माँ भद्रकाली प्रकटोत्सव दो जून को,श्रीराम व हनुमान के मिलन का पर्व, देश भर के भद्रकाली मदिरों में होगा माँ का विशेष पूजन

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माँ भद्रकाली एकादशी श्रीराम व हनुमान के मिलन का पर्व -/ ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को माता भद्रकाली प्रकट हुई थी । यह पावन दिवस प्रभु श्री राम व श्री हनुमान जी के मिलन के रूप में भी मनाया जाता है।
इसलिए ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है उसके व्रत की महिमा और व्रत का फल अमोघ बताया गया है। माँ भद्रकाली को सर्मर्पित यह व्रत अपार धन व यश की प्राप्ति कराता है। साथ ही माँ भद्रकाली ,श्री राम व श्री हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने का यह पावन अवसर अपनें आप में अदितीय व अतुलनीय है।
रुद्रावतार हनुमान जी की श्रीराम भक्ति की महिमां को शब्दों में नही समेटा जा सकता है। श्रीराम व हनुमानजी का सम्बध अभेद है। दोनों में कोई भेद नहीं है।एक शिव है दूसरे राम है राम और शिव में कैसा भेद लेकिन लीला वस समय-समय पर भगवान शंकर भांति भांति रूपों में अवतरित होकर लीला करते हैं ऐसी ही एक लीला श्री राम और हनुमान के मिलन की है इस लीला का पावन दिन भद्रकाली एकादशी मानी जाती है शिव लीला के अनुसार राम हनुमान के बिना हनुमान राम के बिना पूर्ण नहीं है इनकी पूर्णता का मिलन ही भद्रकाली जयंती है
श्री राम व श्री हनुमान जी की के पावन मिलन की बेला का प्रसंग रामायण में बड़े ही विस्तार के साथ मिलता है। सीता हरण के पश्चात्त जब प्रभु श्री राम और श्री लक्ष्मण जी माता सीता के वियोग में उन्हें ढूढते हुए वन वन भटक रहे थे। तब वानरराज बाली व उसका भाई सुग्रीव एक दूसरे के कट्टर शत्रु बन चुके थे।
प्राण बचाकर सुग्रीव ऋष्यमूक पर्वत की एक गुफा में छिपे हुए थे। हनुमान जी सुग्रीव की रक्षा के लिए सदैव उनके साथ इस पर्वत पर रहते थे ।
माता सीता को खोजते हुए जब श्रीराम व लक्ष्मण जी इस पर्वत के निकट पहुंचे तो
आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥
भावार्थ : श्री रघुनाथजी फिर आगे चले। ऋष्यमूक पर्वत निकट आ गया। वहां (ऋष्यमूक पर्वत पर) मंत्रियों सहित सुग्रीव रहते थे। अतुलनीय बल की सीमा श्री रामचंद्रजी और लक्ष्मणजी को आते देखकर- भयभित हो गए॥1॥- रामचरित मानस (किष्किंधा कांड)
जब सुग्रीव ने राम और लक्ष्मण को देखा तो वह भयग्रस्त हो गया। वह भागते हुए हनुमान के पास गया और कहने लगा कि हमारे प्राण संकट में हैं सुग्रीव को शंका थी कि यह दोनों बाली के द्वारा भेजे गए मेरे शत्रु हैं जो मेरे प्राणों का हरण करने के लिए यहां आ रहे हैं सुग्रीव को भयभीत देखकर हनुमान जी ने उन्हें निश्चिंत रहने का आश्वासन दिया ।
सुग्रीव ने हनुमानजी से कहा कि तुम ब्रहामण का रूप धारण करके उनके समक्ष जाओ और उसके हृदय की बात जानकर मुझे इशारे से बताओ। यदि वे बाली के भेजे हुए मेरे शत्रु हैं तो मैं तुरंत ही यहां से प्राण बचाकर कहीं और भाग जाऊंगा।

सुग्रीव को अभय प्रदान करके हनुमान जी ब्राह्मण का रूप धारणकरके वहां गए और मस्तक नवाकर विनम्रता से राम और लक्ष्मण से पूछने लगे। हे वीर! सांवले और गोरे शरीर वाले आप कौन हैं, जो क्षत्रिय के रूप में वन में फिर रहे हैं? हे स्वामी! कठोर भूमि पर कोमल चरणों से चलने वाले आप किस कारण वन में विचर रहे हैं?

हनुमान ने आगे कहा- मन को हरण करने वाले आपके सुंदर, कोमल अंग हैं और आप वन की दुःसह धूप और वायु को सह रहे हैं। क्या आप ब्रह्मा, विष्णु, महेश- इन तीन देवताओं में से कोई हैं या आप दोनों नर और नारायण हैं?

श्रीरामचंद्रजी ने कहा- हम कोसलराज दशरथजी के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन आए हैं। हमारे राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। हमारे साथ सुंदर सुकुमारी स्त्री थी। यहां (वन में) राक्षस ने मेरी पत्नी जानकी को हर लिया। हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते फिरते हैं। हमने तो अपना चरित्र कह सुनाया। अब हे ब्राह्मण! आप अपनी कथा कहिए, आप कौन हैं?
प्रभु को पहचानकर हनुमान जी उनके चरणों में दण्डवत हो गये उनका मन हर्षित हो गया दोनों का मिलन हुआ और यह पावन दिन भद्रकाली एकादशी का था माता भद्रकाली की कृपा से सुग्रीव को श्री राम की सहायता प्राप्त हुई और अंत में बाली का बध करके प्रभु श्री राम ने सुग्रीव को भय मुक्त किया।

भद्रकाली प्रकटोत्सव का महत्व

भद्रकाली माता के प्रकटोत्सव की महिमां का वर्णन पुराणों में विस्तार से मिलता है इस दिन देवी जयंती मंगला व माता काली की पूजा करने से सभी बाधाओं का शमन होता है ग्रह दोषों का निवारण होता है भद्रकाली प्रकटोत्सव पर देश के अनेक शक्ति स्थलों पर मेला भी लगता है। घातक बीमारियों के निवारण के लिए इस दिन किया यज्ञ महा फलदायी है ।

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