सत्य साधक श्री गुरुजी ने किये श्री विभूति नाथ जी के दर्शन, पाण्डव कालीन गाथाओं को समेटे है यह मन्दिर

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भगवान भोलेनाथ की प्रिय नगरी श्रावस्ती में स्थित विभूति नाथ जी का मन्दिर प्राचीन काल से आस्था एवं आपार श्रद्धा का केन्द्र रहा है दूर दराज क्षेत्रों से शिव भक्त यहां पहुंचकर भगवान विभूति नाथ जी के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य करते हैं श्री विभूति नाथ जी कि यह पावन स्थली अपने आप में बड़ी ही अद्भुत व मनोहारी है इस मंदिर से जुड़ी हुई कथाएं भी शादियों के इतिहास को अपने आंचल में समेटे हुए है पांडव कालीन गाथाओं को अपने आभामंडल में समेटे इस पावन स्थल पर जो भी भक्त पधार कर भगवान भोलेनाथ के दर्शन करता है उसे निराली शांति का एहसास होता है यहां पधारने वाले भक्तजन बताते हैं कि महादेव जी के इस दरबार की महिमां का वर्णन शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है

माँ पीताम्बरी के अनन्य भक्त सत्य साधक श्री विजेन्द्र पाण्डे गुरुजी ने बताया नेपाल की सीमा से सटे पवित्र पर्वत श्रेणीयों में उत्तर प्रदेश के उत्तरी क्षेत्र जनपद श्रावस्ती में स्थित महादेव जी का यह मन्दिर महादेव भक्तों के लिए महादेव की ओर से अलौकिक सौगात है। भिनगा  मुख्यालय सिरसिया ब्लाक में स्थित शिवजी की इस प्रिय स्थली के प्रति लोगों में अटूट आस्था है।
मान्यता है कि महाभारत काल में पाण्डवों ने यहाँ शिवजी की आराधना की थी कहा जाता है कि बनवास काल के दौरान पाण्डवों ने अपना कुछ समय यहाँ व्यतीत किया और पाण्डु पुत्र भीम द्वारा एक गॉव की यहाँ स्थापना की जो भीम गाँव कहलाया आज यही भिनगा के नाम से जाना जाता है इसी गाँव के उत्तर दिशा में लगभग 35 किमी० की दूरी पर हिमालय क्षेत्र के सानिध्य में श्री विभूति नाथ जी है

उन्होंने कहा ऐसी मान्यता है कि विभूतिनाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना पांडव  महाबली भीम ने वनवास के अंतिम चरण में की और महादेव से सफल अज्ञातवाश की प्रार्थना की और यहीं से इसके बाद पाण्डव अज्ञात वास को चले गये और विभूति नाथ जी की कृपा से उनका अज्ञातवास सफल रहा
बताते है कि मन्दिर के उत्तरी दिशा में एक सरोवर भी है जो प्राचीन समय में यक्ष सरोवर के नाम से प्रसिद्ध था और इसी सरोवर पर यक्ष व युधिष्ठर का संवाद हुआ था यक्ष महाराज ने यहाँ धर्म राज युधिष्ठर की परीक्षा ली थी सभी को जीवन दान देकर विभूति नाथ जी की कृपा से विराट नगरी का मार्ग दर्शन कराया कहते है कि बाद में कौरवों के साथ दुर्योधन व अंगराज कर्ण पाण्डवों को खोजते हुए यहाँ तक पहुंचे शिव महिमां से प्रेरित होकर सूर्य पुत्र कर्ण ने यहाँ शिवजी की आराधना की तथा मन ही मन प्रार्थना की कि पाण्डवों का अज्ञात वास भंग न हो क्योंकि कर्ण अर्जुन व पाण्डवों से युद्ध के लिए अधीर थे और आगे बारह वर्षो की प्रतिक्षा नहीं कर सकते थे यहीं पर जल की कमी की पूर्ति के लिए उन्होंने महादेव विभूति नाथ जी से प्रार्थना की कर्ण की तपस्या से प्रसन्न महादेव ने जल स्रोत प्रदान किये जिनका जल अक्षय माना जाता है
यहाँ दर्शनों को पहुंचें सत्य साधक श्री विजेन्द्र पाण्डेय गुरुजी ने बताया इस स्थान की महिमां अपरम्पार है
उन्होंने कहा श्री विभूति नाथ जी के दर्शनों से मन को निराली शान्ति मिलती है इस स्थान पर मिलनें वाला सकून अद्भूत है

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