दुर्लभ रहस्य: अजेय अर्जुन को था माँ भद्रकाली का आशीर्वाद

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हरियाणा का प्रसिद्व सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान होकर करती है भक्तों का कल्याण मनोकामना पूर्ण होने पर यहां पर चढ़ाए जाते हैं घोड़े

वामन पुराण व ब्रह्मपुराण आदि ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के सदंर्भ में चार कूपों का वर्णन आता है। जिसमें चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं। श्रीदेवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास दक्षकुमारी सती से जुड़ा हुआ है।
हरियाणा के एकमात्र प्राचीन शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर कुरुक्षेत्र मैं अर्जुन ने मां भद्रकाली की आराधना कर उनसे अजेय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था कहा जाता है कि इस स्थान पर के देवी कूप में सती का दायां गुल्फ अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा और यहां इस शक्तिपीठ की महत्ता संसार में अतुलनीय हो गई यही वह शक्ति पीठ है जहां महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से मां भद्रकाली की पूजा की और कहा था कि हे भद्रकाली माता मैंने सच्चे मन से धर्म की रक्षा हेतु अर्धमियों पर विजय प्राप्त करने के लिए आपकी पूजा की है अत: हे मातेश्वरी आपकी कृपा से मेरी विजय हो और युद्ध के उपरांत मैं यहां पर घोड़े चढ़ाने आऊंगा। शक्तिपीठ की सेवा के लिए श्रेष्ठ घोड़े अर्पित करूंगा। श्रीकृष्ण व पांडवों ने युद्ध जीतने पर ऐसा ही किया था, कहा जाता है कि इस दरबार में मांगी मनौती कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है श्रद्धालु जन मनौती पूर्ण होने के पश्चात अपने वचनों को निभाने के लिए माता के दर्शनों को अवश्य पधारते है मान्यता पूर्ण होने पर यहां श्रद्धालु सोने, चांदी व मिट्टी के घोड़े चढ़ाते हैं। मां भद्रकाली की सुंदर प्रतिमा यहां शांत मुद्रा में विराजमान है। कहा जाता है की मां के इस शांत स्वरूप के दर्शन करने के पश्चात जन्म जन्मांतर के पापों का हरण हो जाता है हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन मां भद्रकाली की पूजा अर्चना व दर्शन करते हैं। मंदिर के बाहर देवी तालाब है। तालाब के एक छोर पर तक्षेश्वर महादेव मंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण व बलराम के मुंडन संस्कार यहां पर हुए थे।
रक्षाबंधन नवरात्रियों व अन्य विशेष पर्वो पर भारी तादाद में श्रद्धालु यहां मां के दर्शनों के लिए पधारते हैं और अपने जीवन की रक्षा का भार मां के चरणों में सौंप कर यहां पर रक्षा सूत्र बाधते है।श्रद्धालु अपनी रक्षा का भार माता को सौंप कर रक्षा सूत्र बांधते हैं। मान्यता है कि इससे उसकी सुरक्षा होती है। और मां सदा उनके साथ सहायक बनकर रहती है ।

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