नशा मानव जीवन के लिए अभिशाप नहीं बल्कि महा अभिशाप है

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*मनुष्य का जीवन ईश्वर का दिया गया अनमोल उपहार है इसे सवारकर कर रखना प्रत्येक मनुष्य का पावन कर्तव्य है कहा भी गया है पहला सुख निरोगी काया। लेकिन आज समाज में बढ़ते नशे के प्रचलन ने इस काया को खोखला करके रख दिया है।*
*नशा एक अभिशाप ही नहीं बल्कि महाअभिशाप है । यह एक ऐसी महाभयानक बुराई है, जिससे इंसान का अमूल्य जीवन वक्त से पहले ही मौत का शिकार होकर मौत के आगोश में विलय हो जाता है । नशे के विभिन्न रुप दिन प्रतिदिन तेजी के साथ अपनी जड़े जमा रहे है। समाज में अफीम, भांग, गांजा, शराब, जर्दा, गुटखा, तम्बाकू और धूम्रपान (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चिलम) सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं और पदार्थों का उपयोग अब तेजी से होने लगा है । इन जहरीले और नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक हानि पहुंचने के साथ ही इससे वातावरण भी प्रदूषित होता है* *और परिवार की सामाजिक स्थिति को जंक लगता है। नशे के आदी व्यक्ति को समाज में हीन दृष्टि से देखा जाता है ।

नशे करने वाला व्यक्ति परिवार के लिए अझेल हो जाता है, उसका समाज एवं राष्ट्र के प्रति उत्तरदायित्व शून्य हो जाती है । नशा मनुष्य को अपराध की ओर ले जाता है जो शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप का जहर है। यह समस्या अन्तराष्ट्रीय समस्या का रूप लेते जा रही है । दुर्व्यसन से आज स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्ग और विशेषकर युवा वर्ग बुरी तरह इसके मकड़जाल में फंसते जा रहे हैं इस अभिशाप से समय रहते नहीं चेते तो शेष रह जाएंगी सिर्फ पछतावे की सिसकियां । नशेड़ी स्वयं तो बर्बाद होता ही है इसके साथ ही साथ उसका परिवार भी बर्बाद हो जाता है । आज कल अक्सर ये देखा जा रहा है कि युवा वर्ग के साथ साथ छोटे – छोटे बच्चे इसकी चपेट में दिनों-दिन आ रहे है वह तरह-तरह के नशे जैसे- तम्बाकू, गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, स्मैक और शराब के चंगुल में बुरी तरह फसते जा रहे है। याद रक्खें नशा एक ऐसी सामाजिक बुराई है जो हमारे समूल अस्तित्व को नष्ट कर देती है। नशे की लत से पीड़ित व्यक्ति परिवार के लिए ही नही बल्कि समाज के लिए बोझ बन जाता है। हालाकि सरकारी स्तर पर भी विचार गोष्ठियों नशा मुक्ति अभियानों का सिलसिला निरंतर चलता रहता है फिर भी इसका प्रचलन दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसके लिए आवश्यक है ,कि माता-पिता अपने बच्चों को सुंदर संस्कार प्रदान करें . क्योंकि नशा स्वास्थ्य के साथ सामाजिक और आर्थिक दोनों लिहाज से ठीक नहीं है। नशे का आदी व्यक्ति समाज की दृष्टी से गिर जाता है और उसकी सामाजिक क्रियाशीलता नगण्य हो जाती है, ध्रूमपान से फेफड़े में कैंसर होता हैं, वहीं कोकीन, चरस, अफीम लोगों में उत्तेजना बढ़ाने का काम करती हैं, जिससे समाज में अपराध और गैरकानूनी हरकतों को बढ़ावा मिलता है। इन नशीली वस्तुओं के उपयोग से व्यक्ति पागल और* *सुप्तावस्था में चला जाता है। तम्बाकू के सेवन से तपेदकि, निमोनिया और साँस की बीमारियों का सामना करना पड़ता है।

इसके सेवन से जन और धन दोनों की हानि होती है। इसलिए आवश्यकता है नशीले पदार्थों से सावधान रहने की सामाजिक हिंसा,बलात्कार, चोरी, आत्महत्या आदि तमाम अपराधों के पीछे नशा भी एक बहुत बड़ा कारण है। नशे में धुत होकर गाड़ी चलाते हुए एक्सीडेंट करना, शादीशुदा व्यक्तियों द्वारा नशे में अपनी पत्नी से मारपीट करना घर में कलह क्लेश उत्पन्न करना मुँह, गले व फेफड़ों का कैंसर, ब्लड प्रैशर, अल्सर, यकृत रोग, अवसाद एवं अन्य अनेक रोगों का मुख्य कारण विभिन्न प्रकार का नशा ही है। वर्तमान दौर में नशा फैशन बन गया है। प्रति वर्ष लोगों को नशे से छुटकारा दिलवाने के लिए 30 जनवरी को नशा मुक्ति संकल्प और शपथ दिवस, 31 मई को अंतरराष्ट्रीय ध्रूमपान निषेध दिवस, 26 जून को अंतरराष्ट्रीय नशा निवारण दिवस और 2 से 8 अक्टूबर तक भारत में मद्य निषेध दिवस मनाया जाता है। फिर भी नशा दिन प्रतिदिन अपनी जड़े जमाता जा रहा है आज आवश्यकता है बच्चों को बचपन से ही विशेष संस्कार प्रदान करने की ताकि उसके हृदय में नशे का भाव ही उत्पन्न ना हो*

*हिमालय की गोद में बसा उत्तराखंड जो कि प्रकृति की अमूल्य धरोहर है आज देवभूमि उत्तराखंड भी नशे की चपेट में आता जा रहा है। राज्य के तमाम हिस्से नशे की गिरफ्त में हैं। जिस पावन भूमि से ऋषि-मुनियों ने संसार को अलौकिक ज्ञान प्रदान किया उस पावन भूमि का इस तरह से नशे की चपेट में आना दुर्भाग्यपूर्ण है। आज हम सबको इस नशे के प्रति सचेत रहने की आवश्यकता है ।हमारे समाज में नशे को सदा बुराइयों का प्रतीक माना गया । नशीले पदार्थों के सेवन से मनुष्य के शरीर और बुद्धि के साथ−साथ आत्मा का भी नाश हो जाता है*।
*एक सर्वे के मुताबिक भारत भूमि में गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले अधिकाश लोग लोग विभिन्न प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। इनमें ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनके घरों में दो जून रोटी के लाले पड़े रहते हैं । जिन परिवारों के पास रोटी−कपड़ा और मकान की सुविधा उपलब्ध नहीं है तथा सुबह−शाम के खाने के लाले पड़े हुए हैं उनके मुखिया मजदूरी के रूप में जो भी परिश्रम पूर्वक कमा कर लाते हैं वे विभिन्न प्रकार के नशे में स्वाहा कर डालते हैं। ऐसे लोगों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है*।

*मनोचिकित्सकों का कहना है कि युवाओं में नशे के बढ़ते चलन के पीछे आधुनिकता की चकाचौंध भरी बदलती जीवन शैली, परिवार से विभिन्न प्रकार के दबाव, परिवारिक झगड़े, इन्टरनेट की अत्यधिक लत, एकाकी जीवन, परिवार से दूर रहने, पारिवारिक कलह जैसे अनेक कारण हो सकते हैं। आजादी के बाद देश में शराब की खपत मैं भारी वृद्धि हुई है इस सच्चाई से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि शराब की बिक्री से सरकार को एक बड़े राजस्व की प्राप्ति होती है। मगर इस प्रकार की आय से हमारा सामाजिक ढांचा क्षत−विक्षत हो रहा है और परिवार के परिवार खत्म होते जा रहे हैं। हम विनाश की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। देश में शराब बंदी के लिए कई बार आंदोलन हुआ, मगर सामाजिक, राजनीतिक चेतना के अभाव में इसे सफलता नहीं मिली। सरकार को राजस्व प्राप्ति का यह मोह त्यागना होगा तभी समाज और राष्ट्र मजबूत होगा और हम इस दैत्यस्वरुप प्रवृत्ति के सेवन से दूर होंगे। कुछ चिंतक मानते हैं फैशन और शौक के रूप में पनपते नशे पर अंकुश संस्कारों के माध्यम से लगाया जा सकता है। इसको लेकर परिवार , समाज व शिक्षकों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।*/// रमाकान्त पन्त///

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