आहार शुद्धि से ही व्यवहार एवं विचारों की शुद्धि और अन्ततः संसार की शुद्धि सम्भव है : नमन कृष्ण महाराज

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लालकुआं ( नैनीताल ), मनुष्य जीवन में आहार का बहुत अधिक महत्व है। आहार अर्थात खान-पान यदि सात्विक एवं शुद्ध है तो निश्चित रूप से व्यवहार में तथा विचारों में भी शुद्धता परिलक्षित होगी और इस प्रकार के सात्विक जीवन से सम्पूर्ण संसार की शुद्धि सहज ही सम्भव हो सकती है। एक धार्मिक समारोह में बोलते हुए प्रसिद्ध भागवताचार्य नमन कृष्ण महाराज ने भक्त समुदाय को कही।
विद्वान भागवताचार्य नमन कृष्ण महाराज ने कहा कि खान-पान में शुद्धता को लेकर जरा भी लापरवाही जीवन को दिशाहीन बना देती है । अर्थात मनुष्य अपने जीवन के असल लक्ष्य से भटक जाता है। उन्होंने कहा कि यदि भोजन तामसिक हो तो अच्छे संस्कारों के बावजूद आचरण एवं व्यवहार के साथ ही विचार भी दूषित हो जाते हैं, जो अन्ततोगत्वा घर-परिवार से लेकर समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व को प्रभावित करते हैं।
श्री नमन कृष्ण ने कहा कि अच्छे आहार, व्यवहार, विचार और आचरण से ही राम राज्य की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।
धर्म सम्मत आचरण एवं धन की महत्ता पर बोलते हुए विद्वान भगवताचार्य ने कहा कि धन का मनुष्य के जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। अर्थात जीवन और धर्म की रक्षा धन से ही की जा सकती है, परन्तु धन अर्जन का मार्ग सात्विक एवं मर्यादित होना चाहिए। ऐसा न होने पर धन अन्ततः विनाश का ही कारण बनता है।
उन्होंने भक्त समुदाय को कहा कि बड़े- बड़े धार्मिक आयोजन, धार्मिक कथाएं, हवन-यज्ञादि पर्याप्त धन सुलभ होने पर ही सम्पन्न किये जा सकते हैं। जीवन चलाने के लिए भी धन नितान्त आवश्यक है। परन्तु धन पूरी तरह शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। विना किसी को कष्ट पहुंचाये ईमानदार परिश्रम से अर्जित किये गए धन से ही, सही मायने में धर्म की रक्षा की जा सकती है और जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।
अपने पावन सम्बोधन में भागवताचार्य नमन कृष्ण ने आगे कहा कि उत्तराखण्ड की धरती प्राचीनकाल से ही देवभूमि के रूप में पूजनीय एवं वन्दनीय मानी गयी है। उन्होंने कहा कि वर्तमान भौतिक विकास की होड़ में यहाँ के निवासी भी अब धीरे-धीरे धर्म सम्मत आचरण को लेकर लापरवाह होते जा रहे हैं और धर्म रक्षा की परम्पराएं भी बदल रही हैं, जो कि चिन्ता का विषय है। उन्होंने कहा कि देवभूमि की पहचान, प्रतिष्ठा एवं सम्मान बचाने के लिए धर्म व संस्कृति की रक्षा करना आवश्यक है।
भागवताचार्य नमन कृष्ण ने यह भी कहा कि रोजी-रोजगार, व्यवसाय एवं शिक्षा आदि के लिए देवभूमि के पर्वतीय अंचलों से लोग तीव्र गति से मैदानी इलाकों में बसने लगे हैं, जिस कारण पर्वतीय गाँव खाली होने लगे हैं। उन्होंने चिन्ता व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि बहुत से लोग तो अपनी पुस्तैनी जमीनों को बेचने भी लगे हैं। ऐसे में देवभूमि की संस्कृति एवं धार्मिक परम्पराओं को बचा पाना मुश्किल हो जायेगा। उन्होंने कहा कि जिस किसी कारण से भी लोग मैदानी क्षेत्रों में बस चुके हों, परन्तु उनको अपनी पुस्तैनी जमीनें किसी भी सूरत में बेचनी नहीं चाहिए। उन्होंने कहा कि समय-समय पर अपने गावों में जाकर अपने ग्राम देवता, कुल देवता, स्थान देवता, इष्ट देवता और सभी देवी-देवताओं के पूजन विधान को जीवित रखना सभी का कर्तव्य बनता है।
भागवताचार्य ने कहा कि गौ सेवा एवं गौ पालन की परम्परा पहाड़ों में लुप्त होती जा रही है, जो कि अच्छे लक्षण नहीं हैं। उन्होंने कहा कि शहरों में मैंदानी क्षेत्रों में पहाड़ के निवासी जहाँ भी रह रहे हैं, यदि उनके पास थोड़ी बहुत भी गुंजाईश हो तो, अपने घरों में गाय अवश्य पालें । उन्होंने कहा गौ माता सनातन संस्कृति की मूल है। यदि गौ ही लुप्त हो जायेगी तो फिर धर्म की रक्षा कैसे सम्भव हो पायेगी।
यहाँ बताते चले कि भागवताचार्य नमन कृष्ण सनातन धर्म के महान विद्वान माने जाते हैं।
इक्कीस वर्ष पूर्व कुमाऊं विश्वविद्यालय अन्तर्गत डीएसबी कालेज नैनीताल से एम एस सी में स्नातकोत्तर डिग्री हासिल करने के बाद नमन कृष्ण ने कहीं नौकरी, व्यवसाय आदि के बजाय धर्म, संस्कृति एवं आध्यात्म के मार्ग पर चलने का निश्चय किया और महातीर्थ काशी नगरी में महान सन्त स्वामी बालकृष्ण यति जी महाराज की शरण में पहुंच गए । यति महाराज से दीक्षा प्राप्त कर नमन कृष्ण ने संस्कृत भाषा के अध्ययन के साथ- साथ धार्मिक ग्रन्थों का भी गहन अध्ययन, मनन-चिन्तन प्रारम्भ कर दिया और इस प्रकार स्वयम को पूरी तरह सनातन धर्म की सेवा में समर्पित कर दिया। काशी विद्वत परिषद से धर्म मार्तण्ड की उपाधि प्राप्त करने के साथ ही धार्मिक कथाओं के माध्यम से लोक कल्याण के कार्यों में जुट गये।
अपनी दो दशक की धार्मिक यात्रा में भागवताचार्य नमन कृष्ण लगभग 375 कथाएं सफलतापूर्वक सम्पन्न करा चुके हैं। इनमें मुख्य रूप से श्रीमद्भागवत कथा, देवी भागवत कथा, श्री राम कथा, शिव महापुराण कथा समेत अनेकानेक धार्मिक कथाएं शामिल हैं।
भारत के नागालैण्ड तथा अरुणांचल प्रदेश को छोड़कर देश के बांकी सभी राज्यों में भागवताचार्य नमन कृष्ण बतौर व्यास, अनेकानेक भव्य- दिव्य कथाएँ कर चुके हैं। इतना ही नहीं अमेरिका, इंग्लैण्ड, जर्मनी, आस्ट्रेलिया समेत विश्व के अनेक देशों में भी वह भागवत कथाएं कर चुके हैं।
भागवाचार्य नमन कृष्ण कथा वाचक के साथ साथ उच्च स्तर के कवि व लेखक भी माने जाते हैं। उनके द्वारा स्वरचित कविता संग्रह ” मेरा मैं तेरा तू ” तथा ” आग का दरिया ” पुस्तकों में उनकी विलक्षण काव्य प्रतिभा झलकती है। इसके अलावा एक यात्रा संस्मरण ” ये आकाश कुछ कहता है ” और दो पुस्तकें ” आत्म तत्व ( दो भागों में ) और ” युग धर्म “काफी प्रसिद्ध एवं महत्वपूर्ण हैं।।
मूलरूप से अल्मोड़ा के जोशी खोला निवासी नमन कृष्ण की प्रारम्भिक व माध्यमिक शिक्षा अपनी माता श्रीमती चन्द्रा जोशी व पिता पण्डित गिरीश चन्द्र जोशी के संरक्षण में अल्मोड़ा में हुई थी। धर्म , संस्कृति व आध्यात्म को समर्पित माता-पिता के संस्कारों का उन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा जो बाद में शिक्षा पूरी करने के बाद स्वतः सिद्ध भी हो गया।
एक विद्वान व्यास के रूप में भागवाचार्य नमन कृष्ण ने जागेश्वर धाम मे में पहली कथा के साथ अपनी यात्रा आरम्भ की । फिर अल्मोड़ा में दूसरी कथा की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । इसी समर्पण का प्रतिफल है कि अब तक वह 375 कथाएँ कर चुके हैं ।
वर्तमान में हल्द्वानी में रह कर श्री नमन कृष्ण लगातार सनातन की सेवा में लगे हुए हैं। उनकी प्रसिद्धि एवं लोकप्रियता का अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उत्तराखण्ड के अलावा देश के कोने – कोने से भागवत कथा क आयोजन कराने वाले उनको आमंत्रित करने के लिए लालायित रहते हैं।
कुल मिलाकर भागवताचार्य नमन कृष्ण सनातन की सेवा में तन- मन- धन से समर्पित रहकर लोक कल्याण के अपने पावन संकल्प को सिद्ध करने की दिशा में लगातार अग्रसर हैं।
मदन जलाल मधुकर

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