हल्द्वानी/लालकुआँ/हल्दूचौड़।
सर्दियों की सुनहरी धूप और खुली छतों पर जुटी हंसी-ठिठोली आज फिर गांव-कस्बों की पुरानी यादों को ताज़ा कर रही है। हाथों में नमक-मिर्च मिला नींबू, गर्म धूप का सुख और घंटों तक चलने वाली हंसी ठिठोली का यह नज़ारा इन दिनों तराई-भाबर से लेकर पहाड़ तक हर जगह आम हो चला है।
सर्दियों में धूप सेंकने की यह परंपरा आज केवल मौसम का आनंद भर नहीं, बल्कि सामाजिक मेल-जोल और सामूहिक एकता का पुराना प्रतीक भी है। महिलाएं समूह में बैठकर नींबू सानकर चखती हैं, बच्चे धूप में खेलते हैं, बुजुर्ग यादों की पोटली खोलते हैं और धूप धीरे-धीरे शरीर ही नहीं, दिलों को भी गर्म कर देती है।
धूप में बैठकर नींबू-नमक खाना न सिर्फ स्वादिष्ट होता है बल्कि स्वास्थ्य के लिहाज़ से भी फायदेमंद माना जाता है। यह शरीर में विटामिन-C की पूर्ति करता है और ठंड में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का सरल घरेलू तरीका भी है।
सामाजिक शोधकर्ताओं का मानना है कि इस तरह के मौसमी सामूहिक क्षण गांवों की संस्कृति, सादगी, पारिवारिक बंधन और पड़ोस की भावना को मजबूत बनाए रखते हैं। तेज रफ्तार जीवन और डिजिटल व्यस्तताओं के बीच यह परंपरा फिर से जीवित होना सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
धूप, नींबू और धीमी बातचीतों के बीच बुनी जा रही ये छोटी-छोटी खुशियां बताती हैं कि जीवन हमेशा बड़ी चीज़ों में नहीं—बल्कि ऐसे ही गर्म पलों में मुस्कुराता है।
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