अपनों का साथ और सरकार के संबल से संवरते वरिष्ठ नागरिक

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एक अक्टूबर को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के रूप में मनाती है। यह परंपरा सन् 1990 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रारंभ की थी। दुनिया के हर समाज में बुजुर्गों ने परिवार, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण में अपना जीवन लगाया है, इसलिए उनके सम्मान और समस्याओं पर चिंतन करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है।
बुजुर्ग वे दीपक हैं जो स्वयं जलकर परिवार और समाज को रोशनी देते हैं। हम सब जिस आराम और सुविधा का अनुभव करते हैं, उसके पीछे किसी न किसी बुजुर्ग की मेहनत, त्याग और दूरदृष्टि जुड़ी है। बुजुर्गों ने वह लांचिंग पैड तैयार किया है, जिस पर परिवार का रॉकेट लांच किया जाता है।
जीवन के उत्तरार्ध में उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं। पहली चुनौती स्वास्थ्य की होती है। उम्र बढ़ने के साथ डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, हड्डियों का दर्द, आंख और कान की कमजोरी जैसी बीमारियां हो जाती हैं। डॉक्टरों के चक्कर, दवाइयों का बोझ और अस्पतालों की दूरी उन्हें शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रुप से थका देती है।
दूसरी बड़ी समस्या अकेलेपन की है। आजकल के परिवार छोटे होते जा रहे हैं, बच्चे नौकरी और पढ़ाई के सिलसिले में दूर चले जाते हैं, और बुजुर्ग अपने ही घर में चुपचाप अकेले बैठ जाते हैं। यह अकेलापन कभी-कभी किसी भी बीमारी से ज्यादा भारी पड़ता है।
तीसरी समस्या आर्थिक असुरक्षा है। जिनके पास पेंशन या बचत नहीं है, वे अपने रोजमर्रा के खर्च पूरे करने में भी परेशान हो जाते हैं। कभी-कभी संपत्ति विवाद और घर के भीतर उपेक्षा उनकी पीड़ा को और गहरा बना देती है।
लेकिन समाधान भी हमारे पास हैं। हमें यह समझना होगा कि बुजुर्गों की बेहतरी हेतु सरकार और समाज, दोनों को अपनी भूमिका निभानी होगी। परिवार के युवा यदि रोज़ दस मिनट भी अपने दादा-दादी या नाना-नानी से हंसी-ठिठोली कर लें, तो यह उनके लिए किसी दवा से कम नहीं होगा। मोहल्ले और समाज में वरिष्ठ नागरिक क्लब, टहलने वाले समूह, भजन मंडल, पुस्तक चर्चा जैसी गतिविधियां उन्हें सामाजिक संबल और उत्साह देती हैं।
हमारी सरकार भी वरिष्ठ नागरिकों के लिए कई योजनाएं चला रही है। रेल और बस यात्रा में रियायत, आयकर में छूट, पेंशन योजनाएं, आयुष्मान भारत जैसी स्वास्थ्य सुरक्षा, 1800-180-1253 , हेल्पलाइन नंबर और वृद्धाश्रम जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव भी बुजुर्गों के प्रति काफी संवेदनशील हैं। पिछले वर्ष की दीपावली उन्होंने आनंदधाम के बुजुर्गों के साथ मनायी थी। सरकार द्वारा चलाए जा रहे वृद्धाश्रमों में रह रहे बुजुर्गों के लिए उन्होंने शासकीय अस्पतालों में प्राथमिकता के आधार पर पलंग उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। सत्तर वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों के आयुष्मान कार्ड बन जाने से अब वे भी शासकीय एवं निजी अस्पतालों में अपना उपचार करा पा रहे हैं।
समस्या यह है कि हर बुजुर्ग तक इन योजनाओं की जानकारी नहीं पहुंच पाती। इस दिशा में मध्यप्रदेश की सरकार तो प्रयास कर ही रही है, साथ ही यदि स्वयंसेवी संगठन और युवा मिलकर जागरूकता फैलाएं तो स्थिति बदल सकती है।
विज्ञापन जगत भी बुजुर्गों की छवि को रोचक ढंग से प्रस्तुत कर रहा है। अनेक प्रॉडक्ट अपने प्रचार में बुजुर्ग दंपतियों की मुस्कुराती तस्वीरें दिखाते हैं। संदेश साफ है कि जीवन का असली स्वाद अनुभव और अपनत्व से आता है। चाय की प्याली में जब अनुभव का रस घुलता है, तो उम्र कोई मायने नहीं रखती। यह केवल मार्केटिंग नहीं है, यह एक संदेश है कि बुजुर्ग हमारे जीवन की ऊर्जा और प्रेरणा के स्रोत हैं।
वरिष्ठ नागरिक दिवस हमें यह याद दिलाता है कि आज हम जो अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे, कल वही व्यवहार हमें भी मिलेगा। यह केवल बुजुर्गों का सम्मान करने का दिन नहीं, बल्कि अपने भविष्य को बेहतर बनाने का भी अवसर है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि बुजुर्ग बोझ नहीं, बल्कि घर और समाज की कीमती पूंजी हैं।
सबको संकल्प लेना चाहिए कि हर बुजुर्ग का सम्मान करेंगे, उनकी समस्याएं सुनेंगे, उनके अनुभवों का लाभ लेंगे और सबसे बढ़कर उनकी मुस्कान को बनाए रखेंगे। उनके आशीर्वाद से ही हमारा जीवन सार्थक है।

(विवेक रंजन श्रीवास्तव -विभूति फीचर्स)

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