सुर सम्राट स्व० श्री गोपाल बाबू गोस्वामी जी का जन्मोत्सव दो फरवरी को आयोजन की तैयारियां जोरों पर

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हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के पवित्र आंचल से देश व दुनियां में अपनी सुधामयी वाणी की धार से पर्वतीय गीतों की अलौकिक छटा बिखेरनें वाले सुर सम्राट स्वर्गीय श्री गोपाल बाबू गोस्वामी यादों की महक में सदैव जीवित रहेगें उनके द्वारा गाये गये गीत आज भी लोकप्रियता के शिखर पर सूर्य की भांति संगीत की दुनियाँ में रोशन है दो फरवरी को उनका जन्मोत्सव धूमधाम से मनाये जानें की तैयारीयां जोरों पर है स्व० श्री गोपाल बाबू गोस्वामी जी के जन्मोत्सव कार्यक्रम को लेकर चौखुटियां की पावन भूमि में संगीत प्रेमियों का जमवाड़ा लगना शुरु हो गया है
उनके पुत्र आशीर्वाद गोस्वामी व अमित गोस्वामी रमेश बाबू गोस्वामीने बताया कि पूज्य पिताश्री का जन्मोत्सव हर वर्ष उनकी मधुर स्मृति में धूमधाम के साथ मनाया जाता है कोरोना काल में आये अवरोध के चलते पिछले वर्षों में यह कार्यक्रम नहीं हो सका लेकिन इस वर्ष मधुर स्मृति में उनके यादों की महक ताजा होगी श्री श्री 1008 हिमालयन पीठाधीश्वर महामण्डलेश्वर स्वामी वीरेन्द्रानन्द महाराज जी मुख्य अतिथि के रूप में यहाँ पहुचंकर सभी को आशीवर्चन प्रदान करेगें कार्यक्रम में वालीवुड के मशहूर गायक पवन दीप राजन के पिता प्रसिद्ध लोक गायक सुरेश राजन के अलावा द्वारहाट के विधायक मदन बिष्ट रानीखेत के विधायक प्रमोद नैनवाल पूर्व विधायक पुष्पेश त्रिपाठी सहित तमाम जनप्रतिनिधी संगीत प्रेमी सहित कई विराट हस्तियां कार्यक्रम में भाग लेंगी

 

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हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड के पवित्र आंचल चौखुटिया की पावन भूमि में जन्मे स्वर्गीय श्री गोपाल बाबू गोस्वामी संगीत की दुनिया की एक ऐसे विलक्षण विराट हस्ती रहे जिसका कोई जबाब नही उनके द्वारा गाए गए गीत आज भी लोकप्रियता की ऊंचाइयों में सूर्य की भांति प्रकाशमान है उनके मधुर कंठ का कोई जवाब नहीं था आज भी जब लोग उनके द्वारा गाये गये गीतों को सुनते हैं तो बरबस ही सुनकर धन्य हो उठते है 2 फरवरी 1941को चौखुटिया में जन्में सुर सम्राट स्व. श्री गोपाल बाबू के गीतों की धमक देश व दुनियाँ में आज भी बरकरार है इनके पिता स्व॰ श्री मोहन गिरी गोस्वामी, तथा माता स्व० श्रीमती चन्द्रा देवी था उनका विवाह 1974 में अल्मोड़ा निवासी विजय सिंह रावत जी की सुपुत्री चन्द्रा रावत के साथ कुमाऊँ के प्रसिद्ध लोक देवता गोलज्यू के दरबार गैराड़ मंदिर में हुआ था उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के आँचल में ही सम्पन्न हुई , उनके चार गाने सोनोटोन कम्पनी से रिलीज हुए, घुघूती ना बांसा, कैलै बजै मुरूली, हाई तेरी रुमाला,जै मय्या दुगाँ भवानी, आपके गीत नजीबाबाद आकाशवाणी से भी प्रसारित किये गए, जनता द्वारा आपको बाबू की उपाधि से नवाजा गया, आपकी तीन संतानें हुए, आशीर्वाद, अमीत, व पुत्री अभिलाषा, 1996 मै ब्रेन हेमरेज के चलते नैनीताल के बीo डी०पाडें अस्पताल में आपका निधन हो गया था लेकिन उनसे जुड़ी यादें आज भी लोगों के जेहन में ताजा है उन्होनें सैकडो गीत गाकर पर्वतीय संस्कृति को नई ऊंचाईयाँ प्रदान की लगभग 500 से अधिक गीत गाकर उन्होने पर्वतीय लोक गीतों की जो ध्वज पताका फहराई उसका कोई जबाब नही
उनकी बहू चन्द्रा गोस्वामी ने अथक परिश्रम से उनकी जीवनी को संकलित कर प्रकाशित किया है जो अलौकिक धरोहर के रूप में पठनीय है उनकी बिरासत को आगे बढ़ाने में उनके पुत्र परिवारीजन पूरी तरह सजग है

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यहाँ यह भी बताते चले सुर सम्राट स्व. श्री गोपाल बाबू गोस्वामी जी एक लोकगायक होने के के साथ-साथ लेखक, उद्घोषक, निबंधकार, रचनाकार, साहित्यकार भी थे उनकी शब्दों में जबरदस्त पकड़ थी जिस दौर में उन्होनें गीतों की शुरुवात करी वह दौर जटिल दौर था क्योकि आधुनिक समय के हिसाब से संचार तकनीकी की दृष्टि से उस दौर में आज के जैसै साधन नही थे फिर भी उनके गीत चारों ओर गूंजते रहे तथा उत्तराखण्ड को विशेष पहचान दिलायी उनके द्वारा गाये गये गीत लोगों के हृदय पटल छाये रहे। उन्होंने जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों को अपने स्वर देकर अनेक लोक प्रिय गीतों की रचना की उनके प्रसिद्ध गीतों में कैले बाजे मुरुली, हाय तेरी रुमाला, बेडू पाको बारो मासा, घुघुती ना बासा, हिमालय को ऊंचा डाना, काली गंगा को कैलो पाणि, जय मैया दुर्गा भवानी, ओ भिना कसिके जानू द्वारहाटा रूपसा रमोती, जैसे कर्ण प्रिय गीत आज भी सदाबहार है

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