चित्रेश्वर महादेव की महिमां अपरम्पार : खनवाल

ख़बर शेयर करें

 

 

पूर्व दर्जा राज्य मन्त्री राजेन्द्र खनवाल ने कहा कि देवभूमि उत्तराखण्ड अनादिकाल से ही ऋषि-मुनियों की आराधना व तपस्या का केन्द्र रहा है। बड़े-बड़े मुनियों ने यहां की पावन भूमि में स्पर्श पाकर एक अलौकिक व दिव्य शांति की प्राप्ति की है। यहां की कंदराओं में एकांकी अनुभव प्राप्त कर संसार में ज्ञान का प्रकाश बिखेरा है। उत्तराखण्ड के तमाम ऐतिहासिक महत्व वाले देवालय, पौराणिक मंदिर व प्राचीन गुफाएं इन सब बातों के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। कल-कल धुन में नृत्य करती गंगा की अविरल बहती धाराएं, घने वन, इन सभी को देखकर ऐसा मालूम पड़ता है मानो आत्मा दिव्य लोक में विचरण कर रही हो। यहां की पवित्र व पावन भूमि में शक्तिपीठ एवं शिवालयों के अलावा पौराणिक आस्थाओं को जोड़े हुए ग्राम देवताओं के मंदिरों में आज भी बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।

उन्होनें कहा कि यहां पधारने वाले पर्यटक तीर्थयात्री यहां की अलौकिक महिमा से अविभूत होकर मन में अमिट छाप लेकर लौटते हैं। एक ऐसी अमिट छाप, जो आजीवन निर्मलता का प्रतीक बनकर मानव के मस्तिष्क पटल पर छा जाती है।
श्री खनवाल ने कहा कि रानीबाग के चित्रशिला घाट में, जहां पहुंचकर हर पर्यटक, श्रद्धालु, तीर्थयात्री सहज ही कह उठता है उत्तराखण्ड तो वास्तव में देवभूमि है, जिस भूमि को हमारे देश के ऋषि-मुनियों ने अपनी तपस्या से तृप्त कर चेतनाओं की तरंगों से सींचा है, आज वह भूमि संसार को आध्यात्मिकता का पाठ पढ़ा रही है। उन्होनें कहा देवभूमि उत्तराखण्ड के मानस खण्ड कुमायूं के प्रवेश द्वार रानीबाग में स्थित चित्रशिला घाट एक ऐसा दिव्य अनुपम स्थल है जो अनेक रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए है। पुराणों में चित्रशिला घाट का सुन्दर वर्णन देखने को मिलता है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर कत्यूर वंश की राजमाता देवी जियारानी ने भगवान शिव की घोर तपस्या व आराधना की। यहां जियारानी की पौराणिक गुफा है। कहते हैं सुरंगनुमा एक गुफा से हरिद्वार तक का मार्ग जाता है। किंवंदती है कि एक बार स्नान करने के पश्चात जब जियारानी अपने बालों को सुखा रही थी तब वहां से गुजरते दानवों का दिल जियारानी को देखकर मोहित हो गया व रानी को पाने की लालसा से उसके पीछे लग गये। शिव कृपा व आशीर्वाद से रानी इस गुफा से सुरक्षित हरिद्वार निकल गयी। जियारानी का घाघरा प्रतीक चिन्ह के रूप में आज भी यहां स्थित है। जियारानी की कहानी उत्तराखण्ड के इतिहास में काफी पौराणिक है।

यह भी पढ़ें 👉  ईश्वर का अनुपम उपहार हैं मध्यप्रदेश की नदियां

गार्गी (गौला) नदी, जो चित्रेश्वर महादेव के निचले भाग से होकर बहती है, पुराणों में इस सम्बन्ध में वर्णन आता है कि गर्ग मुनि की तपस्या के प्रताप से बहती इस नदी में सात धराओं का संगम है। स्कंद पुराण के मानस खण्ड के अनुसार भीम सरोवर से निकली पुण्य भद्रा में गार्गी संगम, कमल भद्रा संगम, सुभद्रा संगम, वेणुभद्रा संगम, चन्द्रभद्रा संगम, शेष भद्रा संगम हैं, जिसे चित्रशिला की पावन गंगा के नाम से पुकारा जाता है।

यह भी पढ़ें 👉  अयोध्या के इस कीर्तिशाली राजा की कथा के श्रवण से होता है पितरों का उद्वार, भू लोक में ऐसा दुर्लभ तीर्थ सिर्फ और सिर्फ उत्तराखण्ड में

उन्होंने बताया चित्रशिला घाट में विभिन्न पर्वों पर मेले लगते हैं। सबसे बड़ा मेला मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित होता है। इसके अलावा शिवरात्रि, पूर्णिमा, कार्तिक, रामनवमी, दुर्गानवमी और गंगा दशहरा के अवसर पर मेला लगता है।

यह भी पढ़ें 👉  गंगापुर आवास-विकास स्थित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर के महंत ने की  "सत्य साधक गुरुजी " के साथ धर्म- चर्चा

ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व वाले इस घाट में दाह संस्कार भी किया जाता है। यह तीर्थ स्थल जनपद नैनीताल के हल्द्वानी शहर से 8 व काठगोदाम से 2 किमी. की दूरी पर स्थित है श्री खनवाल ने कहा कि चित्रशिला का पौराणिक महत्व प्राचीन काल से परम पूजनीय है इस तीर्थ स्थल के विकास के लिए सरकार को विशेष प्रयास करनें चाहिए

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad