जीवन का आधार हैं राम

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विश्व भर में रामराज्य की कल्पना को एक आदर्श के रूप में देखा जाता है, क्योंकि रामराज्य एक नैतिक और न्यायिक राज्य का प्रतीक है, राम के राज्य में तानाशाही का कोई स्थान नहीं रहा। विश्व की कईं संस्कृतियों में राम शब्द आदर्श का प्रतीक माना जाता रहा है। इसीलिए रामायण जैसा ग्रंथ आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। हमारी व्यक्तिगत धारणाएं जो भी हों, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राम के जीवन की कथा रामायण विश्व सभ्यता की मूलभूत कथाओं में से एक है।

हजारों सालों से लाखों जीवन का आधार राम रहे हैं। इस बात पर गौर करना महत्वपूर्ण है कि वह कोई धार्मिक व्यक्तित्व नहीं हैं। कोई भी धर्म उन पर पूरी तरह दावा नहीं कर सकता। न ही इस राम कहानी में किसी भी बिंदु पर राम खुद को एक हिंदू घोषित करते हैं। अगर राम इस विश्व के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक आदर्श हैं, तो इसलिए क्योंकि वह स्थिरता, संतुलन, शांति, सत्य, पवित्रता, करुणा और न्याय के प्रतीक हैं। हम उन्हें इसलिए पूजते हैं क्योंकि उनमें एक महान सभ्यता के निर्माण के लिए जरूरी गुण समाए हैं।

आज का आधुनिक मन यह सोचकर हैरान हो सकता है कि हम राम की पूजा क्यों करते हैं। आखिरकार, उनके जीवन की कहानी कोई कामयाबी की कहानी नहीं है। बल्कि उनके जीवन में लगातार विपत्तियां आती रहीं, उनके जैसे कुछ ही लोग एक ही जीवनकाल में इतनी विपत्तियों से गुज़रते हैं। राम अपने पिता के सिंहासन के उत्तराधिकारी हैं पर वह अपने पिता के कहने पर राज्य छोड़ देते हैं और वनवास स्वीकार कर लेते है। वनवास में अपनी पत्नी खो देते हैं, जिसे वापस लाने के लिए उन्हें युद्ध लड़ना पड़ता हैं, और अपनी पत्नी को वापस लाते हैं। फिर भी उनको लोगों की आलोचना और छींटाकशी का शिकार बनना पड़ता है, जिसके बाद वह एक बार फिर अपनी पत्नी को जंगल भेज देते हैं। और भी दुर्भाग्य देखिए उनकी प्रिय रानी को दुखद रूप से जंगल में बच्चों को जन्म देना पड़ता है। और फिर विडंबना देखिए, राम अपने ही बच्चों से युद्ध करते हैं, क्योंकि वे उन्हें नहीं पहचानते। और अंत में, जिस एक स्त्री से उन्होंने हमेशा प्रेम किया, वह सीता उनके सामने ही मृत्यु को प्राप्त होती हैं। देखा जाए तो राम की कहानी एक शोकपूर्ण कहानी है। लेकिन अगर हम उन्हें पूजते हैं, तो इसलिए क्योंकि उन्होंने अपना जीवन इस खास तरह से जिया, उन्होंने अपनी विफलताओं को भव्यता, गरिमा, साहस और धैर्य से संभाला। उनका आदर इसलिए नहीं किया जाता कि वह बाहरी दुनिया के विजेता थे, वह भीतरी जीवन के विजेता हैं, क्योंकि वह विपरीत परिस्थितियों में डगमगाते नहीं हैं।

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आज तथाकथित आधुनिक दृष्टि अपनाते हुए राम के जीवन में दोष ढूंढना संभव है। लोग दोष ढूंढ भी रहे है। सीता के प्रति राम के बर्ताव को स्त्री के प्रति अन्याय मान सकते हैं, या वानरों के चित्रण को नीचा दिखाने वाला और किसी खास जाति पर केंद्रित मान सकते हैं। दरअसल अतीत में जाकर किसी भी व्यक्तित्व को उठाकर उसकी चीर-फाड़ करना बहुत आसान है। मगर इससे पहले कि हम आसानी से फैसले करते हुए राम के व्यक्तित्व को खारिज कर दें, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मानवता को आदर्शों की जरूरत है।

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हम देखें कि कौन सी चीज़ राम को इतना असाधारण बनाती है। कई हज़ार साल पहले, जब दुनिया के अधिकांश हिस्सों में शासक सिर्फ विजेता थे, जो अक्सर बर्बर हुआ करते थे – उस समय राम ने मानवता, त्याग और न्याय की अनुकरणीय भावना का प्रदर्शन किया। रावण को मारने के बाद भी उनकी आँखों में क्रोध नहीं दिखता, वह गिरे हुए रावण के शव के पास आते हैं और उन्हें जो कार्य करना पड़ा, उसके लिए पश्चाताप करते हैं। अपने जीवन की सारी चुनौतियों के बीच, वह कभी अपना संतुलन नहीं खोते, कभी मन में कड़वाहट या प्रतिशोध नहीं रखते। वह काफी हद तक छल-कपट या राजनीति से दूर रहते हैं और अपनी शक्ति के दुरुपयोग को लेकर बहुत सतर्क रहते हैं। समभाव रखने वाले राम समग्रता और आत्म-त्याग का जीवन जीते हुए एक मिसाल पेश करते हैं, वे अपनी प्रजा के लिए अपनी खुशी त्यागने के लिए तैयार हैं। सबसे बढ़कर, मुक्ति को महत्व देने वाली संस्कृति में वह नकारात्मकता, स्वार्थ और अधमता से ऊपर उठकर आज़ादी के प्रतीक हैं। राम नायक इसलिए नहीं हैं, क्योंकि उनका जीवन परिपूर्ण है, बल्कि इसलिए हैं क्योंकि वह एक असाधारण जीवन जीते हैं। इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुष कहा जाता है।

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राम का जीवन आदर्श विश्व संस्कृति और आध्यात्म को पोषित करता है। मानव को मानव की तरह बने रहने और मानव की तरह ही व्यवहार करने की प्रेरणा देता है। राम का स्वयं का जीवन तो प्रेरणा देता ही उनके सहचरों का जीवन भी कम प्रेरणादायी नहीं है। समर्पण और धैर्य के साथ परिस्थितियों पर विजय कैसे हो सकते है, यह समाज को राम का जीवन सिखाता है।

(संदीप सृजन-विभूति फीचर्स)

 

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