर शतरंज स्पर्धा में चौथा स्थान पाकर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा हेतु भारतीय टीम में जगह बनाई।
*शतरंज से जुड़ी प्रमुख उपलब्धियां*
14 वीं, 15 वीं 16 वीं, 17 वीं ,
18 वीं व 25 वीं ऑल इंडिया डेफ नेशनल चेस चैंपियनशिप में प्रदेश का प्रतिनिधित्व।
लगभग 15 से 20 बार राज्य स्तर पर खुली स्पर्धा में भागीदारी ।
1600 की इलो रेटिंग ।
*दिव्यांग खिलाड़ी के हुनर से बढ़ा छत्तीसगढ़ का मान – सम्मान*
महेंद्र बोल – सुन नहीं सकते इसके बावजूद उनका शतरंज की बिसात पर हुनर कम नहीं है। वह छत्तीसगढ़ के पहले मूकबधिर खिलाड़ी है जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश का मान बढ़ाया है।
इससे पहले वर्ष 2018 में इंग्लैंड व वर्ष 2019 में इटली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय शतरंज स्पर्धा में महेंद्र देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

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(हेमन्त खुटे-विनायक फीचर्स)

 

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