आस्था व भक्ति का संगम स्थल विनसर महादेव

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बिनसर।अगर आध्यात्म के साकार दर्शन करने हैं, तो हिमालय की छवि ही काफी है। सफेद बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों की शांति आपकी आत्म को छू लेगी, हिमालय के एक ऐसे हिमनद पर मिले एक तीर्थयात्री का कहना था कि एक बार हिमालय आइये यह आपको बार-बार हिमालय बुलायेगा। यह गलत नहीं है, हिमालय के पर्वतों पर छाई चुप्पी अपने में अनेक रहस्य छुपाये हैं। इसके रहस्यों को खोजने के लिए इसकी विशालता सभी को आमंत्रित करती है हिमालय की गोद में आपको अनेक पौराणिक मंदिर मिलेंगे, जिन मंदिरों ने बीते समय की कई कहानियों को खुद में समेट रखा है। ऐसे ही एक मंदिर का नाम है, ‘बिनसर महादेव’।

हिन्दू धर्म के आदि देव भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर महान हिमालय की श्रृंखला में स्थित है। रानीखेत से लगभग 19 किमी. की दूरी पर स्थित इस शिव मंदिर में पहुंचकर भगवान शिव की कृपा से आत्मा दिव्य लोक का अनुभव करती है। मंदिर का आभास ही मन में श्रद्धा की भावना जगाता है। मंदिर में स्थित आदि देव के दर्शन के बाद ही इस स्थान पर आना सार्थक लगता है। यहां पर श्रद्धा एवं विनय से की गयी भक्ति पूर्णतया फलदायी बतलाई जाती है। इस दरबार में मांगी गयी मनौती कभी भी निष्फल नहीं जाती है देवदार से परिपूर्ण छटाओं के मध्य पवित्र पहाड़ों की गोद में बसा हरे-भरे वृक्षों से घिरा यह मंदिर भक्तजनों के लिए भगवान शिव की अनुपम भेंट है। कहा जाता है कि जो भी भक्तजन भगवान शिव के चरणों में यहां पहुंचकर आराधना के श्रद्धा पुष्प अर्पित करता है। उसके रोग, शोक, दःख-दरिद्र एवं महाविपदाओं का हरण हो जाता है, व अतुल ऐश्वर्य एवं सम्पत्ति की प्राप्ति होती है इसलिए वर्षभर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन पहुंचते हैं तथा बड़े ही भक्तिभाव से बताते हैं कि महादेव ने किस प्रकार उनकी मनौती पूर्ण की।

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देशी-विदेशी पर्यटक इस क्षेत्र में आकर भगवान शिव के मंदिर के आसपास के मनोरम दृश्यों से आकर्षित होकर कई-कई दिनों तक इस क्षेत्र में विचरण करते हैं और प्राकृतिक सौन्दर्य का आनंद लेते हैं
भगवान भोलेनाथ की अलौकिक महिमा के पास आकर ही महान संत बाबा मोहनगिरी महाराज ने स्वयं को धन्य समझा व इस स्थान पर भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। सुन्दरता से भरपूर इस मंदिर के एक ओर हरा-भरा देवदार का आच्छादित घना जंगल है, तो दूसरी ओर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों की हरियाली भरी वादियां, विशेष रूप से शिवरात्रि, नवरात्रि, दीपावली, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व चैत्र मास की अष्टमी को श्रद्धालुओं का यहां पर विशाल तांता लगा रहता है। इन पर्वों पर उत्तराखण्ड सहित देश के अनेक भागों से भक्तजन बिनसर महादेव के दर्शनार्थ आते हैं। ये ही ऐसे पर्व हैं। जब क्षेत्र के प्रत्येक गांव से कामकाजी महिलाओं को अपने नन्हें-मुन्ने बच्चों के साथ बाबा भोलेनाथ के दरबार में आने का अवसर मिलता है। क्षेत्रीय लोग इन मेलों को ‘बिनसर कौतिक’ के नाम से पुकारते हैं। आदि देव भगवान शिव की महिमा वाला यह मंदिर ऐतिहासिक पौराणिक मान्यताओं सहित अद्भुत चमत्कारिक किंवदंतियों व गाथाओं को अपने आप में समेटे हुए है

एक जनश्रुति के अनुसार लगभग छः सौ से अधिक वर्ष पूर्व यह शिवलिंग एक झाड़ी के नीचे पाया गया था। सैकड़ों वर्ष पूर्व सौनी ग्राम में मनिहार (चुड़ियों का व्यवसाय करने वाले) लोग रहते थे। उनकी गायें चरने के लिए यहां जंगल में जाया करती थीं। एक मनिहार की दुधारू गाय सुबह तो ठीक दूध देती थी, किन्तु वह सायंकाल दूध नहीं देती थी। मनिहार ने सोचा, हो न हो, जंगल में कोई व्यक्ति उसका दूध निकाल लेता है। इसलिए उसने एक दिन जंगल में गाय का पीछा किया। गाय सायंकाल घर आने के समय एक झाड़ी के पास आकर रुक गयी। मनिहार ने पास जाकर देखा कि गाय एक पत्थर के ऊपर के खड़ी है और उसके थनों से दूध की धारा निरन्तर उस पत्थर विशेष पर पड़ रही है। यह देखकर उसने क्रोध में आकर गाय को धक्का दिया और पत्थर पर उलटी कुल्हाड़ी से प्रहार किया। उस कुल्हाड़ी-प्रहार के निशान मंदिर में स्थापित शिवर्लिंग पर आज भी स्पष्ट दिखाई देते हैं। मनिहर ने उस पत्थर से रक्तधारा बहती देखी। वह बुरी तरह डर गया। उसी रात स्वप्न में उसे यह सुनाई दिया, ‘मनिहारो! इस क्षेत्र में तुम्हारे दिन अब पूरे हो गये हैं। अब तुम यहां नहीं रह सकते। तुम कहीं अन्यत्र चले जाओ।’’

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परिणामस्वरूप मनिहार लोग उस स्थान को छोड़कर रामनगर-खत्याड़ी, ढिकुली जाकर बस गये।मंदिर निर्माण के सम्बन्ध में प्रचलित एक अन्य कथा के अनुसार लगभग छः सौ वर्ष पूर्व इस स्थान के निकट सेनरी नामक गांव में किरोला जाति का एक पैंसठ वर्षीय समृद्ध शिवभक्त निःसंतान होने के कारण बहुत दुखी रहा करता था। एक रात उसे स्वप्न में एक महात्मा ने दर्शन देकर कहा कि कुंचगढ़ में अमुक स्थान पर झाड़ी के नीचे शिवलिंग है। तुम उस स्थान पर मंदिर बनवाकर उस शिवलिंग की प्रतिष्ठा पूजा करो। उससे तुमको पुत्र प्राप्ति होगी। उसने स्वप्न को भगवान आशुतोष का कृपादेश मानकर ग्रामवासियों के परामर्श व सहयोग से निर्दिष्ट स्थान पर महात्मा जी के निर्देशानुसार शिवमंदिर का निर्माण करवाकर प्रतिष्ठा-पूजा की। फलतः उसे पुत्र प्राप्ति हुई तभी से यह देव स्थान विशेष रूप से प्रकाश में आया। उसके वंशज किरोला लोगों के कई परिवार आज भी उसी गांव में रहते हैं। कालांतर में मंदिर के जीर्णक्षीर्ण होते रहने पर उसका जीर्णोद्धार होता रहा है और जीर्णोद्धार कार्य के फलस्वरूप आज इस स्थान का अभिनव विस्तारित रूप विद्यमान है।

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श्री बिनसर महादेव भगवान शिव का पावन क्षेत्र है। यहां सदैव सर्वत्र शिवानुशासन विद्यमान रहता है। सौनी व देवलीखेत के भूमि देवता, चमू देवता (दूध-दही व पशुधन के देवता) जगदम्बा झूला देवी, द्रोणगिरी देवी, कालिका देवी, ऊणी महादेव, ऋषेश्वर, कठपतिया, ताड़ीखेत व चमड़खान के ग्वेल देवता, गुप्तेश्वर महादेव, सिलोर महादेव, दक्षेश्वर महादेव, विभाण्डेश्वर आदि बिनसर महादेव के उपान्तिक देवस्थल हैं। बिनसर महादेव, स्वर्गाश्रम गीता भवन दत्तात्रेय मंदिर के नाम से विख्यात है। यहां पर शिव मंदिर, कालभैरव मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, दत्तात्रेय मंदिर, जगदम्बा माता मंदिर, काली माता मंदिर, सरस्वती मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, हनुमान मंदिर पूजागृह जहां 1970 से अखंड ज्योति प्रदीप्त है

इस स्थान के दर्शन कर लौटे हल्दूचौड़ क्षेत्र निवासी शिव भक्त श्रद्धालु महेश दुर्गापाल कैलाश चौसाली भुवन सिंह महेन्द्र नेगी दीपक दुर्गापाल ने बताया कि बिनसर महादेव के दर्शन करके उन्हें जो अद्भूत शान्ति की प्राप्ति हुई उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है भक्तों ने बताया यह स्थान बेहद मनभावन है यहाँ के कण – कण में भगवान शिव की महिमां दृष्टिगोचर होती है

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