राजा पृथु के राज्य से शिल्पकला का विस्तार किया था भगवान विश्वकर्मा ने जानिए और भी रोचक जानकारी

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राजा पृथु क़े राज्य से संसार में शिल्प कला का विस्तार किया भगवान श्री विश्वकर्मा ने संसार के कल्याण के लिए भगवान विश्वकर्मा ने कामधेनु,कल्पवृक्ष,कल्पलता,तथा कायाकल्प जैसै अलौकिक प्रदार्थ प्रदान किये जो अब दुर्लभ होते हुए भी परम पूज्यनीय है,राजा पृथु के प्रंसग में भगवान विश्वकर्मा का विराट स्वरूप का अद्भूत वर्णन मिलता है

पृथ्वी के राजा पृथु को जब यह पता चला कि उनकी सृष्टि भगवान विश्वकर्मा जी की कृपा से स्थिर है,तो उन्होने श्रद्दापूर्वक उनकी स्तुति की पृथ्वी तल को सुन्दर बनाने के उद्देश्य से देवराज इन्द्र से प्रेरणा लेकर जब राजा पृथ्वृ ने भगवान विंश्वकर्मा की द्योर आराधना की तो तपस्या से प्रसन्न विश्वकर्मा ने अद्भूत रुप के साथ उन्हें दर्शन दिए जिनकी चार भुजाएं जिनमे मापक यन्त्र,गज,डोरी,कमण्डल तथा पुस्तक धारण किए हुए थे।उनके मस्तक पर स्वर्ण रत्नजटित मुकुट ,तीन नेत्र,सुन्दर सुडौल शरीर पर यज्ञोपवित धारण किये हुए थे,हंस पर आरूढ़ उनके अतुलनीय रूप को देखकर राजा पृथु गदगदवाणी में उनकी स्तुति करते हुए कहने लगे,हे भगवन आप अखिल विश्व के एकमात्र पालन कर्ता एंव उसे धारण करने वाले है,सम्पूर्ण विश्व आपकी कृपा से नवजीवन प्राप्त करता है,आप सर्वशक्तिमान एवं सचिदानंद महाप्रभु है,सम्पूर्ण चराचर जगत आपके संकेत पर गति करता है।

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आपने ही पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि,आकाश नामक पंचतत्वों सहित अनन्त ब्रहमाण्ड की सृष्टि की है,इस प्रकार भांति भांति प्रकार से राजा पृथु ने भगवान विश्वकर्मां की स्तुति की सहज कृपालु भूमादेव विश्वकर्मा जी स्तुति से अति प्रसन्न हुए ,और पांचों पुत्रों तथा वास्तुपुरुष सहित राजा पृथु की समृद्धि के लिए उनके नगर में लम्बे समय तक वास किया,तथा पृथ्वी को साधन सम्पन कर सृष्टि में कर्म की विशाल आधारशिलाका क्रम् यहां से आगे बढ़ाया

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