वाराणसी में मौनी अमावस्या के अवसर पर अस्सी घाट तुलसी घाट पर गंगा स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ है दूर- दूर से लोग यहां बाबा विश्वनाथ के दर्शन एवं स्नान को पहुंच रहे हैं
श्रीविश्वनाथ जी काशी के सम्राट् हैं। उनके मन्त्री हरेश्वर, कथावाचक ब्रह्मेश्वर, कोतवाल भैरव, धनाध्यक्ष तारकेश्वर, चोबदार दण्डपाणि, भंडारी वीरेश्वर, अधिकारी ढुण्डिराज तथा काशीके अन्य शिवलिङ्ग प्रजापालक हैं।
विश्वनाथ-मन्दिर के वायव्यकोण में लगभग डेढ़ सौ शिवलिङ्ग हैं। इनमें धर्मराजेश्वर मुख्य हैं। इस मण्डली को शिव की कचहरी कहते हैं। यहाँ मोद-विनायक, प्रमोद विनायक, सुमुख-विनायक और गणनाथ-विनायककी मूर्तियाँ हैं।*
अक्षयवट-श्रीविश्वनाथ-मन्दिरके द्वार से निकलकर ढुण्ढिराज गणेश की ओर चलनें पर प्रथम बायीं ओर शनैश्चर का मन्दिर मिलता है। इनका मुख चाँदी का है, शरीर नहीं है। नीचे केवल कपड़ा पहिनाया जाता है । पास एक ओर महावीर जी हैं। एक कोने में एक वटवृक्ष है, जिसे अक्षयवट कहते हैं। यहाँ द्रुपदादित्य तथा नकुलेश्वर महादेव हैं।
देवी के प्रसिद्व मन्दिरों में काशी की भूमि में अन्नपूर्णा-विश्वनाथ-मन्दिर से थोड़ी दूरी पर ही है। चाँदी के सिंहासन पर अन्नपूर्णाकी पीतल को मूर्ति विराजमान है। मन्दिरके सभामण्डप के पूर्व में कुबेर, सूर्य, गणेश, विष्णु तथा हनुमान जी की मूर्तियाँ तथा आचार्य श्री भास्करराय द्वारा स्थापित यन्त्रेश्वर लिङ्ग है, जसपर श्रीयन्त्र खुदा हुआ है। कुल मिलाकर काशी की धरती का वर्णन शब्दों से परे है बाबा विश्वनाथ जी की महिमा को शब्दों में समेटनें में कोई भी समर्थ नहीं है।
मौनी अमावस्या के अवसर पर वाराणसी में भी स्नान का अपना अलग ही महत्व है
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