कहानी *मुक्ति*

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(विवेक रंजन श्रीवास्तव-विनायक फीचर्स)

वह शहर के नामचीन कालेज में हिन्दी के प्रोफेसर हैं। आंखों में चश्मा चढ़ चुका है । सर के बालों में भी इतनी सफेदी तो आ ही गई है कि वे वरिष्ठ माने जाने लगे हैं । अब सभा गोष्ठियों में उन्हें अध्यक्ष के रूप में आखिर तक बैठना होता है। गंभीरता का सोबर सा मंहगा दुशाला लपेट , फुलपैंट के साथ घुटनों तक लम्बा खादी का कुर्ता पहनने का ड्रेस कोड उन्होंने अपना लिया है। वरिष्ठता की उम्र के इस संधि स्थल पर बच्चे पर फड़फड़ाते स्वयं उनके घोंसले बनाने दूर शहरों में उच्च शिक्षा के लिये पढ़ने जा चुके हैं ।
बड़े से घर पर वे और उनकी पत्नी ही रह गई हैं। और रह गई है , घर और उनकी देखभाल करने के लिये निशा । निशा उनके बंगले के निकट ही बस्ती में रहती है । निशा साफ सुथरी हाई स्कूल पास कोई पैंतीस बरस की शांत लेडी है । निशा तब से उनके घर को संभाले हुये है,जब बच्चे स्कूल में थे । कहते हैं न कि यदि किसी को समझना हो तो पता कीजिये कि उनके ड्राइवर , घर के नौकर चाकर कितने लम्बे समय से उनके पास कार्यरत हैं । बच्चे निशा को दीदी कहते हैं और गाहे बगाहे सीधे निशा दीदी को फोन करके उनकी तथा अपनी मम्मी की कैफियत भी पता कर लेते हैं । निशा अधिकार पूर्वक उनकी चाय से शक्कर गायब कर देती है । वह उनकी सोहबत में कोलेस्ट्राल जैसे बड़े और भारी भरकम शब्द सीख गई है , जिनका इस्तेमाल कर उनके लिये अंडे की सफेदी का ही आमलेट बनाती है ।

आशय यह है कि निशा प्रोफेसर के परिवार के सदस्य के मानिन्द ही बन चुकी है । ये और बात है कि निशा का एक शराबी पति और एक नालायक बेटा भी है । जिनका पेट निशा ही पाल रही है । प्रोफेसर साहब के परिवार को देख निशा के अरमान भी होते हैं कि उसका बच्चा भी अच्छा पढ़ लिख ले और जिंदगी में कुछ ठीक ठाक कर ले । निशा अधिकारों के प्रति सचेत है,भले ही वह किचन में खाना बना रही हो पर उसके कान ड्राइंग रूम में टी वी पर चल रहे समाचार सुन रहे होते हैं,क्रिकेट का उसे शौक है , इतना कि खास निशा के लिये प्रोफेसर साहब को हाट स्टार की सदस्यता लेनी पड़ी , क्योंकि वर्ल्ड कप के प्रसारण दूरदर्शन पर नहीं आ रहे थे । निशा ने पार्षद से लड़ भिड़ कर स्वयं के लिये उज्जवला योजना का गैस सिलेंडर तक हासिल कर लिया है । वह आयुष्मान योजना का कार्ड जैसी सरकारी योजनाओं का लाभ भी ले लेती है ।

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उस दिन निशा ने चहकते हुये आगामी छुट्टी को पिकनिक के लिये नर्मदा में लम्हेटा घाट से नौकायन का प्रस्ताव मैडम के सम्मुख रखा । मैडम की या प्रोफेसर साहब की और कोई व्यस्तता थी नहीं , इसलिये निशा का सुझाव सहजता से मान्य हो गया । पिकनिक की बास्केट निशा ने रेडी कर ली । ड्राइवर को भी निशा सीधे इंस्ट्रक्शन दे दिया करती थी । नियत समय पर निशा की अगुवाई में प्रोफेसर साहब का कारवां पिकनिक के लिये निकल पड़ा ।

लम्हेटा घाट पर पहुंच, एक नाविक का इंतजाम ड्राइवर ने कर लिया । और सभी नाव पर सवार हो गये । काले बेसाल्ट के पहाड़ कप काट अविरल धार से अपना मार्ग बनाती नर्मदा युगों युगों से बहे जा रही थी , दोनों तटों के उस अप्रतिम नयनाभिराम सौंदर्य को निहारते प्रोफेसर साहब विचारों में खो गये । नर्मदा अर्वाचीन नदी है , इसका प्रवाह पश्चिम की ओर है । मध्य भारत की जीवन रेखा के रूप में मान्यता प्राप्त नर्मदा चिर कुंवारी सदा नीरा के रूप में प्रतिष्ठित हैं । स्कंद पुराण का पूरा एक खण्ड ही नर्मदा पर है । मगरमच्छ की सवारी करने वाली नर्मदा मैया की परिक्रमा सदियों से आस्था प्रेमी जन करते रहे हैं । इस 1312 किलोमीटर की इस परकम्मा में आस्था , विश्वास , रहस्य , रोमांच , और खतरों के संग प्रकृति के विलक्षण सौंदर्य के सानिध्य के अनुभव निहित हैं ।

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गंगा को ज्ञान , यमुना को भक्ति , ब्रम्हपुत्र को तेज , गोदावरी को ऐश्वर्य , कृष्णा को कामनापूर्ति और लुप्त हो चुकी सरस्वती को आज भी विवेक के प्रतिष्ठान के लिये पूजा जाता है । नदियों की यही प्रतिष्ठा भारतीय संस्कृति की विशेषता है जो जीवन को प्रकृति से जोड़ती है । वे सोच रहे थे विदेश यात्राओं में जब पश्चिम की निर्मल स्वच्छ नदियों का प्रवाह दिखता है तो लगता है कि नदियों की पूजा करने वाले भारत को क्यों नदी स्वच्छता अभियान चलाने पड़ते हैं ।

प्रोफेसर साहब की तंद्रा टूटी , निशा मैडम को बता रही थी कि बीच नदी में यह जो चट्टान है उस पर एक शिवालय है , जहाँ हर मनोकामना पूरी होती है । निशा भोले बाबा से यही मनाने आई है कि उसके पति की शराब से उसे मुक्ति मिले । उसने बताया कि कल तो उसके पति ने इतनी ज्यादा पी ली कि पुलिस उसे सड़क से पकड़कर ले गई है , वह कह रही थी कि यहां से लौटकर उसे छुड़ाने जाना होगा , वह बोली अब और सहन नहीं होता , अब तो न केवल निशा को बल्कि बेवजह अपने ही बेटे को भी मारता है। अब वह चाहती है कि भोले बाबा उसे इस सबसे मुक्ति दें । प्रोफेसर साहब कुछ कहकर निशा की आस्था और भोले बाबा पर भरोसे को नहीं तोड़ना चाहते थे, वे मन ही मन हंस पड़े और सोचने लगे अपनी हर बेबसी को काटने के लिये मनुष्य ने चमत्कार की आशा में भगवान को गढ़ लिया है । क्या आस्था मनोवैज्ञानिक उपचार ही है ?

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शाम हो चली थी , सूरज दूसरे गोलार्ध में सुबह करने यहां से विदा ले रहा था । रक्ताभ लालिमा से आसमान नहा रहा था , वीराने में हवा की सरसराहट और नर्मदा के प्रवाह का कलकल नाद गुंजायमान था । मैडम नाव से ही झुककर अपने हाथों से नर्मदा जल से किलोल कर रही थीं , नाव किनारे की तरफ वापस पहुंचने को थी । शायद निशा भोले बाबा से अपनी प्रार्थना दोहराये जा रही थी , क्योंकि उसकी आँखें उसी शिवालय वाली चट्टान को निहारे जा रहीं थीं ।
पिकनिक मनाकर सब घर पहुंचे , रात हो गई थी , इसलिये मैडम ने ड्राइवर से निशा को उसके घर ड्राप करवा दिया ।

अगली सुबह , प्रोफेसर साहब के घर अजीब सा सन्नाटा था। निशा के घर से आई खबर ने प्रोफेसर साहब को झकझोर दिया। वे और उनकी पत्नी तुरंत ही निशा के घर पहुंचे ।

निशा का घर शोक में डूबा हुआ था। निशा की आंखें सूजी हुई थीं और चेहरा उदास था। मैडम ने निशा को सांत्वना दी और उसके पति के निधन पर श्रद्धांजलि अर्पित की। निशा ने बताया, शराब उसे पी गई। पुलिस ने उसे हवालात में डाल दिया था,जहां उसकी तबियत बिगड़ गई , उसे अस्पताल शिफ्ट कर मुझे खबर दी गई । खबर मिलते ही मैं तुरंत अस्पताल पहुंची, लेकिन वह नहीं बच पाया।

ढ़ाढ़स बंधाने के लिये प्रोफेसर साहब का शब्द कोष उन्हें बौना लग रहा था । उनकी पत्नी ने निशा को धैर्य रखने के लिए कहा और कहा, “तुम हमारे परिवार की सदस्य हो। हम तुम्हारे साथ हैं। निशा की आंखों में आंसू थे, वह जानती थी कि उसके पास अब भी एक परिवार है । प्रोफेसर साहब सोच रहे थे इसे भोले बाबा की कृपा कहें ? या मुक्ति कहें ?(विनायक फीचर्स)

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