लघुकथा *चौके के बर्तन*

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(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विनायक फीचर्स)

स्टोर के कोने में पड़े पटे ने बेलन से कहा क्या समय आ गया है ,रोटी मेकर बिना हमारे रोटियां बना देता है , यह सुनकर पास ही टिके तवे ने आहें भरते हुए कहा अरे मुए टूं टूं बोलते माइक्रोवेव को देखो इसके चलते तो , ये नई लड़कियां रोटियां गर्म करने के लिए तक इन दिनों मुझे नहीं पूछती ।
तभी बटलोई का दर्द फूट पड़ा, बोली वो दिन भी क्या दिन थे दादी हमें चमाचम रखती थीं, कहीं चूल्हे पर मुझे ज्यादा गर्मी न लगे इस ख्याल से मेरे पेंदे पर मिट्टी का लेप लगाया जाता था,चूल्हे की मद्धिम आंच पर कितनी सोंधी दाल बनती थी मुझ में। अब तो ये प्रेशर कुकर तीन सीटी मारता है और फुर्र से भाप उड़ा डालता है, हुंह। ये सुन किचन प्लेटफार्म पर रखा इलेक्ट्रिक राइस कुकर बोला अरे इसे ही प्रगति कहते हैं,जमाने के बदलाव को समझो,अब किचन पर लड़कियों का एकाधिकार नहीं है, मुझे तो अक्सर मैडम के मिस्टर ही उपयोग किया करते हैं।
मुस्कराते हुए मिक्सर ने कहा तुम लोग अब रचनाकारों की कहावत में ही रहो दोस्तों कि जहां चार बर्तन होंगे खटर पटर होगी ही। रसोई अब नई जनरेशन के किचन प्लेटफार्म में सिमट चुकी है,जहां हम इक्विपमेट्स का राज है । तभी फ्रिज का दरवाजा खोल निकली पानी की बाटल बोली अब बिन पेंदी के लोटे राजनीति में ही मिलते हैं , यह सुन सभी खनखना कर हंस पड़े ।(विनायक फीचर्स)

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