सूर्या देवी का अलौकिक दरबार : रहस्य, रोमांच, आस्था और भक्ति का अद्भुत संगम

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सूर्या देवी का अलौकिक दरबार : रहस्य, रोमांच, आस्था और भक्ति का अद्भुत संगम

लेखक : रमाकान्त पन्त

गौलापार/हल्द्वानी। देवभूमि उत्तराखंड की पावन वनों की गोद में स्थित सूर्या देवी मंदिर एक ऐसा आध्यात्मिक शक्ति–केंद्र है जहाँ रहस्य, रोमांच, आस्था और भक्ति का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। यह वह अनोखा शक्ति क्षेत्र है जहाँ शेरावाली माता वट–वृक्ष की गोद में विराजमान हैं, और उनकी दिव्य महिमा दूर–दराज़ तक प्रचलित है। स्थानीय जनमानस के अनुसार, सूर्या देवी के दरबार में पहुँच कर भक्तों के मन का अंधकार स्वतः दूर हो जाता है। देवी की कृपा प्राप्त करने हेतु भक्त प्रतिदिन बड़ी संख्या में यहाँ पहुँचते हैं।

पांडवकालीन गाथाओं से जुड़े दिव्य संकेत

कहा जाता है कि वनवास काल में पांडवों ने अपना काफी समय इसी क्षेत्र में बिताया था और सूर्या देवी की शरण में अनेक दिन साधना की। यह स्थान सदियों से एक शक्ति–स्थल के रूप में पूजनीय है।
सूर्या देवी मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि देवी स्वयं वट–वृक्ष के मध्य विराजित हैं, और श्रद्धालुओं को वृक्ष के भीतर स्थित प्राकृतिक गर्भ–स्थल में झुककर अपनी भावनाएँ अर्पित करनी पड़ती हैं। सदियों पुराना यह वृक्ष अपनी विराट जड़ों और विशाल आकृति के साथ स्वयं देवी की महिमा का प्रमाण प्रतीत होता है।

वट वृक्षों में शक्ति निवास का उल्लेख वेद–शास्त्रों में

देवी भागवत में आता है—

“अश्वत्थ, वट, नीम, आम, कैथ और बेर के वृक्षों में देवी दया, करुणा और कृपा की मूर्ति बनकर निवास करती हैं।”

वट–वृक्षों में विराजित शक्तियों को स्वयं शिव–शक्ति का साकार रूप माना गया है।
इसी स्वरूप में यहाँ माता सूर्या देवी महेश्वरी, सिद्धिकारिणी और कष्ट–निवारिणी के रूप में पूजित होती हैं।

नेवैद्य और विशेष मासिक पूजन परंपरा

पारंपरिक मान्यता है कि माता सूर्या देवी को वर्ष के प्रत्येक मास में भिन्न–भिन्न नेवैद्य अर्पित करने से विशेष फल प्राप्त होता है—

श्रावण: दही

भाद्रपद: शर्करा

अश्विन: खीर

कार्तिक: दूध

मार्गशीर्ष: फेणी

पौष: दूधि कूर्चिका

माघ: गाय का घी

फाल्गुन: नारियल

चैत्र: भावनाओं के निर्मल मोती

वैशाख: गुड़ मिश्रित प्रसाद

ज्येष्ठ: शहद

आषाढ़: नवनीत व महुए का रस
यह परंपरा सदियों पुरानी है और इसे देवी की विशेष साधना का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है।

दिव्य शक्ति :स्थल जहाँ माता ने मना किया भव्य निर्माण

सदियों से मान्यता है कि माता खुले वातावरण में रहना चाहती हैं, किसी भव्य मंदिर में नहीं। कहा जाता है कि एक बार एक भक्त ने यहाँ विशाल मंदिर निर्माण का संकल्प किया, परन्तु उसी रात माता ने दर्शन देकर ऐसा करने से मना किया। यहाँ तक कहा जाता है कि महायोगी हैड़ाखान बाबा ने भी यहाँ मंदिर निर्माण का विचार किया था, किन्तु देवी ने उन्हें भी रोक दिया।
इसलिए आज भी सूर्या देवी का अलौकिक स्थान प्राकृतिक रूप में, वट–वृक्ष की गोद में ही अडिग खड़ा है।

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शेलजाम नदी का तीव्र बहाव भी इस पवित्र वृक्ष को कभी क्षति नहीं पहुँचा सका, जो इस शक्ति–स्थल की दिव्यता को और भी प्रबल करता है।

दिव्यता से परिपूर्ण पर्वत, नदी और वातावरण

सूर्या देवी मंदिर के पास से प्रवाहित शेलजाम नदी की कल-कल ध्वनि और आसपास के पर्वतों की ऊँची श्रेणियाँ क्षेत्र को अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करती हैं।
कहा जाता है कि अनेक साधकों ने यहाँ साधना कर अलौकिक सिद्धियाँ प्राप्त कीं और आज भी यह स्थान साधकों के लिए पवित्र ऊर्जा–कुंड के रूप में माना जाता है।

कैसे पहुँचे सूर्या देवी मंदिर

यह पावन स्थान गौलापार से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यहीं से आगे काल भैरव मंदिर भी स्थित है, और श्रद्धालु माता के साथ महादेव के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त कर परम आनंद अनुभव करते हैं।

सूर्या देवी—सर्वमंगल रूपिणी, सिद्धिदायिनी और महेश्वरी
भक्त इनका स्मरण अनेक नामों से करते हैं
मंगला, वैष्णवी, महामाया, कालरात्रि, काली, कमलवासिनी, शिवा, सर्वमंगलरूपिणी, सिद्धेश्वरी आदि।
कहते हैं कि जो भी भक्त यहाँ सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसके जीवन के तमाम कष्ट दूर हो जाते हैं और वह वैभव, शांति व समृद्धि को प्राप्त होता है।

 : जहाँ पहुँचे मन, वहाँ मिले मुक्ति का मार्ग

सूर्या देवी का यह अलौकिक शक्ति–स्थल सदियों से भक्तों को असीम शांति, ऊर्जा और संतोष प्रदान करता आ रहा है।
यहाँ पहुँचकर मनुष्य की सभी मानसिक व्याधियाँ शांत हो जाती हैं और आत्मा को दिव्य प्रकाश का अनुभव होता है।

सूर्य आराधना से भी जुड़ी है यहाँ की गाथा

दंत कथाओं में सूर्या देवी को सूर्य आराधना, लोकश्रद्धा और प्राचीन परंपरा का अद्भुत संगम के रूप में भी पूजा जाता है उत्तराखण्ड के तराई क्षेत्र में बसे गौलापार, हल्द्वानी का यह शांत और हरा-भरा इलाका, केवल आधुनिक विकास के कारण ही नहीं, बल्कि अपनी प्राचीन धार्मिक पहचान के कारण भी विख्यात है। इसी धार्मिक विरासत का सबसे उज्ज्वल प्रतीक है सूर्या देवी मंदिर, जिसे स्थानीय लोग सूर्य कुंड मंदिर या सूर्य देवता का धाम भी कहते हैं। शेलजाम नदी में जल कुण्ड
सूर्य आराधना की वह दुर्लभ परंपरा संजोए है,

प्राचीनता का प्रमाण : गौलापार का सूर्या देवी मन्दिर

स्थानीय बुजुर्गों के अनुसार सूर्या देवी मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है। पुरानी शिलाकृतियों, पत्थर के चैत्य–अवशेषों और गर्भगृह की शैली से यह अनुमान होता है कि यहाँ कभी एक बड़ा सूर्य-पीठ रहा होगा। सूर्य की पूजा भारत के पूर्वी क्षेत्रों में अधिक मिलती है, लेकिन तराई–कुमाऊँ में इसका होना इसे और विशेष बनाता है। मंदिर में सूर्या देवी का स्वरूप तेज, ऊर्जा, बुद्धि और आरोग्य का प्रतीक माना जाता है। स्थानीय मान्यताएँ कहती हैं चर्म रोग, नेत्र रोग, कमजोरी और सूर्य ग्रह से जुड़े दोषों में लोग यहाँ विशेष जल अर्घ्य देकर प्रार्थना करते हैं। कई श्रद्धालु बताते हैं कि यहाँ पूजा से “चमत्कारिक लाभ” होते हैं।मंदिर में पीले धागे और गुड़–चने चढ़ाकर की गई प्रार्थना शीघ्र फलदायी मानी जाती है।
एक लोकप्रिय कथा के अनुसार, कई दशक पहले एक स्थानीय चरवाहे ने मंदिर क्षेत्र में एक रात अलौकिक प्रकाश देखा। बुजुर्गों ने इसे देवी का संकेत माना और तब से यह स्थल क्षेत्र में ऊर्जा–स्थल के रूप में स्थापित हो गया। आज भी कई भक्त सूर्योदय के समय यहाँ बैठकर ध्यान करते हैं और दिव्य ऊर्जा का अनुभव बताते हैं।
सूर्या देवी मंदिर में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति
चैत्र नवरात्र रवि–पंचमी विशेष उत्साह से मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर यहाँ विशेष स्नान और सूर्य-पूजन की परंपरा पुरातन समय से चली आ रही है।

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गौलापार का सांस्कृतिक धरोहर स्थल
सूर्या देवी मंदिर केवल धार्मिक धाम ही नहीं, बल्कि ग्रामीण सामूहिकताधार्मिक मेलजोल सांस्कृतिक समृद्धि
पारंपरिक भंडारे का मुख्य केंद्र है।
यहाँ आने वाले लोग कहते हैं कि मंदिर परिसर में अद्भुत शांति और सकारात्मक ऊर्जा अनुभव होती है।
“जहाँ सूर्य है, वहाँ जीवन है; जहाँ सूर्या देवी हैं, वहाँ प्रकाश, शक्ति और कल्याण है।”

शक्ति के साथ ही सूर्य आराधना का यह प्राचीन धाम केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि इसके साथ सदियों पुरानी कई लोक–कथाएँ, चमत्कारिक प्रसंग, और अनुभव–कथाएँ जुड़ी हैं जिन्हें गौलापार, काठगोदाम, हल्द्वानी और आसपास के ग्रामीण आज भी बड़े विश्वास के साथ सुनाते हैं। ये कथाएँ सूर्या देवी के अलौकिक अस्तित्व और इस पावन स्थल की दिव्यता को और अधिक दृढ़ करती हैं।
जहाँ सत्य, प्रकाश और संकल्प है—वहाँ सूर्या देवी की कृपा अवश्य प्रकट होती है।”

सूर्या देवी मंदिर, गौलापार : आस्था का एक विशेष केन्द्र

सुबह की पहली किरण जब हिमालय की चोटियों को सुनहली आभा से ढँक देती है, उसी समय गौलापार के शांत, पवित्र वनांचल में स्थित सूर्या देवी मंदिर अपने दिव्य स्वरूप में जाग उठता है। ऐसा प्रतीत होता है मानो स्वयं भगवान सूर्य की तेजस्वी ऊर्जा आसपास के समस्त वातावरण में विलीन होकर इसे एक अद्भुत आध्यात्मिक स्थल में परिवर्तित कर देती हो।

यह मंदिर केवल एक धार्मिक धरोहर नहीं, बल्कि आस्था, उजास और जीवन–ऊर्जा का दीप है। श्रद्धालु मानते हैं कि यहाँ मन में छाए अंधकार का नाश होता है और दुखों का भार सूर्य देवी की कृपा से स्वतः विलीन हो जाता है। स्थानीय जनमान्यताओं के अनुसार, इस स्थल पर माता सूर्या ने अपनी तेजस्वी शक्ति से भटके हुए पशुओं, संकटग्रस्त ग्रामीणों और यात्रियों की कई बार रक्षा की। जो भक्त निस्स्वार्थ भाव से यहाँ प्रार्थना करने आता है, उसके जीवन में आशा का एक नया प्रभात अवश्य होता है।
कहा जाता है—
जिसे सूर्यदेवी का आश्रय मिले, उसके जीवन में कभी अँधेरा स्थायी नहीं रहता।”
माता के मंदिर में जलाया गया दीपक केवल घी से नहीं, बल्कि भक्तों की सद्भावना, विश्वास और समर्पण से प्रज्वलित होता है। यहाँ की प्रातः आरती के समय बजती घंटियों की ध्वनि पूरे गौलापार क्षेत्र को एक विशेष आध्यात्मिक तरंग में डुबो देती है।

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मंदिर परिसर का सौम्य वातावरण

गौलापार के हरे–भरे वन क्षेत्र के बीच यह मंदिर प्रकृति और अध्यात्म का एक सुंदर संगम है। चारों ओर फैली शांति, हल्की हवा की सरसराहट, और ऊँचे पेड़ों से छनती सूर्य की सुनहली किरणें ऐसा अनुभव कराती हैं मानो स्वयं देवशक्ति आपकी मनोभावनाओं को सुन रही हो।
मंदिर का प्राचीन स्वरूप और आसपास का पवित्र कुंड भक्तों को एक विशिष्ट आंतरिक शांति प्रदान करता है। कई श्रद्धालु कहते हैं कि यहाँ बैठकर ध्यान करते समय उन्हें अपने भीतर एक अद्भुत प्रकाश का अनुभव होता है मानो सूर्यादेवी उनके संकल्पों को शक्ति प्रदान कर रही हों।

भक्तों के अनुभव : विश्वास की ज्योति

कई परिवारों के लिए सूर्य देवी सिर्फ एक देवी नहीं, बल्कि जीवन की मार्गदर्शक शक्ति हैं।किसी की बीमारी दूर हुई, किसी का संकट टला, तो किसी के घर में वर्षों बाद सुख–समृद्धि लौटी।यहाँ माता से किए गए मनोकामना–पात्र और संकल्प दीपक भक्तों के हृदय को नई ऊर्जा देते हैं।
एक वृद्ध भक्त कहते हैं—
“सूर्या देवी के दरबार में आँखें बंद करें, तो लगता है भीतर का अंधकार स्वयं बुझने लगता है।” यही कारण है सूर्या देवी को प्रकाश, ज्ञान और ऊर्जा की देवी कहा गया है। माता का आशीर्वाद पाने वाले व्यक्ति के जीवन में—
नयी दिशा मिलती है
दृढ़ संकल्प बढ़ता है
भय और शंकाएँ मिटती हैं
मन–बुद्धि में तेज और प्रसन्नता आती है
उनके आशीष से भक्तों का जीवन नए अवसरों और सकारात्मकता से भर उठता है।
समर्पण का संदेश देती माता सूर्या

सूर्या देवी मंदिर हमें यह संदेश देता है कि—
जहाँ प्रकाश है, वहाँ विकास है… जहाँ विश्वास है, वहाँ समाधान है… और जहाँ सूर्यदेवी का सान्निध्य है, वहाँ दुख कभी अधिक समय तक टिक नहीं सकता।
इस पवित्र धाम में आकर भक्त केवल पूजा नहीं करते, बल्कि अपने भीतर के उजाले को पुनः पहचानते हैं। और यही उजाला उन्हें जीवन की कठिन राहों में आगे बढ़ने की शक्ति प्रदान करता है।

 

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