श्रीमद् भागवत भगवान का हृदय है: हिम संत प० दुर्गा दत्त त्रिपाठी

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हल्दूचौड़/ हल्दूचौड़ क्षेत्र के अंतर्गत बच्ची धर्मा में इन दिनों श्रीमद्भागवत का आयोजन चल रहा है स्थानीय भक्तों के अलावा दूर-दराज क्षेत्रों से भक्तजन यहां पहुंच कर श्रीमद् भागवत रुपी ज्ञान की गंगा में डुबकी लगाकर स्वयं को धन्य महसूस कर रहे हैं
यहाँ दुम्का बंगर बच्ची धर्मा में 6 जून से 13 जून तक आयोजित श्रीमद् भागवत से समूचे क्षेंत्र का वातावरण आध्यात्म के रंग में रंग गया है श्रीमती सत्यावती देवी पत्नी स्व० श्री गणेश चन्द्र पन्त के आवास पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पाँचवें दिन हिम संत व प्रसिद्ध तत्व ज्ञानी कथा वाचक श्री दुर्गा दत्त त्रिपाठी जी से विस्तृत बातचीज हुई इस अवसर पर उन्होनें कहा जीवन का सार है श्रीमद् भागवत कथा, यह पावन कथा ज्ञान, कर्म, आध्यात्म और जीवन कल्याण का मार्ग प्रदर्शित करती है भवसागर पार होनें का सुन्दर सेतु है।श्रीमद् भागवत कथा इसलिए जीवन में कभी भी श्रीमद् भागवत कथा आयोजन श्रवण का अवसर मिले तो अवश्य ग्रहण करें क्योकि यह भगवान का हृदय है इसका श्रवण अभयत्व को प्रदान करने वाला है।

 

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श्रीमद भागवत कथा की यह महिमां बताते हुए विश्व प्रसिद्ध कथा वाचक श्री त्रिपाठी जी ने कहा भागवत कथा सुनने से जीवन को मुक्ति मिलती है। और आनन्द का संचार होता है।उन्होनें कहा भागवत जीवन का सार है व कलियुग का कल्प वृक्ष, जो हमें जीवन जीने की सरल व अलौकिक राह प्रदान करता है।व अभयता प्रदान करता है। जीवन का ज्ञान श्रीमद्भागवत कथा से .ही प्रकट होता है। उन्होंने मन को बंधन और मुक्ति दोनों का कारण बताया। और कहा कि मन को वश में करके इसे परमात्मा से जोड़ना ही जीवन का सार है।और परमात्मा को प्राप्त करना ही मानव जीवन का उद्देश्य है।भागवत कथा का श्रवण,मनन,व पालन समस्त दु:खों का अंत है जो जीवन को मर्यादित रहने की प्रेरणा देता है।

वार्ता करते उन्होंने आगे कहा मनुष्य काम, क्रोध, मद व लोभ के वशीभूत होकर प्रभु से दूर होता चला जाता है और यही ब्यथा जीवन भर उसका पीछा नहीं छोड़ती है जबकि अगर जीवन की व्यथा को दूर करना हो तो भागवत कथा का श्रवण कर प्रभु के चरणों में अनुराग करना चाहिए। यही जीवन की सार्थकता है

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उन्होंने कहा कि मानव जीवन का प्रमुख उद्वेश्य परमात्मा को प्राप्त करना है। शरीर पाकर अगर आवागमन के बंधन से मुक्त नही हुए तो जीवन बेकार है।प्रभु ने लाखों पापियों का उद्धार किया। बस प्रेम से उन्हें याद करने की जरूरत है लेकिन मानव ऐसे दयालु प्रभु को छोड़कर सांसारिक झंझावातों का सामना कर रहा है। यही उसके दु:खों का मूल कारण है

श्री त्रिपाठी जी ने कहा श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है भगवानशुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग का अभय रस है।इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि व महक है इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।जो सारे संसार में अतुलनीय है

अष्टादश पुराणों में भागवत अभयत्व प्रदान करनें वाला नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। श्रीमद्भागवत में भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है

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श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई आवश्यकता नही रह जाती।श्रीमद्भागवत कथा कलियुग में किसी संजीवनी से कम नहीं है।श्री सूत जी महाराज ने सनकादिक ऋषियों को भागवत की महिमां बताकर धन्य किया। श्रीमद् भागवत उस वृक्ष का अमृत फल है।जो अभयत्व के साथ साथ सहज में ही मुक्ति प्रदान करता है। इसलिए श्रवण योग्य श्रीमद् भागवत ही है जहाँ भगवत कथा हो रही हो वहाँ परमात्मा के सानिध्य का आनंद ही कुछ और होता है
उन्होंने बताया कहा श्रीमद् भागवत की कथा।में तीनों यानी भक्ति, ज्ञान और कर्म का सहज ही समावेश है। उन्होने कहा भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज परीक्षित की रक्षा तब की थी जब वे अपनी माँ उत्तरा के गर्भ में थे अर्थात जो परमात्मा माँ के गर्भ में रक्षा कर सकता है वह आपकी कहीं भी रक्षा कर सकता है। जरुरत है अचल निष्ठ़ा व विश्वास की

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