पर्यावरण की रक्षा के लिए परमाणु ऊर्जा के बहिष्कार की आवश्यकता

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परमाणु ऊर्जा न तो सुरक्षित है, न सतत, और न ही आर्थिक रूप से व्यावहारिक। इसके पर्यावरणीय, सामाजिक और मानवीय नुकसान इसके कथित लाभों से कहीं अधिक हैं। परमाणु ऊर्जा को आगे बढ़ाने की एक खतरनाक नीति है, जो जनसुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता की पूरी तरह अनदेखी करती है। वैसे तो परमाणु ऊर्जा को “स्वच्छ ऊर्जा” के रूप में प्रचारित किया जाता है, लेकिन यह विकिरणीय कचरा, उच्च लागत और विनाशकारी दुर्घटनाओं के खतरे के साथ आती है।

जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) के हैदराबाद राष्ट्रीय अधिवेशन में नेशनल अलायंस फॉर क्लाइमेट एंड इकोलॉजिकल जस्टिस,नेशनल अलायंस ऑफ एंटी-न्यूक्लियर मूवमेंट्स और चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति ने परमाणु ऊर्जा के बढ़ते उपयोग पर चिंता जताई। चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति के अध्यक्ष दादु लाल कुङापे एवं बरगी बांध विस्थापित मत्स्य संघ के अध्यक्ष मुन्ना बर्मन ने संयुक्त रूप से परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के विरोध में प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव में परमाणु ऊर्जा के विस्तार की हालिया नीतियों का कड़ा विरोध किया गया। प्रस्ताव में कहा गया है कि परमाणु ऊर्जा न तो सुरक्षित है, न सतत, और न ही आर्थिक रूप से व्यावहारिक। इसके पर्यावरणीय, सामाजिक और मानवीय नुकसान इसके कथित लाभों से कहीं अधिक हैं। एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन) और एनपीसीआईएल (न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) के बीच ₹80,000 करोड़ के निवेश का समझौता, परमाणु ऊर्जा को आगे बढ़ाने की एक खतरनाक नीति है, जो जनसुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता की पूरी तरह अनदेखी करती है। चुटका परमाणु संयंत्र और नीमच, देवास, सिवनी और शिवपुरी जिलों में प्रस्तावित संयंत्र स्थानीय समुदायों के विस्थापन, विकिरण (रेडिएशन) के खतरे और दीर्घकालिक पारिस्थितिकीय विनाश का कारण बनेंगे।
चुटका क्षेत्र में 2009 से आदिवासी समुदाय इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं, जहां भूमि का जबरन अधिग्रहण किया गया और उचित मुआवजा भी नहीं दिया गया। इस परियोजना से मछुआरे, किसान और स्थानीय आदिवासी समुदायों की आजीविका बुरी तरह प्रभावित होगी। इसके बावजूद चुटका परमाणु परियोजना को आगे बढ़ाया जा रहा है।
परमाणु संयंत्रों के लिए आदिवासी, किसान और मछुआरों को उनकी भूमि से बेदखल किया जाना उनके अधिकारों का उल्लंघन है और इससे उनकी आजीविका छिन रही है। इसके अलावा, सरकार द्वारा फ्रांस की ईडीएफ, रूस की रोसटाॅम और अमेरिका की वैस्टींगहाउस इलेक्ट्रिक कार्पोरेशन जैसी विदेशी परमाणु कंपनियों पर निर्भरता देश की संप्रभुता और सार्वजनिक जवाबदेही को भी संकट में डालती है।
परमाणु ऊर्जा को “स्वच्छ ऊर्जा” के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, लेकिन यह विकिरणीय कचरा, उच्च लागत और विनाशकारी दुर्घटनाओं के खतरे के साथ आती है। वैश्विक अनुभव से यह स्पष्ट हुआ है कि सौर, पवन और छोटी विकेन्द्रित जलविद्युत ऊर्जा अधिक सुरक्षित और सतत समाधान हैं।प्रस्ताव में परमाणु ऊर्जा को एक ऊर्जा समाधान के रूप में अस्वीकार करते हुए नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों पर तत्काल रोक लगाने की मांग करते हुए कहा गया है कि सरकार को विकेन्द्रित, नवीकरणीय (रिन्यूएबल) ऊर्जा स्रोतों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि ऊर्जा नीति पर्यावरणीय न्याय और समुदायों की संप्रभुता के सिद्धांतों के अनुरूप हो।
प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि एनएपीएम परमाणु ऊर्जा के आर्थिक, पर्यावरणीय और मानवीय लागतों को उजागर करने और सतत और लोकतांत्रिक ऊर्जा प्रणालियों की ओर न्यायसंगत परिवर्तन की वकालत करने के लिए प्रतिबद्ध है। परमाणु ऊर्जा विस्तार को तुरंत रोका जाना चाहिए, इससे पहले कि यह अपरिवर्तनीय पर्यावरणीय और मानवीय तबाही को जन्म दे।
संस्था के 30वें राष्ट्रीय सम्मेलन की सभा ने मांग की है कि-
1. खतरनाक और विषैली परमाणु विखंडन तकनीक को पूरी तरह से त्यागा जाए।
2. परमाणु ऊर्जा पर भारी बजट को विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा विकास पर व्यय किया जाए।
3. स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर परियोजना को बंद किया जाए और बजट को स्वच्छ, सुरक्षित और किफायती ऊर्जा विकल्पों की ओर खर्च किया जाए, विशेष रूप से वंचित समुदायों की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए।
4. सभी यूरेनियम खदानों को बंद करने के लिए एक समयबद्ध योजना बनाई जाए और उसे लागू किया जाए।
5. बंद और छोड़ी गई यूरेनियम खदानों की पारिस्थितिकी बहाली के लिए एक व्यापक योजना बनाई जाए और उसे लागू किया जाए।
6. सभी प्रभावित समुदायों का व्यापक अध्ययन किया जाए, और प्रभावित लोगों को पूर्ण पुनर्वास तथा निःशुल्क चिकित्सा सहायता दी जाए।
7. सभी 24-25 परमाणु विखंडन रिएक्टरों के लिए एक समयबद्ध निष्कासन योजना बनाई जाए और सावधानीपूर्वक उसे लागू किया जाए।
8. उच्च-रेडियोधर्मी कचरे के स्थायी और सुरक्षित भंडारण की गारंटी हो।
9. न्यूक्लियर डैमेज सिविल लायबिलिटी एक्ट को कमजोर करने के सभी प्रयास बंद किए जाएं और इसे और मजबूत किया जाए।
10. भारत को वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण योजनाओं को गंभीरता से आगे बढ़ाना चाहिए।

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(राजकुमार सिन्हा-विनायक फीचर्स)

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