सृष्टि के प्रथम पत्रकार ब्रह्मनंदन की तपोभूमि है रुद्रप्रयाग

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रुद्रप्रयाग,/ देवभूमि गढ़वाल में स्थित महादेव की नगरी रुद्रप्रयाग आध्यात्मिक दृष्टि से काफी समृद्ध है। तीर्थाटन का महत्व सदियों से इस क्षेत्र की अलौकिक धरोहर है। पंच प्रयागों में स्थित यह तीर्थ बद्री केदार मार्ग का मुख्य पड़ाव होने के साथ-साथ अनेकों आध्यात्मिक विरासतों को स्वयं में समेटे हुए है। अलकनन्दा व मन्दाकिनी के संगम में यही देवर्षि नारद को संगीत के ज्ञान की प्राप्ति हुई। भगवान रुद्रनाथ का पौराणिक महत्व वाला प्राचीन मंदिर संगम के समीप स्थित है। नारद जी को  देवर्षि , ब्रह्मनंदन , सरस्वतीसुत , वीणाधर
कलिकारण, देवल, ताराभ, नारद, नारद ऋषि, मुनि, कलिकारक, कलिक्रिय, कलिप्रिय; आदि नामों से भी पुकारा जाता है

बद्री-केदार में स्थित इस तीर्थ के बारे में पुराणों में विस्तार से कथाएं आती हैं। केदारखण्ड महात्म्य के 63वें अध्याय में माता अरुन्धती को महर्षि वशिष्ठ रुद्रप्रयाग के बारे में बाते हुए कहत हैं, ‘‘रुद्रप्रयाग में नारद ने तप किया। यही वह रुद्रतीर्थ है, जहां शेष आदि नागों ने महादेव की तपस्या करके आभूषणत्व को प्राप्त किया। वहां आज भी नागों के शुभ भवन हैं। इसी रूद्रतीर्थ में महा तपस्वी नारद ने जाकर भगवान शिव की महान तपस्या की ग्रीष्म ऋतु में पंचाग्नि अर्थात चारों ओर अग्नि जलाकर ऊपर से सूर्यताप से सन्तप्त होकर वर्षा ऋतु में जल धाराओं को सहन करके, हेमन्त ऋतु में तुषार और वायु को सहन करके वे महान तप में प्रवृत्त हुए। निराहार रहकर एक सौ वर्ष तक एक ही पैर पर खड़े रहे शिव के ध्यान में तत्पर रहकर उन्होंने षडक्षर मंत्र ऊं नमः शिवाय का जय करने लगे। नारद जी की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए।

इसी स्थान पर उन्होंने सम्पूर्ण रागों वाले शिवजी से ज्ञान को प्राप्त किया। देवाधिदेव महादेव की अनुपम अलौकिक लीला के प्रभाव से गायन विद्या की प्राप्ति हुई। भगवान शिव से प्राप्त विद्या के द्वारा उन्होंने शिव सहस्रानाम से सर्वप्रथम इस स्थान पर उनकी पूजा की। उनका यह स्त्रोत नारदकृत शिवसहस्त्रनाम से पुराणों में प्रसिद्ध हुआ। त्रैलोक्य दीपक संगीत का विस्तार करते हुए भगवान शिव ने नारद को यह ज्ञान कराया, ‘‘नाद से वर्ण उत्पन्न होता है। वर्ण से पद, पद से वाक्य और वाक्य वचन से यह समस्त जगत व्याप्त है। इसलिए संसार नादात्मक है। देेह में अधिष्ठित सार्वभौमिक ज्ञान, संगीतकला अर्थात तत्व से नाद का विधान, स्वरों के भेद, गायन क्रिया, सप्त स्वर, तालों की संज्ञा, राग गणना में राग वैरव, माल कौशिक, हिदोंल दीपक, श्री राग, मेघमल्हाक सहित सोलह श्रृगारों व सात लोक भूलोक, भुवर्लोक, स्वलोक, जनलोक, तपलोक, महर्लोक, सत्य लोक, पृथ्वी के नौ खण्ड मेघखण्ड, मदन खण्ड, खरिखण्ड, रविखण्ड भरतखण्ड, दधिखंड, उद्यान खण्ड, बाजिखण्ड और तेजखण्ड, साथ ही सातों दीप जम्बूदीप, कुशदीप, शाल्मलिदीप, पुष्करदीप, भ्रमरदीप, गोमेददीप, अभ्युदय दीप सहित श्री नारद ने भगवान रुद्र की नगरी में उनसे पवित्र वीणा ग्रहण कर महान ज्ञान को प्राप्त किया।

अलकनन्दा व मन्दाकिनी नदियों के मध्य जिस शिला पर बैठकर श्री नारायण ने महाज्ञान को शिव से धारण किया। वह शिला बड़ी ही मनोहारी है इस क्षेत्र से बढ़कर महापुण्यदायक तथा * सर्वपापनाशक कोई भी तीर्थ नहीं है। पुराणों में कहा भी गया है* नास्मात्परं महापुण्यं सर्वपापप्रणाशनम्’’ देवभूमि रुद्रप्रयाग अनेक धार्मिक व पर्यटन स्थलों को जाने के मुख्य पड़ाव के साथ-साथ जनपद क्षेत्र का मुख्यलय भी हैं। इस क्षेत्र के आसपास अनेक तीर्थस्थलों की भरमार है। अलौकिक शान्ति के ये तमाम केन्द्र प्रचार-प्रसार के अभाव में गुमनामी के साये में है। यहीं से 16 किमी. की चढ़ाई चढ़ने के बाद हरियाली देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है। समुद्रतल से इसकी ऊंचाई 2286 मीटर है।* ////रमाकान्त पन्त///

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