चण्डिका देवी का महा न्यायकारी दरबार स्थित है उत्तराखंड के इस गांव में

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जनपद पिथौरागढ़ के डीडीहाट क्षेत्र का आध्यात्मिक महत्व बड़ा ही विराट अद्भुत व निराला है यहां की पर्वत श्रृंखलाओं में अनेक महा प्रतापी देवी-देवताओं लोक देवताओं का वास है जिनकी पूजा -अर्चना बड़े ही श्रद्धा भाव से भक्तजन करते हैं

पवित्र पहाड़ियों की चोटियों व तलहटियों में स्थित इन देवी देवताओं की आराधना के लिए दूरदराज क्षेत्रों से भी भक्त जनों का आना जाना लगा रहता है खासतौर से उत्तराखंड से बाहर निवास करने वाले इस क्षेत्र के प्रवासी जब -जब भी अपने गांव में आते हैं तो अपने इष्ट देवी देवताओं की आराधना करना कदापि नहीं भूलते हैं
सौंदर्य से भरपूर पर्वत मालाओं में स्थित देवी देवताओं के अनेकों प्राचीन शक्ति स्थल डीडीहाट क्षेत्र की भूमि में स्थित है इन्हीं प्राचीन शक्ति स्थलों में एक शक्ति स्थल है सुनाकोट के उत्तर साना गांव में स्थित माँ चंडिका देवी का मंदिर यह मंदिर आस्था व भक्ति का अद्भुत संगम है यहां पर माॅ चंडिका देवी परम न्यायकारी देवी के रूप में विराजमान है अन्याय से पीड़ित लोग देवी के दरबार में पहुंचकर प्राचीन काल से न्याय की फरियाद करते आये हैं यह देवी कष्ट निवारणी देवी के नाम से प्रसिद्ध है समस्त संकटों का हरण करने वाली माँ चंडीका का मूल स्थान चण्डिका घाट है चण्डिका घाट में पूजित माँ के एक स्वरूप की यहाँ सुनाकोट क्षेंत्र में बड़े ही भक्ति भाव के साथ पूजा होती है

इस क्षेत्र के आस्थावान भक्त सामाजिक कार्यकर्त्ता पंकज सिंह ने बताया सुनाकोट की भगवती माँ चण्डिका की महिमां अपरम्पार है यहाँ माता की महिमां का वैभव दूर दूर तक निर्मल भाव से लहराता है यहाँ के पुजारी पंत लोग है यह मंदिर न्याय के फरियादियों के लिए एक से बढ़कर एक चमत्कारों का साक्षी है
अनेक दंत कथाओं का साक्षी माँ चण्डिका की महिमां के बारे में कहा जाता है कि इस क्षेत्र से चोरी करने वाला महादण्ड का भागी बनता है बताया जाता है कि एक बार किसी दूसरे गाँव के लोग देवी के इस पावन भूमि से मिर्च चुराकर ले जा रहे थे जो रास्ते में बिच्छू में बन गये माँ के इस चमत्कार को भांपकर सभी ने माँ से क्षमा याचना की
इस तरह से एक नहीं अनेकों चमत्कारिक दंत कथायें यहाँ से जुड़ी हुई है बताया जाता है कि मन्दिर के छत की मरम्मत के समय इस मंदिर की घण्टी अपनें आप बजनें लगी थी रमेश सिंह मनोला इस घटना के साक्षी थे

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उत्तराखंड की धरती में माँ चंडिका के अनेकों प्राचीन स्थल हैं इन्हीं प्राचीन स्थलों में यह स्थल भी परम पूजनीय है
माँ चंडिका की महिमा पुराणों में भारी पड़ी है
*माँ चण्डिका अनन्त रूपों में पूजित है* वाराणसी में गौरी के मुख में निवास करनेवाली देवी विशालाक्षी प्रतिष्ठित हैं और नैमिषारण्यक्षेत्रमें वे लिंगधारिणी नामसे कही गयी हैं इन्हें प्रयाग में ‘ललिता’ तथा गन्धमादनपर्वत पर “कामुकी’ नाम से कहा गया है। वे दक्षिण मानसरोवर में “कुमुदा’ तथा उत्तर मानसरोवर में सभी कामनाएँ पूर्ण करने वाली भगवती ‘विश्वकामा’ कही गयी हैं। उन्हें गोमन्त पर देवी ‘गोमती’, मन्दराचल पर ‘कामचारिणी’, चैत्ररथ में ‘मदोत्कटा’, हस्तिनापुरमें ‘जयन्ती’, कान्यकुब्जमें ‘गौरी’ तथा मलयाचल पर ‘रम्भा’ कहा गया है

वे भगवती एकाम्रपीठ पर ‘कीर्तिमती’ नामवाली कही गयी हैं। लोग उन्हें विश्वपीठ पर ‘विश्वेश्वरी’ और पुष्कर में ‘पुरुहूता’ नामवाली कहते हैं ये देवी केदारपीठ में ‘सन्मार्गदायिनी’, हिमवत्पृष्ठपर ‘मन्दा’, गोकर्ण में ‘भद्रकर्णिका’, स्थानेश्वर में ‘भवानी’, बिल्वक में ‘बिल्वपत्रिका’, श्रीशैल में ‘माधवी’ तथा भद्रेश्वरमें ‘भद्रा’ कही गयी हैं उन्हें वराह पर्वत पर ‘जया’, कमलालय में ‘कमला’, रुद्रकोटि में ‘रुद्राणी’, कालंजरमें ‘काली’, शालग्राममें ‘महादेवी’, शिवलिंगमें ‘जलप्रिया’, महालिङ्गमें ‘कपिला’ और माकोटमें ‘मुकुटेश्वरी’ | कहा गया है ।।
ये भगवती मायापुरी में ‘कुमारी’, सन्तानपीठ में ‘ललिताम्बिका’, गया में ‘मंगला’ और पुरुषोत्तम क्षेत्र में ‘विमला’ कही गयी हैं। वे सहस्राक्षमें ‘उत्पलाक्षी’, हिरण्याक्षमें ‘महोत्पला’, विपाशामें ‘अमोघाक्षी’, | पुण्ड्रवर्धनमें ‘पाडला’, सुपार्श्व में ‘नारायणी’, त्रिकूट में ‘रुद्रसुन्दरी’, विपुलक्षेत्र में “विपुला’, मलयाचल पर देवी ‘कल्याणी’, सह्याद्रि पर्वत पर ‘एकवीरा’, , हरिश्चन्द्र में चन्द्रिका’, रामतीर्थ में ‘रमणा’, यमुना में ‘मृगावती’, नोटतीर्थ में ‘कोटवी’, माधववन में ‘सुगन्धा’, गोदावरी में त्रिसन्ध्या’, गंगाद्वार में ‘रतिप्रिया’, शिवकुण्ड में शुभानन्दा’, देविका तट पर ‘नन्दिनी’, द्वारका में ‘रुक्मिणी’, वृन्दावन में ‘राधा’, मथुरा में ‘देवकी’, पाताल में ‘परमेश्वरी’, चत्रकूट में ‘सीता’, विन्ध्याचल पर ‘विन्ध्यवासिनी’, करवीर क्षेत्र में ‘महालक्ष्मी’, विनायक क्षेत्र में देवी ‘उमा’, वैद्यनाथ धाम में ‘आरोग्या’, महाकाल में ‘महेश्वरी’, इष्णतीर्थों में ‘अभया’, विन्ध्यपर्वत पर ‘नितम्बा’, माण्डव्य क्षेत्र में ‘माण्डवी’ तथा माहेश्वरीपुर में ‘स्वाहा’ नाम से प्रतिष्ठित हैं ॥ वे देवी छगल में ‘प्रचण्डा’, अमरकण्टक में चण्डिका’, सोमेश्वर में ‘वरारोहा’, प्रभास क्षेत्र में पुष्करावती’, सरस्वतीतीर्थ में ‘देवमाता’, समुद्रतट पर पारावारा’, महालय में ‘महाभागा’ और पयोष्णी में पिंगलेश्वरी’ नामसे प्रसिद्ध हुईं ॥वे कृतशौच क्षेत्र में ‘सिंहिका’, कार्तिक क्षेत्र में ‘अतिशांकरी’, उत्पलावर्तक में ‘लोला’, सोनभद्र नद के संगम पर ‘सुभद्रा’, सिद्धवन में माता ‘लक्ष्मी’, भरता श्रमतीर्थ में ‘अनंगा’, जालन्धर पर्वत पर ‘विश्वमुखी’, किष्किन्धापर्वतपर ‘तारा’, देवदारुवन में ‘पुष्टि’, काश्मीर-मण्डल में ‘मेधा’, हिमाद्रि पर देवी ‘भीमा’, विश्वेश्वर क्षेत्र में ‘तुष्टि’, कपालमोचनतीर्थ में ‘शुद्धि’, कामावरोहणतीर्थ में ‘माता’, शंखोद्धारतीर्थ में ‘धारा’ और पिण्डारकतीर्थ में ‘धृति’ ‘ नाम से विख्यात हैं चन्द्रभागा नदी के तट पर ‘कला’, अच्छोदक्षेत्र में ‘शिवधारिणी’, वेणानदी के किनारे ‘अमृता’, बदरीवन में ‘उर्वशी’, उत्तर कुरुप्रदेश में ‘औषधि’, कुशद्वीप में ‘कुशोद का’, हेमकूट पर्वत पर ‘मन्मथा’, कुमुदवन में ‘सत्यवादिनी’, अश्वत्थतीर्थ में ‘वन्दनीया’, वैश्रवणालय क्षेत्रमें ‘निधि’, वेदवदनतीर्थ में ‘गायत्री’, भगवान् शिव के सांनिध्य में ‘पार्वती’, देवलोक में ‘इन्द्राणी’, ब्रह्मा के मुखों में ‘सरस्वती’, सूर्य के बिम्ब में ‘प्रभा’ तथा मातृकाओं में ‘वैष्णवी’ नाम से कही गयी हैं। सतियों में ‘अरुन्धती’, अप्सराओं में ‘तिलोत्तमा’ और सभी शरीरधारियों के चित्तमें ‘ब्रह्मकला’ नामसे ये शक्ति प्रसिद्ध हैं ।श्रीमद् देवी भागवत में इन सुन्दर नामों का वर्णन आता है
माँ चण्डिका को दण्डिनी देवी के नाम से भी पुकारा जाता है दुष्टों को दंड देना और भक्तों को अभयता प्रदान करना माँ का स्वरूप है
*चण्डमुण्डी महास्थाने दण्डिनी परमेश्वरी*

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परम कल्याणी स्वरूप में माँ चण्डी करने में सुदक्षा जो चण्डी ‘मंगलचण्डिका’ नाम से प्रसिद्ध हैं। अथवा भूमि पुत्र मंगल भी जिन चण्डी की पूजा करते हैं तथा जो मंगल की अभीष्ट देवी हैं, उन ‘मंगलचण्डिका’ को भी प्रणाम है श्रीमद् देवी भागवत में वर्णन आता है मनु वंशमें उत्पन्न मंगल नामक एक राजा सात द्वीपों वाली सम्पूर्ण पृथ्वी के स्वामी थे। ये भगवती उनकी पूज्य अभीष्ट देवी थीं, इसी कारण इन्हें ‘मंगलचण्डिका’ भी कहते हैं

पुराणों में स्वंय भगवान शंकर ने कहा है मंगल स्वरूप में मंगल चण्डिका समस्त विपत्तियों का नाश करती है अपनें भक्तों को| हर्ष तथा मंगल प्रदान करती है इस कारण इन्हें शुभस्वरूपिणी, मंगलरूपिणी, समस्त मंगलों की भी मंगलरूपा, आदि नामों से भी जाना जाता है सभी मंगलों की आश्रय- स्वरूपिणी, होनें के नाते चण्डिका मगल चण्डिका मंगल का आधार है इनकी आराधना सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही की दूसरी बार मंगलग्रह ने उनकी पूजा की, तीसरी बार राजा मंगल ने कल्याणमयी देवी का पूजन किया जो हिमालय की भूमि में आज सर्वत्र पूजनीय है
*चण्डमुण्डप्रमथिनि दानवान्तकरे
शिवे नमस्ते विजयें गङ्गे शारदे विकचानने*
हे चण्ड तथा मुण्ड का दलन करनेवाली! हे दानवों का अन्त करनेवाली! हे शिवे! हे विजये ! हे गंगे! हे शारदे! हे प्रसन्नमुखि ! आपको नमस्कार है
*महिमा वर्णितः सम्यक्चण्डिकायास्त्वया मुने*
राजा जन्मेजय ने भी माँ चंडिका की सुंदर गाथा को अपने हृदय में धारण करके उत्तम कीर्ति को प्राप्त किया
पुराणों में कहा गया है ब्रह्मा, विष्णु और महेश – ये सब उनके अधीन रहते हैं। भगवान के सभी अवतार रस्सी से बँधे हुए के समान भगवती से ही नियन्त्रित रहते हैं। भगवान् विष्णु कभी वैकुण्ठ में और कभी क्षीरसागर में आनन्द लेते हैं, कभी अत्यधिक बलशाली दानवों के साथ युद्ध करते हैं, कभी बड़े-बड़े यज्ञ करते हैं, कभी तीर्थ में कठोर तपस्या करते हैं और कभी योगनिद्राके वशीभूत होकर शय्यापर सोते हैं। वे भगवान् मधुसूदन कभी भी स्वतन्त्र नहीं रहते
ऐसे ही ब्रह्मा, रुद्र, इन्द्र, वरुण, यम, कुबेर, अग्नि, सूर्य, चन्द्र, अन्य श्रेष्ठ देवतागण, सनक आदि मुनि और वसिष्ठ आदि महर्षि—ये सब-के- सब शक्ति के अधीन कठपुतली की भाँति सदा भगवती के वश में रहते हैं। जिस प्रकार बैल अपने स्वामी के अधीन रहकर विचरण करते हैं. उसी प्रकार सभी देवता कालपाशमें आबद्ध रहते।
*चण्डिकां चण्डरूपाञ्च चण्डमुण्डविनाशिनीम्। तां चण्डपापहरिणीं चण्डिकां पूजयाम्यहम्*
अत्यन्त उग्र स्वभाववाली, उग्ररूप
धारण करने वाली, चण्ड-मुण्ड का संहार करनेवाली घोर पापों का नाश करनेवाली उन भगवती ‘चण्डिका
की मैं पूजा करता हूँ
*कालिकां शत्रुनाशार्थं पूजयेद्भक्तिपूर्वकम्। ऐश्वर्यधनकामश्च चण्डिकां परिपूजयेत्*
कहा गया है शत्रुओंका नाश करनेके लिये भक्तिपूर्वक’कालिका’ कन्या का पूजन करना चाहिये। धन तथा ऐश्वर्यकी अभिलाषा रखने वाले को ‘चण्डिका’ माता की अर्चना करनी चाहिये
*💥☘️@ रमाकान्त पन्त*

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