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कमस्यारघाटी ( जनपद बागेश्वर) के प्रसिद्ध निरंकारी संत सोहन सिंह रावत जी का 96 वर्ष की आयु में तीनपानी हल्द्वानी स्थित आवास में 30 जनवरी 2025 को परलोक गमन। वे पिछले लगभग डेढ़ महीने से उम्र सम्बंधी समस्याओं से जूझ रहे थे। गत 31 जनवरी को रानीबाग के चित्रशिला घाट में विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार कर दिया गया। अंतिम संस्कार की प्रक्रिया को निरंकारी मिशन की परम्परानुसार उनके बड़े पुत्र मनमोहन सिंह रावत व छोटे पुत्र हनुमान सिंह रावत ने पूरा किया।
वे पूरी कमस्यारघाटी में वे संत रावत जी के नाम से विख्यात थे और निरंकारी मंडल जगत में डैडी के नाम से जाने और पुकारे जाते थे। वे बड़ाबै राजकीय ( एचौली – पिथौरागढ़) इंटर कॉलेज से 1981 में उप प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुए थे और 1990 में संत निरंकारी मिशन से जुड़े। इनके भाई बलराम सिंह रावत ने इन्हें निरंकारी मिशन से जोड़ा था। जवाहर नगर ( पंतनगर – ऊधमसिंह नगर) के रविदत्त डिमरी से इन्होंने निरंकार का ज्ञान प्राप्त किया। उसके बाद इन्हें निरंकारी मिशन में प्रचारक का दायित्व सौंपा गया।
कुमाऊँ और गढ़वाल के सैकड़ों गॉवों में सरदार प्रीतम सिंह निरंकारी के साथ मिलकर इन्होंने निरंकारी मिशन का प्रचार और प्रसार किया। संत सोहन सिंह रावत जी का जन्म 10 जनवरी 1930 को कमस्यारघाटी के खातीगॉव में हुआ। इनके पिता का नाम केदार सिंह और मॉ का नाम जयन्ती देवी था। ये छह भाई-बहन थे। केदार सिंह, मोहन सिंह, भगत सिंह, बलराम सिंह, वैजयन्ती देवी और आनन्द सिंह।
संत निरंकारी जी ने देवतोली प्राइमरी स्कूल से कक्षा -4 तक की पढ़ाई 1944 में पूरी की और उसके बाद हाई स्कूल तक की पढ़ाई काण्डा से 1947 में पूरी की। उसके बाद 1948 में अल्मोड़ा से जेटीसी ( जूनियर टीचर्स सार्टिफिकैट) का कोर्स किया। उसके बाद 1949 में इनकी नियुक्ति अंग्रेजी अध्यापक के तौर पर डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के अन्तर्गत आने वाले जूनियर हाई स्कूल देवतोली ( कमस्यारघाटी) में हुई। वहॉ इन्होंने 1952 तक अध्यापन कार्य किया। उसके बाद 1955 तक बेरीनाग हाई स्कूल में अध्यापन कार्य किया।
इससे पहले 1946 के माघ महीने में इनका विवाह थालगॉव ( देवलथल) निवासी सूबेदार गिरधर सिंह बसेड़ा और देवकी देवी बसेड़ा की बेटी दमयन्ती बसेड़ा के साथ हुआ। इनके दो पुत्र और दो पुत्रियां हैं। बड़े पुत्र मनमोहन सिंह रावत सहायक खंड विकास अधिकारी के पद से सेवानिवृत हैं, तो छोटे पुत्र हनुमान सिंह रावत आईटीबीपी के सब इंस्पेक्टर पद से सेवानिवृत हैं।
उसके बाद इन्हें शिक्षा विभाग में सरकारी नौकरी मिली। भीमताल में ट्रेनिंग के बाद कृषि अध्यापक के तौर पर तीन महीने ओखलढूँगा जूनियर हाई स्कूल ( काठगोदाम) में नियुक्त रहे। इनका वेतन सौ रुपए था। इस पद को एक्सटेंशन टीचर भी कहते थे। उसके बाद शिक्षा विभाग की ओर से चौबटिया में उद्यान विभाग की 6 महीने की ट्रेनिंग भी की। इस ट्रेनिंग के बाद रावत जी की नियुक्ति 1956 में जूनियर हाई स्कूल गर्खा ( अस्कोट – पिथौरागढ़) में हुई। चार साल तक वहॉ अध्यापन करने के बाद 1960 में इनकी नियुक्ति जूनियर हाई स्कूल मैलती ( भातड़) थल में हुई। जहॉ वे 1970 तक रहे।
इससे पहले 1946 के माघ महीने में इनका विवाह थालगॉव ( देवलथल) निवासी सूबेदार गिरधर सिंह बसेड़ा और देवकी देवी बसेड़ा की बेटी दमयन्ती बसेड़ा के साथ हुआ. दमयन्ती देवी का साथ इनका दांपत्य जीवन आखिरी सॉस तक रहा.
इन्होंने 1970 से 1980 तक गणाई – गंगोली के इन्टर कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। इस दौरान इन्होंने दो साल तक वहॉ बच्चों को संस्कृत और हिन्दी भी पढ़ाई। गणाई गंगोली में रामलीला के मंचन की शुरुआत कराने का श्रेय संत निरंकारी जी को ही जाता है।
इन्होंने रैमजे इंटर कॉलेज अल्मोड़ा से इंटर की परीक्षा प्राइवेट पास की। उसके बाद 1963 में हिन्दी, जनरल इंगलिश, शिक्षा शास्त्र विषय से बीए किया। बाद में संस्कृत विषय से भी अलग से बीए किया। उसके कुछ समय बाद एमए की डिग्री हिन्दी विषय से ली। इन्होंने बीए और एमए की डिग्रियॉ प्राइवेट छात्र को तौर पर अल्मोड़ा डिग्री कॉलेज से प्राप्त की। उस समय कुमाऊँ के सभी डिग्री कॉलेज आगरा विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आते थे।
उस समय की विषम परिस्थितियों में भी शिक्षा को उच्च आदर्श मानने वाले संत सोहन सिंह रावत जी अपने पीछे पत्नी, बेटों, बहुओं , नाती-पोतों का भरा पूरा परिवार शोकाकुल छोड़ गए हैं। उनका मानना था कि हर एक की मृत्यु निश्चित है। इसी कारण किसी के इस संसार से चले जाने पर बिछड़ने का दुख तो होता है, पर इस दुख को कुछ समय बाद किनारे कर के आगे बढ़ने का नाम ही जीवन है।
मेरी इनसे आखिरी मुलाकात गत 17 जनवरी 2025 को हल्द्वानी के तीनपानी स्थित एकता विहार में इनके आवास पर हुई थी। तब मैंने इनके साथ इनके जीवन और तत्कालीन समय’ पर लम्बी बातचीत की थी। वे पुरानी बातें बताते हुए बहुत खुश भी थे और कहने लगे कि आजकल तो अब इस तरह से कोई पूछता ही नहीं है। उन दिनों भी इनका स्वास्थ्य ढीला ही चल रहा था। मैंने उनसे जल्द मुलाकात का वादा किया, पर वे फिर मुलाकात होने से पहले ही विदा हो गये।
उनके निधन पर पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी, लालकुँआ के विधायक डॉ. मोहन सिंह बिष्ट, पूर्व मन्त्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल, लालकुँआ के पूर्व विधायक नवीन दुम्का, हल्द्वानी नगर निगम के पूर्व महापौर डॉ. जोगेन्द्रपाल सिंह रौतेला, कपकोट के विधायक सुरेश गड़िया, कपकोट के पूर्व विधायक ललित फर्स्वाण, उम्मेद सिंह माजिला, हल्द्वानी के नवनिर्वाचित महापौर गजराज सिंह बिष्ट, वरिष्ठ पत्रकार जगमोहन रौतेला, पूर्व खण्ड शिक्षा अधिकारी भगत सिंह रौतेला, पूर्व प्रधानाचार्य मनोहर सिंह रौतेला, भाजपा नेता विनोद मेहरा, ध्यान सिंह रौतेला आदि ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए गहरी संवेदना व्यक्त की है।
संत निरंकारी जी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
@जगमोहन रौतेला



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