पाताल लोक में पूर्णिमां को हुआ विशेष पूजन

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राष्ट्र की सुख समृद्धि एवं मंगलकामना को लेकर पूर्णिमाँ के पावन अवसर पर आज पाताल लोक में महादेव का विशेष पूजन के साथ जलाभिषेक व दुग्ध अभिषेक किया गया
यह जानकारी देते हुए मंदिर कमेटी के अध्यक्ष नीलम भण्डारी ने बताया कि बुद्ध पूर्णिमां पर पाताल भुवनेश्वर क्षेत्र आज भुवनेश्वर महादेव का विशेष पूजन किया गया

राष्ट्र की समृद्धि व लोक मंगल की कामना के लिए पाताल में भुवनेश्वर जी का यहाँ पूजन किया गया पूजन कार्यक्रमों में चिटगल गाँव के कुल पुरोहितों का समूह भी मौजूद रहा

श्री भण्डारी ने बताया आज के दिन यहाँ पितरों के निमित्त भी विशेष पूजन किया जाता है उन्होंने कहा
भुवनेश्वर की कथा के श्रवण व पूजन से पितरों का उद्वार होता है
उन्होंनें बताया कीर्तिशाली राजा ऋतुपर्ण का चरित्र सुनने व पाताल भुवनेश्वर की महिमा का बखान करने वाले व्यक्ति के इक्कीस कुलों का उद्वार होने के साथ-साथ उसके जन्म जन्मान्तर के पापों का भी नाश होता है। मानस खण्ड के पाताल भुवनेश्वर महात्म्य के अंतर्गत 33वें श्लोक में यह बात स्पष्ट है
जन्मान्तरकृतात्पापात् विमुख्य मुनिसत्तमाः।
स याति शिवलोकं वै कुलत्रयसमन्तिवतः।।
साथ ही 34वें श्लोक में यह बात और स्पष्ट होती है-
पातालभुवनेशस्य सन्निधौ याति यो नरः। समुद्धृत्य महाभागाः कुलमेकोत्तरं शतम्।।
अर्थात पाताल भुवनेश्वर के समीप जाने वाला व्यक्ति एक सौ
एक कुलों का उद्वार कर शिव सायुज्य प्राप्त करता है ।

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स्वयं राजा ऋतुपर्ण ने शेषनाग जी के कथनानुसार पितृ तर्पण कर
पाताल भुवनेश्वर में पिंडदान किया। उनके 101 कुलों
का उद्वार हुआ पितृ तर्पण करने के पश्चात प्रसन्न पित्रों की
कृपा से उन्हें पाताल भुवनेश्वर में कामधेनु के दर्शन हुए। यह बात स्कन्द पुराण के मानस खण्ड के 274वें व
275वें श्लोक में स्पष्ट है-
पितृन् सन्तर्पयामास श्रुत्वा तस्य गिरंमहत्तर्पयित्वासराजर्षिर्देवर्षिपितृमानवान्।।पिण्डदानेन सन्तर्प्य कुलमेकोत्तर शतम्। शेषेणदर्शिता तत्र कामधेनुं ददर्श ह।।इस तरह से पाताल भुवनेश्वर का महात्म्य लोक एवं परलोक
दोनों ही दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है। जो मनुष्य पाताल भुवनेश्वर के निमित्त अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प अर्पित करता है, उनके पितृ प्रसन्न होकर उसे आशीष देते हैं। साथ ही भुवनेश्वर की कृपा से पितरों का भी उद्वार होता है।

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उल्लेखनीय है कि देवभूमि उत्तराखण्ड के गंगोलीहाट स्थित श्री महाकाली दरबार से लगभग ११ किलोमीटर दूर भगवान भुवनेश्वर की यह गुफा वास्तव में अद्भुत, चमत्कारी एवं अलौकिक है। यह पवित्र गुफा जहां अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है, वहीं अनेकानेक रहस्यों से भरपूर है। इस गुफा को पाताल लोक का मार्ग भी कहा जाता है। सच्ची श्रद्धा व प्रेम से इसके दर्शन करने मात्र से ही हजारों-हजार यज्ञों तथा अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता है और विधिवत पूजन करने से अश्वमेघ यज्ञ से दस हजार गुना अधिक फल प्राप्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त पाताल भुवनेश्वर का स्मरण और स्पर्श करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। यही कारण है कि तैतीस कोटि देवता भगवन भुवनेश्वर की अखण्ड उपासना हेतु यहां निवास करते हैं तथा यक्ष, गंधर्व, ऋषि-मुनि, अपसराएं, दानव व नाग आदि सभी सतत पूजा में तत्पर रहते हैं तथा भगवान भुवनेश्वर की कृपा करते हैं।

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स्कन्ध पुराण के मानस खण्ड में भगवान श्री वेदव्यास ने इस पवित्र स्थल की अलौकिक महिमा का बखान करते हुए कहा है- भुवनेश्वर का नामोच्चार करते ही मनुष्य सभी पापों के अपराध से मुक्त हो जाता है तथा अनजाने में ही अपने इक्कीस कुलों का उद्धार कर लेता है। इतना ही नहीं अपने तीन कुलों सहित शिवलोक को प्राप्त करता है। इसे सृष्टि की अद्भुत कृति बताते हुए श्री वेदव्यास आगे कहते हैं कि इस पवित्र गुफा की महिमा और रहस्य का वर्णन करने में ऋषि-मुनि तपस्वी तो क्या देवता भी स्वयं को असमर्थ पाते हैं। ब्रह्माण्ड के समान ही यह गुफा भी अनन्त रहस्यों से सम्पूर्ण है

पाताल भुवनेश्वर को बाल भुवनेश्वर भी कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहां बाल रूप में प्राणी मात्र के कल्याण हेतु सहस्त्रों वर्षों तक तप किया था।
रिपोर्ट : रमाकान्त पन्त

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