सोमनाथ मंदिर हिंदुओं के लिए एक पावन स्थल है
यहां द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। यह मंदिर गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे है। इसका निर्माण स्वयं चंद्रदेव सोमराज ने किया था, इसका उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। चन्द्रमा ने भगवान शिव को अपना स्वामी मानकर यहाँ तपस्या की थी तथा अपने श्राप से मुक्ति पायी थी,इसलिए आज भी श्री सोमनाथ महादेव को पाप और श्राप से मुक्ति दिलाने वाला माना गया है। यह क्षेत्र प्रभास क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यह वह क्षेत्र भी है जहाँ श्रीकृष्णजी ने जरा नामक व्याध्र के बाण को निमित्त बनाकर अपनी लीला को समाप्त किया था।
पुराणों में वर्णित कथानक के अनुसार हिमालय के राजा दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियों- अश्विनी, भरणी, कृतिका, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेशा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपदा, उत्तरा भाद्रपदा, रेवती और रोहिणी का विवाह चंद्रमा के साथ हुआ था। चंद्रमा रोहिणी से अत्यधिक प्रेम करते थे इस कारण शेष 26 पत्नियां दुखी थी।अपनी यह व्यथा उन्होंने अपने पिता से कही। तब दक्ष प्रजापति ने चन्द्रमा को रोग से ग्रसित होने का शाप दे दिया। शाप से शापित चन्द्रमा ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कड़ा तप किया। शिव ने प्रसन्न होकर चन्द्रमा को पन्द्रह दिनों तक घटते रहने और शेष दिन बढ़ते रहने तथा मुक्ति का वरदान दिया।
शिव के इस स्थान पर प्रकट होने एवं सोम अर्थात चन्द्रमा द्वारा पूजित होने के कारण इस स्थान का नाम सोमनाथ पड़ा।
*सोमलिंग नरो दृष्ट्वा सर्वपापात प्रमुच्यते !*
*लब्द्ध्वा फलंमनोऽभीष्टं मृत: स्वर्गं समीहिते!!*
गुजरात के वेरावल बंदरगाह में राज्य के पश्चिमी छोर पर जटिल नक्काशीदार शहद के रंग का सोमनाथ मंदिर वह स्थान माना जाता है, जहाँ भारत के बारह पवित्र ज्योतिर्लिंगों में से पहला ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ था । माना जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ शिव प्रकाश के एक उग्र स्तंभ के रूप में प्रकट हुए थे। यह मंदिर कपिला, हिरण और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है और अरब सागर की लहरें उस तट को छूती हैं जिस पर इसका निर्माण किया गया है। प्राचीन मंदिर का समय 649 ईसा पूर्व का बताया जाता है, लेकिन माना जाता है कि यह उससे भी पुराना है। वर्तमान स्वरूप का पुनर्निर्माण 1951 में किया गया था।
कहा जाता है कि सोमराज (चंद्र देवता) ने सबसे पहले सोमनाथ में सोने से बना एक मंदिर बनवाया था। बाद में रावण ने इसे चांदी से, कृष्ण ने लकड़ी से और भीमदेव ने पत्थर से बनवाया।
इतिहास की पुस्तकों में प्रसिद्ध फ़ारसी विद्वान अल-बिरूनी के अनुसार 1025 के अंत या 1026 की शुरुआत में, मंदिर को वर्तमान अफ़गानिस्तान के एक क्रूर आक्रमणकारी महमूद ग़ज़नी ने निशाना बनाया था। उस समय, मंदिर इतना समृद्ध था कि इसमें 300 संगीतकार, 500 नर्तकियाँ और 300 नाई कार्यरत थे। महमूद ने दो दिनों की भीषण लड़ाई के बाद शहर और मंदिर पर कब्जा कर लिया जिसमें अनुमानतः 70,000 रक्षक मारे गए। इसके बाद उसने मंदिर की अपार संपत्ति लूट ली और मंदिर को नष्ट कर दिया। इसके बाद विध्वंस और पुनर्निर्माण का चक्र सदियों तक जारी रहा—मंदिर को 1297, 1394 में और अंत में 1706 में मुगल शासक औरंगजेब के अधीन फिर से नष्ट कर दिया गया।
आधुनिक मंदिर का पुनर्निर्माण भारत की स्वतंत्रता के बाद 1950 में उसी स्थान पर किया गया था। पुनर्निर्माण की पहल भारत के पहले उप प्रधानमंत्री भारत रत्न सरदार वल्लभभाई पटेल ने की थी, जिन्होंने 12 नवंबर 1947 को राष्ट्रीय पुनरुत्थान और सांस्कृतिक गौरव के प्रतीक के रूप में इसकी आधारशिला रखी थी।
सोमनाथ मंदिर में जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के ठंडे महीनों में है, हालांकि यह स्थल पूरे साल खुला रहता है और श्रावण माह में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। शिवरात्रि और कार्तिक पूर्णिमा भी यहाँ बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है।
(अंजनी सक्सेना-विभूति फीचर्स)



लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -
👉 वॉट्स्ऐप पर हमारे समाचार ग्रुप से जुड़ें