“माँ भद्रकाली के नाम सजी कमस्यार घाटी, कलश यात्रा से गूंजेगा महोत्सव”

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माँ भद्रकाली महोत्सव से सराबोर कमस्यार घाटी, तीन दिवसीय उत्सव से जागेगी लोक-संस्कृति

कमस्यार घाटी।
माँ भद्रकाली के पावन आशीर्वाद से आरंभ होने जा रहे भद्रकाली महोत्सव को लेकर सम्पूर्ण कमस्यार घाटी इन दिनों उत्सवधर्मी रंगों में रंगी हुई है। मंदिर प्रांगण से लेकर गांव-गांव तक श्रद्धा, उल्लास और सांस्कृतिक चेतना की अनूठी छटा देखने को मिल रही है। महोत्सव की भव्य शुरुआत माँ भद्रकाली के दरबार से निकलने वाली कलश यात्रा के साथ14 दिसम्बर से होगी। इस पावन यात्रा में श्रद्धालु माँ के जयकारों के साथ माँगलिक गीतों और पारंपरिक वेश-भूषा में सहभागी बनेंगे, जिससे सम्पूर्ण घाटी आध्यात्मिक ऊर्जा से आलोकित हो उठेगी। महोत्सव तीन दिन चलेगा

आयोजकों ने माँ के चरणों में की प्रार्थना

महोत्सव की सफलता को लेकर आयोजक समिति के पदाधिकारियों ने माँ भद्रकाली मंदिर पहुंचकर विधिवत पूजा-अर्चना की और तीन दिवसीय आयोजन के निर्विघ्न सम्पन्न होने की कामना की।
आयोजकों का कहना है कि यह महोत्सव केवल आयोजन नहीं, बल्कि माँ भद्रकाली को समर्पित श्रद्धा का महापर्व है, जिसमें जन-जन की सहभागिता निहित है।

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लोक संस्कृति की जीवंत प्रस्तुति

तीन दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में लोकनृत्य, लोकगीत, पारंपरिक वाद्य, झोड़ा–चांचरी, छोलिया नृत्य जैसी विधाओं के माध्यम से पहाड़ की समृद्ध संस्कृति की सजीव झलक देखने को मिलेगी। स्थानीय कलाकारों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों से आए सांस्कृतिक दल भी अपनी प्रस्तुतियों से महोत्सव को यादगार बनाएंगे।

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प्रवासी भी लौटे अपने देवभूमि द्वार

माँ भद्रकाली महोत्सव का आकर्षण ऐसा है कि दूर-दराज क्षेत्रों में प्रवास कर रहे स्थानीय लोग भी विशेष रूप से अपने गांव लौटे हैं, ताकि वे इस सांस्कृतिक संगम का साक्षी बन सकें।
यह महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था, बल्कि आपसी मिलन, स्मृतियों और सामाजिक एकता का भी उत्सव बन चुका है।

समूचे जनपद में सांस्कृतिक हलचल

महोत्सव को लेकर पूरे जनपद में सांस्कृतिक हलचल दिखाई दे रही है। युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक, सभी वर्गों में उत्साह और सहभागिता का भाव है। व्यापार, पर्यटन और स्थानीय हस्तशिल्प को भी इससे नई पहचान मिल रही है।

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राज्य स्तर पर बनी विशेष पहचान

उल्लेखनीय है कि माँ भद्रकाली को समर्पित यह महोत्सव अब पूरे राज्य में अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान बना चुका है।
यह आयोजन पहाड़ की लोक परंपराओं को जीवित रखने और आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का सशक्त माध्यम बन रहा है।

माँ भद्रकाली के आशीर्वाद से यह तीन दिवसीय महोत्सव
श्रद्धा, संस्कृति और समर्पण का ऐसा उत्सव बने
जो कमस्यार घाटी की आत्मा को नई ऊर्जा से भर दे।

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