शिव पार्वती के विवाह का शाक्षी है,त्रियुगीनारायण यहाँ विवाह बन्धन में बधे भूमिका व गणेश

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रुद्रप्रयाग/ जनपद रुद्रप्रयाग की पावन भूमि में स्थित त्रियुगीनारायण गाँव में श्रीनारायण को समर्पित श्री त्रियुगीनारायण मन्दिर की महिमां प्राचीन काल से परम पूज्यनीय है। इस स्थान पर विवाह के बंधन में बधना लोग अपना सौभाग्य मानते है
विगत दिनों हल्दूचौड़ के नारायणपुरम् निवासी श्रीमती कमला देवी व श्री प्रयाग दत्त भट्ट की सुपुत्री आयुष्मती भूमिका का विवाह फरीदाबाद निवासी श्रीमती सरस्वती शर्मा पत्नी स्व० श्री अम्बादत्त शर्मा के पुत्र चिरंजीवी गणेश का विवाह धूमधाम के साथ सम्पन हुआ इस विवाह के दोनों पक्षों के अनेकों लोग शाक्षी रहे
यहाँ यह बताते चलें कि हिमालय के ऑचल में स्थित श्री हरि बिष्णु जी के इस दरबार में मांगी गयी मनौती पूर्णतया फल को प्रदान करनें वाली कही गयी है। कहा जाता है, कि कभी यह स्थान राजा हिमवान की राजधानी थी और इसी स्थान पर भूतभावन भगवान भोलेनाथ जी का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ शिव विवाह का शाक्षी त्रियुगीनारायण के प्रति भक्तजनों में अपार आस्था है।
भगवान् नारायण भूदेवी तथा लक्ष्मी देवी के साथ यहाँ दर्शन देते हैं। विष्णु भगवान को यहाँ माता पार्वती के भ्राता के रुप में भी पूजा जाता है। कथाओं के प्रसंग के अनुसार कहा जाता है, कि इस अलौकिक विवाह में पार्वती के भ्राता का दायित्व कन्यादान हेतु श्री हरि ने निभाया था, आज भी यहाँ विवाह यज्ञ की धुनी युगों- युगों से प्रज्जवलित है।इस धुनी की राख को भक्तजन प्रसाद के रुप में ले जाते है। तथा यहाँ पहुंचकर विवाह के पावन बन्धन में बधते है सुखमय व आनन्द भरे दांपत्य जीवन के लिए यह प्रसाद अखण्ड सौभाग्य का प्रदाता माना जाता है। मंदिर में प्रज्जवलित अखण्ड धूनी के दर्शन का महत्व भी आध्यात्मिक जगत में पापों के समूह को विनाश करनें वाला कहा गया है। यहाँ पवित्र सरोवरों का स्मरण, दर्शन, व जल धारण का महत्व जटिल रोगों के निदान में सहायक हैं। रुद्रकुण्ड, विष्णुकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड व सरस्वती कुण्ड रुपी पवित्र सरोवर आनन्द व सुख के प्रदाता मानें गये है। यहाँ पधारने वाले भक्तजन आस्था व भक्ति के साथ रुद्रकुण्ड में स्नान करके ब्रह्मकुण्ड में आचमन और सरस्वती कुण्ड में पितरों का तर्पण कर अपना जीवन धन्य करते है। उत्तराखंड के देव दरबारों में यह देव दरबार शिव विवाह का साक्षी होने के कारण अति प्राचीन दरबार है।
माता पार्वती की तपोभूमि गौरीकुण्ड से से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस दरबार की महिमां अपरम्पार है।
त्रियुगीनारायण मंदिर, बाबा केदारनाथ जी के मंदिर की स्थापत्य शैली से काफी मिलता-जुलता है।हिमालय की गोद में स्थित श्री त्रिजुगी नारायण मंदिर की महिमा का पुराणों में बड़े सुंदर शब्दों में वर्णन आता है विभिन्न तीज त्योहारों के अवसर पर यहां मेले आयोजित होते हैं इन मेलों में हरियाली मेला बेहद प्रसिद्ध है।
स्कंद पुराण के केदारखण्ड के 43 वे अध्याय में त्रियुगीनारायण आश्रम का बहुत ही सुन्दर वर्णन मिलता है। स्वंय महादेव जी ने कहा है,यह उत्तम क्षेत्र है।
केदारमण्डल के इस क्षेत्र में जाने पर मनुष्य विष्णुस्वरूप हो जाता त्रिविक्रमा नदी के पश्चिमी तट पर नारायण नामक इस सुन्दर तीर्थ के दर्शनमात्र से विष्णुभक्ति बढ़ने लगती है। पुराणों के अनुसार त्रिविक्रमा-तट के ऊपर ढाई कोस के दूरी में यज्ञपर्वत पर नारायण क्षेत्र महान् फलदायक है।वहाँ ब्रह्मा आदि देवताओं ने विष्णुपूजन में मन लगाकर हवनों और नैवेद्यों से उनका यजन किया था त्रियुगीनारायण में महान् मुक्तिदायक अग्नि नित्य दिखायी पड़ती है गौरी और शंकर का शुभ विवाह स्थान होनें से यह तीर्थ परम पूज्यनीय है। तभी से अग्नि यहाँ नित्य प्रज्जवलित है। पुराणों में कहा तो यहाँ तक गया है। करोड़ों पापों से ढका हुआ मनुष्य यहां दस रात उपवास करके श्री हरि का भजन करे तो उसे अभीष्ट सिद्धि की प्राप्ति होती है। और देह त्याग के पश्चात्, तो वह पवित्र होकर वैकुण्ठधाम में जाता है।
उपोध्य दशरात्रं तु पापै: कोटिभिरावृतः। प्राणांस्त्यजति पूतात्मा बैकुण्ठनिलये वसेत।(श्लोक 7)अध्याय 43 नारायण आश्रम महात्म्य
नारायण क्षेत्र से निकले हुए सरस्वती के जल का एक बार भी जो आचमन कर लेता है,वह महापुण्य का भागी बनता है। स्कंद पुराण में कहा गया है। संसार में वे लोग धन्य हैं, जो नारायण के समीप रहकर सरस्वती नदी का जल पीते हैं।
धन्या लोके नरा ये तु नारायणसमीपके । जलं पिबन्ति
उनकी दस पहले की पीढ़ियाँ और दस आगे की पीढ़ियाँ तृप्त हो जाती हैं और प्रसन्नचित्त होकर परम धाम को चली जाती हैं।
तत्र सारस्वते कुण्डे स्नात्वा पापक्षयो भवेत् । प्रदक्षिणं हरेः कृत्वा अश्वमेधफलं लभेत्
यहाँ प्रज्जवलित दिव्य अग्नि में जो मनुष्य एक आहुति भी देते हैं वे मुक्ति पा जाते हैं जो नर यहाँ नारायण के मन्त्र से हवन करता है, वह संसार से पापरहित होकर धन्य होता है और वहाँ का भस्म धारण करके मनुष्य सर्वदेवमय हो जाता है उस भस्म का माहात्म्य अतुलनीय है। उस भस्म के धारणकर्त्ता को देखने से एक वर्ष का किया हुआ पाप जल जाता है।
धन्यो भवति लोकेषु नरः पापविवर्जित: । भस्मनो धारणं कृत्वा सर्वदेवमयो भवेत्
यहाँ ब्रह्मकुण्ड नामक जो परम दुर्लभ तीर्थ है, कहा गया है उसमें स्नान करने से ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। यहाँ के हर कुण्ड एक महातीर्थ है। जिनकी महिमाँ का वर्णन पुराणों में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है।

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