योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की पावन नगरी वृदांवन की धरती से भी नीम करोली महाराज जी का अद्भूत नाता था जिस प्रकार उन्हें उत्तराखण्ड की धरा से आपार स्नेह रहा उसी प्रकार वृदांवन की धरा भी उन्हें बेहद प्रिय थी उनके भक्तजन बताते है कि अक्सर समय – समय पर उनका यहाँ पर्दापर्ण होता रहता था उन्होंने अपनें जीवन काल में इस पवित्र स्थान की अनेकों बार यात्रायें की और देह की अन्तिम यात्रा को भी इसी भूमि पर विश्राम दिया
माना जाता है कि वृंदावन से नाता उनकी आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ करती थी। उन्होंने वृंदावन को एक पवित्र और आध्यात्मिक स्थान के रूप में देखा, जहाँ भगवान कृष्ण की लीलाएँ हुई थीं। यहाँ की भूमि से भी उन्होंने अपने शिष्यों को आध्यात्म की शिक्षायें दी
उनकी शिक्षाएं प्रेम, सेवा और आत्म-समर्पण पर केंद्रित थीं। उन्होंने अपने अनुयायियों को सिखाया कि भगवान की भक्ति और प्रेम के माध्यम से ही आत्म-साक्षात्कार प्राप्त किया जा सकता है। आत्मा को पहचाना जा सकता है उनकी शिक्षाएं सरल, स्पष्ट और हृदयस्पर्शी थीं, और उन्होंने लोगों को अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित किया।
यही कारण था कि बाबाजी का प्रभाव न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में देखा जाता है। उनके अनुयायी और भक्तों ने उनकी शिक्षाओं को अपनाकर अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाए। उन्होंने कई आश्रमों और मंदिरों की स्थापना की, जो आज भी लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन और सेवा के अवसर प्रदान करते हैं।
उनकी विरासत और स्मृति सदैव भक्तों के हृदय में विराजमान रहेगी वृंदावन की धरा पर उनके द्वारा स्थापित मंदिर और आश्रम उनकी आध्यात्मिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और लोगों को उनकी शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।
उल्लेखनीय है कि योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की नगरी वृदांवन की महिमां अपरम्पार है योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण यह लीलास्थली है अतुलनीय है।पुराणों ने इस भूमि की ऐसी महिमां गायी है।जिसे शब्दों में नही समेटा जा सकता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल नगरी से कंस के ताण्डवो से बचने के लिए नंद जी अपनें बंधु,बाधंव कुटुंबीजनों सहित वृदांवन में आ बसे थे। इस पावन अतुलनीय नगरी का स्मरण करते ही मनुष्य समस्त सतांपों से मुक्ति पा लेता है*योगियों के ईश्वर
योगेश्वर श्री कृष्ण की मनभावन मूर्ति जब हृदय रुपी आसन में बस जाती है।तो सारा अंधकार दूर हो जाता है।यहां के कण कण में उनकी दिव्य आलौकिक लीलाओं की आभा से मन श्रद्वा व भक्ति से झूम उठता है।वृन्दावन की भूमि ब्रज की हृदय भूमि कहीं जाती है। इस पावन नगरी में श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलाएँ करके संसार को भक्ति व प्रेम का संदेश मानव कल्याण के लिए दिया।वृदांवन की भूमि आनन्द का परम आश्रय है।यहीं कारण है आदि काल से भक्ति की धारा यहां से शाश्वत रुप से बहती रही है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, महाप्रभु वल्लभाचार्य आदि अनेक भक्तों ने वृदांवन में रहकर श्रीकृष्ण की व्यापक भक्ति का प्रचार व प्रसार किया। वैभव को सजाने और संसार को
महान् श्रीकृष्ण भक्त चैतन्य महाप्रभु जिस दौर में वृदांवन में पधारे उस दौर में श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन ध्यानस्थ अवस्था में उन्होनें श्रीकृष्ण की लीला के अद्भूत केन्द्रो को खोज निकाला कहा जाता है। वृन्दावन में प्राचीनतम मंदिर राजा मानसिंह ने प्रभु कृपा व प्रेरणा से बनवाया यहां दर्शनीय स्थलों की लम्बी श्रृखंला है। सेवा के अनेकों कुंज यहां की शोभा से बरबस ही आगन्तुको को अपनी ओर चुंबक की भांति खेचतें है।प्रकृति की मनभावन रमणीक छटाओं के बीच स्थित वृदांवन की शोभा पर कल कल धुन में बहती यमुना जी प्रभु की वशीं की धुन में नृत्य करती प्रतीत होती है।सायंकाल के समय यहां का वातावरण बेहद सुहाना हो जाता है ।अनेको मंदिर बाकेंविहारी के सानिध्य में यहां कदम कदम पर शोभा बढ़ाते प्रतीत होते है।धरोहरो की आपार श्रद्वा के बीच गौसेवा के लिए भी वृदावन सारे सेसार में प्रसिद्व है।
हरि की नगरी में यहां हरियाली के मध्य नदी यमुना के तीर अनेक नामों से प्रसिद्व घाट है।जिनमें श्रीवराहघाट, नागराजकालिय के नाम पर।कालीयदमनघाट , आदित्यघाट , हनुमानघाट,युगलघाट ,भ्रमरघाट है।श्रीपानीघाट ,बद्रीघाट सहित अनेकों घाट योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से गुथे हुए है।जिनका बड़ा विस्तृत वर्णन पुराणों में वर्णित है। कुल मिलाकर वृदांवन की महिमां अपरम्पार है



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