श्रावस्ती /राप्ती नदी के तट पर सोमवार रात्रि को सत्य साधक श्री विजेन्द्र पाण्डेय गुरुजी ने राष्ट्र की सुख समृद्धि व व मंगल कामना को लेकर यज्ञ किया इस अवसर पर उनके साथ उनके कुछ शिष्य भी मौजूद रहे
*इस अवसर पर उन्होंने कहा माँ बगलामुखी की पूजा या साधना करना परम कल्याण कारी होता है लोक मंगल के उद्देश्य को सामने रखकर ही इनकी साधना करनी चाहिए श्री पाण्डेय ने बताया अपने जीवन की समस्याओं की मुक्ति के लिए भी इनकी आराधना सर्वोत्तम है शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने, कोर्ट कचहरी में जीतने, वाणी को प्रभावशाली बनाने और बच्चों व परिवार की रक्षा के लिए माता की पूजा और साधना उत्तम मार्ग है उन्होंने कहा 10 महाविद्याओं में से एक 8 वीं महाविद्या ही माँ बगलामुखी है। बगलामुखी देवी का प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र को माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकाट्य हुआ था। इसी कारण माता को पीतांबरी माता कहते हैं। इनका अति प्राचीन स्थल उत्तराखण्ड के घनसाली घुत्तू जो टिहरी गढ़वाल में पड़ता है वहां है मुकदमे आदि में इनका अनुष्ठान सफलता प्राप्त करने वाला होता है इनकी आराधना करने से साधक को विजय श्री की प्राप्ति होती है।
श्री गुरुजी ने बताया माँ पीताम्बरी की साधना युद्ध में विजय होने और शत्रुओं के नाश के लिए भी की जाती है। अन्दर के व बाहर के सभी शत्रुओं का यह नाश कर देती है इनकी साधना शत्रु भय से मुक्ति मिलती है।
सत्य साधक गुरुजी ने आगे कहा कि माँ पीताम्बरी देवी का अखण्ड हवन-यज्ञ एक आध्यात्मिक विज्ञान है, जिसके प्रभाव से श्रद्धालु भक्तों के साथ – साथ समूचे क्षेत्र के जीव मात्र का भी कल्याण हो जाता है और हर तरफ मंगल व आनन्द का वातावरण निर्मित होता है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि माँ पीताम्बरी देवी की साधना से प्राप्त सिद्धियों से सत्य साधक “गुरुजी ” बीते तीस वर्षों से लगातार परेशानियों में घिरे लोगों की समस्याओं का समाधान करते आ रहे हैं। साधना की शक्ति से लोक कल्याण करते हुए नशामुक्त समाज का निर्माण करना ही उनके जीवन का लक्ष्य रहा है। अपने तीस वर्षों की साधना यात्रा में गुरुजी जी हवन – यज्ञादि के माध्यम से अब तक लाखों लोगों का जीवन बदल चुके हैं। अब तक उत्तर भारत के अलग – अलग राज्यों के अलग-अलग धर्म स्थलों और शक्ति पीठों में गुरुजी माँ पीताम्बरी के तीन हजार से भी अधिक बड़े हवन सम्पन करा चुके हैं। सभी हवन – यज्ञ के अनुष्ठान 10 से 12 घंटों तक अखण्ड रूप से सम्पन्न किये जाते हैं । हवन – यज्ञादि से पूर्व गुरु जी तीन दिन से लेकर तीन माँह की अखण्ड साधना करते हैं। दैहिक, दैविक व भौतिक तापों से ग्रस्त लोगों की समस्यानुसार साधना व हवन की समयावधि निश्चित होती है और उसी के अनुरूप यज्ञ सामग्री की भी आवश्यकता होती है।
यहाँ यह भी बताते चलें कि अयोधया में श्री राम मन्दिर पर निर्णय आने से पूर्व गुरु जी ने यहाँ हनुमान गढ़ी में 36 घंटों की अखण्ड साधना कर बारह घंटों का हवन – यज्ञ सम्पन्न किया था।
अपनी तीन दशक की साधना यात्रा में सत्य साधक ” गुरुजी ” देवभूमि उत्तराखण्ड समेत उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हिमांचल, हरियाणा, पंजाब, छत्तीसगढ़ , गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों के तीन हजार से अधिक तीर्थों, पौराणिक धर्म स्थलों और शक्तिपीठों में लम्बी साधना और बड़े स्तर के अखण्ड हवन – यज्ञ करा चुके हैं। इसके अलावा पवित्र नदियों के तटों पर साधना के बाद हजारों की संख्या में हवन-पूजन, यज्ञ आदि सम्पन्न कर चुके हैं। अकेले श्रावस्ती जनपद में ताप्ती नदी के तट पर दो हजार हवन दिन और रात्रिकाल में सम्पन्न कराये हैं। मध्य प्रदेश के दतिया में, उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ, मलयनाथ मन्दिर डीडीहाट, हरिद्वार, ऋषिकेश, पाताल भुवनेश्वर, कमस्यार घाटी स्थित भद्रकाली धाम, रानीबाग स्थित शीतला माता मन्दिर, च्यूरीगाड़ देवी मन्दिर, लालकुआं के फलाहारी आश्रम, द्रोणा गिरि, कालीमठ, काली चौड़, अवन्तिका शक्तिपीठ,टिहरी के बगुली धार, भिलेश्वर मन्दिर समेत सैकड़ों धर्म स्थलों में लम्बी साधना व हवन अनुष्ठान कराये हैं। उत्तर प्रदेश में अयोध्या के अलावा मथुरा, वृदावन, काशी, प्रयाग राज, सोनभद्र, विन्ध्य वासिनी के अलावा ज्यादातर बड़े नगरों में हवन आदि करा चुके हैं।
हवन-पूजन, यज्ञादि में सामान्यतः जौ, तिल, राई, कपूर, हींग, इलायची, लोंग, सेमल फूल, टेसू, मदार, काली मिर्च, बरगद, कमल गट्टा, देशी घी आदि सामग्रियों का प्रयोग होता है लेकिन कुछ विशेष हवन के लिए कुछ अन्य विशेष सामग्री का भी प्रयोग किया जाता है।
कुल मिलाकर सत्य साधक गुरुजी वर्ष भर कहीं न कहीं धार्मिक स्थल पर मॉ पीताम्बरी की साधना में रत रहते हुए समाज में व्याप्त बुराइयों तथा लोगों की हर छोटी बड़ी समस्या का समाधान पीताम्बरी ( बगलामुखी ) अनुष्ठान के जरिये करते आ रहे हैं और किसी भी कारण से परेशान लोगों को राहत दिलाने में सदैव सुलभ रहते हैं।
मदन मधुकर
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