देवी की अदालत कोटगाडी: गोपाल रावत

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गोपाल रावत/ पूर्व दर्जा राज्य मन्त्री

हिमालय की पावन भूमि जनपद पिथौरागढ़ के पाखू नामक क्षेत्र में स्थित कोकिला देवी का दरबार भक्त जनों के लिए माता भवानी की और से उनकी कृपा की अलौकिक सौगात है, अभीष्ट कार्यों की सिद्वियों के लिए इनकी शरणागत सब प्रकार से मनोवांछित फल प्रदान करने वाली कही गयी है, मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगते रहते रहे है, दूर-दराज से श्रद्वालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजकर मनौती मागते है, तथा मनौती पूर्ण होने पर दर्शन के लिए यहा अवश्य पधारते है, यह दंत कथा भी काफी प्रसिद्व है कि माता के प्रभाव से आजादी के पूर्व अग्रेजों के शासन काल में एक जज ने जटिल यात्रा कर यहां पहुंचकर क्षमा याचना की इसके पिछे कारण बताया जाता है।कि क्षेत्र के एक निर्दोष व्यक्ति को जब अदालत से भी न्याय नही मिला तो सामाजिक दंश से आहत होकर स्वंय को निर्दोष साबित करने के लिए करुण पुकार के साथ भगवती कोटगाड़ी के चरणों में विनती की भक्त की करुण विनती के फलस्वरुप चमत्कारिक घटना के साथ कुछ समय के बाद जज ने यहां पहुचकर उसे निर्दोष बताया इस तरह के एक नही सैकड़ो चमत्कारिक करिश्में देवी के इस दरबार से जुड़ी हुई है। हिमालय के देवी शक्ति पीठों में कोकिला माता का महात्म्य सबसे निराला है, सिद्वि की अभिलाषा रखने वाले तथा ऐश्वर्य की कामना करने वाले लोगों के लिए भी यह स्थान त्वरित फलदायक है,
कोकिला कोटगाड़ी देवी को न्याय की देवी के रुप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। जिस किसी को भी कही से जब न्याय की उम्मीद नही रह जाती है, तो वह कोटगाड़ी देवी की शरणागत में जाकर न्याय की गुहार करता है, यह भी मान्यता है,कि कोटगाड़ी देवी उसे अवश्य ही न्याय दिलाती है, जनश्रुति के अनुसार जब सभी देवता कुछ विषेष परिस्थितियों में स्वयं को न्याय देने व फल प्रदान करने में असमर्थ मानते है, तो ऐसी स्थिति में कोकिला कोटगाड़ी देवी तत्काल न्याय देने को तत्पर रहती है, मंदिर के समीप ही अनेक पावन व सुरभ्य स्थल मौजूद है। इस पौराणिक मंदिर में शक्ति कैसे और कब अवतरित हुई इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नही हो पायी है ,दंत कथाओं में कई भक्त मानते है, कि यह देवी नेपाल से यहां आई है इनके विश्राम स्थल अनेकों स्थानों पर है, जहां नित्य इनकी पूजा होती है कोट का तात्पर्य अदालत से माना जाता है, पीड़ितों को तत्काल न्याय देने के कारण ही इस देवी को न्याय की देवी माना जाता है, और इसी भाव से इनकी पूजा प्रतिष्ठा सम्पन कराने की परम्परा है, एक प्राचीन कथा के अनुसार जब योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में कालिया नाग का मर्दन किया और उसे जलाषय छोड़ने को कहा तो कालिया नाग व उसकी पत्नियों ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि, हे प्रभु हमे ऐसा सुगन स्थान बताये जहां हम पूर्णतः सुरक्षित रह सके तब भगवान श्री कृष्ण ने इसी कष्ट निवारिणी माता की शरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था।
कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाड़ी से थोड़ी ही दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है जिसे स्थानीय भाषा में ‘‘काली नाग को डान कहते है, बताते है, पर्वत की चोटी पर स्थित इस मदिर को कभी भी गरुड़ आर-पार नही कर सकते ऐसी परमकृपा है, कोटगाड़ी माता की कालिया नाग पर इस मंदिर की शक्ति पर किसी शस्त्र के वार का गहरा निषान स्पष्ट रुप में दिखाई देता है, लोक मान्यताओं के अनुसार किसी ग्वाले की सुन्दर गाय इस शक्ति पर आकर अपना दूध स्वय दुहाकर चली जाती थी, ग्वाले का परिवार बेहद अचम्भे में रहता था, कि आखिर इसका दूध कहा जाता है। इस प्रकार एक दिन ग्वाले की पत्नी ने चुपचाप गाय का पिछा किया जब उसने यह दृष्य देखा तो धारधार शस्त्र से उस शक्ति पर वार कर डाला इस प्रहार से तीन धाराये खून की बह निकली जो क्रमषः पाताल, स्वर्ग व पृथ्वी पर पहुंची पृथ्वी पर खून की धारा प्रतीक स्वरुप यहां देखी जा सकती है। वार वाले स्थान पर आज भी कितना ही दूध अर्पित किया जाए, दूध शोषित हो जाता है। कालिया नाग मंदिर के दर्शन स्त्रियों के लिए अनष्टिकारी माने जाते है, जिसे श्राप का प्रभाव कहा जाता है। मंदिर के पास ही माता गंगा का एक पावन जल कुण्ड है, मान्यता है, कि ब्रहम व मूहत में माता कोकिला इस जल से स्नान करती है। सच्चे श्रद्वालुओं को इस पहर में यहां पर माता के वाहन शेर के दर्शन होते है, इस प्रकार की एक नही सैकड़ों दंत कथाएं इस शक्तिमयी देवी के बारे प्रचंलित है, जो माता कोकिला के विषेष महात्मय को दर्षाती है, इस दरबार में माता कोकिला के साथ बाण मसूरिया, उडर, घषाण आदि अनेकों देवताओं की पूजा की जाती है स्थानीय गांव के पुजारी पाठक मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य सम्पन करते है। भण्डारी, गोलू चोटिया व वाण के पुजारी कार्की लोग है।
कुमाऊ मण्डल में जनपद नैनीताल के हरतोला क्षेत्र में स्थित कोकिला वन की कोकिला माता इन्ही का रुप मानी जाती है, दारमा घाटी के कनार क्षेत्र में भी माता विराजमान है, भक्तों का यह भी मत है, कि कत्यूर घाटी से इन्हें इनके भक्तजन चंदवषीय राजा लोग नेपाल को ले जा रहे थे .लेकिन माँ को यह स्थान भा गया और वे यही स्थापित हो गयी माता की कृपा से ही कालीय नाग को भद्रनाग नामक पुत्र की प्राप्ति हुई,भदनाग की महिमा का वर्णन मानस खण्ड के 51 वे अध्याय में आता है, इन्होंने माता भद्रकाली की घोर आराधना करके विषेष सिद्वियां प्राप्त की माता कोकिला माता भद्रकाली के पूजन के साथ भद्रनाग व कालिया नाग के पूजन से सर्पभय दूर होता है। ज्ञातव्य हो कि माता भद्रकाली का मंदिर बागेश्वर जनपद के कांडा नामक स्थान से लगभग चार पांच किमी की दूरी पर स्थित है, यह अद्भूत क्षेत्र है, मन्दिर के नीचे गुफा है जिसमें शिव व शक्ति दोनों विराजमान है, कोकिला माता की छत्रछाया में विराजमान काली नाग को भी काली का परम उपासक माना जाता है।
काली सम्पूज्यते विप्रा कालीयने महात्मना
81/11 (मानस खण्ड)
कुल मिलाकर कोकिला माता का दरबार श्रद्वा व भक्ति का संगम है, जो सदियों से पूज्यनीय है।

 

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