धर्म नगरी उज्जैन केवल महाकाल की ही नहीं, बल्कि उन पावन स्थलों की भी भूमि है जहाँ मनुष्य अपने पूर्वजों के प्रति कर्तव्य निभाने आता है। ऐसी ही एक अत्यंत दुर्लभ और भावनात्मक धार्मिक यात्रा है पित्रेश्वर महादेव मंदिर की यात्रा, जहाँ शिव उपासना के साथ पितृ देवताओं की तृप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
यात्रा का आरंभ: महाकाल की नगरी से पितृ धाम तक
उज्जैन पहुंचते ही श्रद्धालु प्रायः सबसे पहले बाबा महाकाल के दर्शन करते हैं। इसके पश्चात शिप्रा नदी की ओर बढ़ते हुए पित्रेश्वर महादेव का मार्ग शुरू होता है। यह मार्ग केवल भौतिक यात्रा नहीं, बल्कि मन और स्मृतियों की यात्रा भी बन जाता है जहाँ हर कदम पर पूर्वजों का स्मरण स्वतः होने लगता है।
पौराणिक विश्वास: शिव का पितृरूप
मान्यता है कि भगवान शिव ने यहाँ पित्रेश्वर रूप धारण कर यह वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति श्रद्धा से अपने पितरों का तर्पण करेगा, उसके पितृ संतुष्ट होकर जीवन की बाधाओं को हर लेंगे। इसी कारण यह धाम पितृ दोष निवारण के लिए देशभर में प्रसिद्ध है।
पूजा-विधि: तर्पण से तृप्ति तक
यात्रा का मुख्य उद्देश्य यहाँ श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करना होता है। पंडितों के मार्गदर्शन में कुश, तिल और जल से तर्पण वैदिक मंत्रोच्चार शिवलिंग पर जलाभिषेक
किया जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहाँ किया गया पिंडदान गया के समान फल देता है और पितृ लोक तक पहुंचता है।
शिप्रा तट का आध्यात्मिक स्पर्श
पित्रेश्वर महादेव का वातावरण अत्यंत शांत और ऊर्जावान है। शिप्रा की मंद धारा, बेलपत्रों की सुगंध और मंत्रों की ध्वनि — सब मिलकर ऐसा अनुभव कराते हैं मानो पूर्वजों की आत्माएँ भी समीप उपस्थित हों।
श्रद्धालुओं के अनुभव
यहाँ आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि
वर्षों से चली आ रही पारिवारिक बाधाएँ समाप्त हुईं संतान सुख और विवाह में आ रही रुकावटें दूर हुईं मन में अद्भुत शांति और संतोष का अनुभव हुआ यह यात्रा अनेक लोगों के लिए आत्मिक मुक्ति का द्वार बन जाती है।
कुल मिलाकर पित्रेश्वर महादेव की यात्रा यह सिखाती है कि देव पूजा के साथ-साथ पितृ पूजा भी उतनी ही आवश्यक है। जो अपने पूर्वजों को स्मरण करता है, उसके जीवन में दिशा, रक्षा और आशीर्वाद स्वयं चलकर आते हैं। उज्जैन की यह धार्मिक यात्रा केवल एक तीर्थ दर्शन नहीं, बल्कि पीढ़ियों को जोड़ने वाली आध्यात्मिक सेतु है।
धर्म नगरी उज्जैन में स्थित पित्रेश्वर महादेव मंदिर को पितृदेवताओं को समर्पित एक अत्यंत दुर्लभ और सिद्ध स्थल माना जाता है। यह मंदिर न केवल भगवान शिव की उपासना का केंद्र है, बल्कि पितृ दोष शांति और पितृ तृप्ति के लिए भी विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहाँ सच्चे मन से की गई पूजा से पितरों का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त होता है और जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं।
भगवान शिव ने पित्रेश्वर महादेव के रूप में प्रकट होकर वरदान दिया कि “जो भी यहाँ अपने पितरों के निमित्त श्रद्धा से जल, तिल, पिंड और मंत्र अर्पित करेगा, उसके पितृ तृप्त होंगे और वंश में सुख-समृद्धि आएगी।”
पित्रेश्वर महादेव केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि यह पितृ भक्ति और कर्तव्यबोध का प्रतीक है। यह धाम स्मरण कराता है कि जिस वंश ने हमें जन्म दिया, उनका सम्मान और तर्पण ही जीवन की सच्ची साधना है।
आज भी मान्यता है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और नियम से पित्रेश्वर महादेव की आराधना करता उनका स्मरण करता है, उसके पितृ प्रसन्न होकर जीवन में सुख, स्वास्थ्य और सफलता का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
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