हिमालय के महाप्रतापी लोक देवता बेणीनाग की रोचक गाथा

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बेरीनाग की पावन भूमि पर स्थित अनेकों नाग मन्दिर पौराणिक काल से परम पूजनीय है इन तमाम नाग मंदिरों में विराजमान नाग देवताओं की बड़े ही श्रद्धा व भक्ति से पूजा अर्चना की जाती है नाग वंश के परम प्रतापी धर्मात्मा राजाओं को यहाँ नाग देवताओं के रूप में पूजा जाता है नाग देवताओं की अद्भूत कहानियां यहाँ के जनमानस में बेहद लोकप्रिय है बेरीनाग व उसके आसपास की तमाम पहाड़ियों पर नाग देवताओं के शिखर आस्था के पावन केन्द्र है अनेक पर्वतों के नाम नाग देवताओं के नाम पर ही है पर्वतों में विराजमान नाग देवताओं का एक दूसरे के साथ विराट आध्यात्मिक संबंध है आपस में इनकी गाथायें एक दूसरे से जुड़ी हुई है

नागपर्वत के नाम से प्रसिद्ध नागों के इन तमाम रहस्मयमयी क्षेत्रों को पुराणों में नागपुर भी कहा गया है बेरीनाग स्थित नाग देवता का प्राचीन मंदिर आस्था व भक्ति का केन्द्र माना जाता है मान्यता है कि बेड़ीनाग जी के पूजन से अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है सभी मनोरथ पूर्ण होते है यही कारण है यहाँ दर्शन व पूजन के लिए भक्तों की आवाजाही लगी रहती है
जनपद पिथौरागढ़ का बेरीनाग क्षेत्र आध्यात्म जगत में प्राचीन काल से ही काफी प्रसिद्ध है। यह भूभाग ऋषि-मुनियों की तपस्या का केन्द्र रहा है चोटी पर स्थित नाग देवता इस नगर के देवता कहे जाते है यह भी मान्यता है कि यहाँ के नाग देवता अर्थात् नाग राजा भगवान शिव के परम भक्त थे शिव भक्ति के प्रताप से देवता के रूप में पूजित यह देवता वरदायी देवता भी कहे जाते है कहा जाता है कि यहाँ पूजा अर्चना से सर्पभय से भी मनुष्य को मुक्ति मिलती है यहाँ पर मांगी गयी मनौती पूर्णतया फलदायी कही गयी है

हिमालय की गोद में बसे जनपद पिथौरागढ़ का बेरीनाग प्रकृति की अमूल्य धरोहर है यहाँ की सौदर्य शाली पर्वत मालाओं से हिमालय की चोटियों के स्पष्ट दर्शन होते है प्रातः काल व संध्या के समय इस भूभाग से हिमालय पर्वत के दर्शन मन को प्रफुल्फित कर देती है नाग मंदिरों के इतिहास को समेटे देवभूमि की यह पर्वत मालाएं बरबस ही यहाँ आने वाले आगन्तुकों को अपनी ओर आकर्षित करती है
नागभूमि में स्थित नाग मंदिरों का इतिहास पौराणिक गाथाओं को अपने आंचल में समेटे हुए है दंतकथाओं में यह भी कहा जाता है कि तमाम नाग देवता कालीनाग के साथ योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण से पराजित होनें के पश्चात् उनकी आज्ञा से ही नागपुर की पर्वत मालाओं में विराजमान हुए पु
पुराणों में भी नाग पर्वतों का सुन्दर वर्णन मिलता है
हिम पर्वत श्रृंखलाओं में नागवंश का शाशन उत्तराखण्ड से लेकर नेपाल व हिमाचल तक माना गया है इसी कारण भूमिया अर्थात् भूमि के देवता के रूप में भी इन्हें पूजा जाता है

स्कंद पुराण में वर्णित है कि नागों का पहले आवास पाताल में था मानस खण्ड के 79 वें अध्याय में महर्षि व्यास जी ने ऋषियों के समूह को नागों के भूतल में आनें का वर्णन करते हुए बताया गिरिवासी नागों के महायज्ञों में ( आस्तीक आदि) महर्षियों ने किस प्रकार ‘भद्रा’ का आह्वान किया ? उन नागों की निवाम भूमि कहाँ पर है ? तथा वे पाताल को छोड़ इस भूतल में कैसे आयें इस विषय में वर्णित है सत्ययुग के आरम्भ में ब्रह्मा ने सारी पृथ्वी को अनेक खण्डों में विभक्त कर दिया था। उन भूभागों में देवता, दानव, गन्धर्व, अप्सरायें, गुरु, विद्याधर तथा अन्यान्य पशु-पक्षियों आदि को रहने के लिए अनेक स्थान वितरित किये। इसी प्रसंग में बह्मा ने नागों में के लिए हिमालय से सम्बद्ध ‘नागपुर’ नामक स्थान नियत किया। पाताल वासी नागों ने वहीं अपना नगर बना लिया। इन्हीं में बेड़ीनाग जी एक है

नागों की कथाओं में आता है हिम शिखरों के पश्चिम में ‘जीवार’ पर्वत है। वह भगवान् शंकर के अनेक स्थलों से सुशोभित है। वहीं पर देवों और दानवों से सेवित भगवान् शङ्कर ने अपनी गर्दन रखकर जाँचें फैलाईं और सुखपूर्वक विश्राम किया। उसके पश्चिम की ओर नागपुर (नागभूमि ) है। नागराज ने उसकी रचना की है तथा नागकन्यायें वहाँ सेवा करती हैं। ‘जीवार’पर्वत से लेकर ‘दारु’पर्वत पर्यन्त हिमालय-तटवर्ती भाग ब्रह्मा ने नागों के वास हेतु निर्धारित कर दिया है। वहीं पर वे लोग निवास करते हैं। मुनिवरों! वहाँ पर रह कर वे नाग नियम-धर्म-पूर्वक शिव की पूजा करने लगे। ये तमाम पर्वत यज्ञों से शुशोभित थे यहां आयोजित यज्ञों में उस समय नागों के मन में यज्ञ में ब्रह्मा को देखने की इच्छा हुई और वे वनों से सुशोभित ‘गोपीवन’ में गए। वहाँ उन्होंने ‘आस्तीक’ आदि ऋषियों से मन्त्रणा की। नागों ने वहाँ ऋषियों को आमन्त्रित किया। ऋषिगण वहाँ आए वासुकि आदि नाग प्रमुखों ने उनका सत्कार किया। उन्हें विद्विध आसनों पर बैठाया। तब नागों ने भी यज्ञ का निश्चय किया ऋषियों संग यज्ञ सम्बन्धी चर्चा की गई। यज्ञ के आरम्भ का निश्चयः देख नागप्रमुख मूलनारायण’ ने कहना आरम्भः किया दान अन्न जल के बिना यज्ञ कैसे करें इस चर्चा में फेनिल नाग जी की भूमिका महत्वपूर्ण रही व्यासजी ने ऋषियों से कहा मूलनारायण की वाणी को सुन कर नाग आगत ब्राह्मणों के साथ जल को लाने के सम्बन्ध में परामर्श करने लगे। ब्रह्मणों के मार्ग दर्शन में माँ गंगा का पूजन आरम्भ हुआ उनकी कृपा से भद्रा नदी का उद्गम हुआ इस प्रकार भद्रा के प्राप्त होनें पर यज्ञ आयोजित हुआ

यज्ञ के पश्चात् नागसमुदाय ने महषियों द्वारा आशीर्वाद प्राप्त कर ‘गोपीवन’ को छोड़ ‘नागपुर’ में बसेरा बसाया इस तरह नागों का यहाँ प्रथम आगमन भद्रा नदी क्षेत्र व गोपीवन माना गया है नागों ने ही सर्वप्रथम यहाँ माँ भद्रकाली व गंगा माँ की कृपा से भद्रा नदी के उद्गम का आशीष प्राप्त किया
व्यास जी ने वर्णन किया है हिमालय के पवित्र तह पर रमणीय ‘नागगिरि’ है। उसके पश्चिम की ओर ‘गोपीवन’ है। वह मनोहारी तथा नागकन्याओं से सेवित है। ‘गोपीश्वर’ महादेव जी का मन्दिर धपोला सेरा में है मान्यता है कि नाग देवताओं ने गोपेश्वर महादेव व भद्रकाली का हिमालयी भूभाग में यहाँ पहुंचने पर प्रारम्भिक पूजन किया गोपेश्वर महादेव यहाँ जागरूक हैं, जिन्होंने त्रैलोक्य रूपी मण्डप का स्तम्भ स्थापित किया था नागों की गाथाओं के साथ गोपीश्वर महादेव का निराला वर्णन मिलता है

जिस गोपीवन भूभाग में नागों ने यज्ञ किया उस गोपीवन का भी पुराणों में अद्भूत जिक्र आता है।गोपीवन में महादेव जी का प्राचीन मंदिर है।जो श्रद्वा व भक्ति का संगम है।पुराणों में बताया गया है,कि गोपेश्वर का पूजन करने से सारी पृथ्वी की इक्कीस बार परिक्रमां का फल प्राप्त होता है।

*त्रिः सप्तकृत्वा सकलां धरित्रीं प्रकम्य यद्याति महीतलै वै।।*

यज्ञ के बाद नागसमुदाय ने नागपुर में पन्द्रह साल तक कामधेनु की सेवा व तपस्या की नागों की सेवा से संतुष्ट होकर कामधेनु ने नागों से वर मागनें को कहा नागों ने वरदान स्वरुप अनेक गो कुल मांगे।गायों के कुलों को प्राप्त करके नागों ने उनके चरने के लिए गोपीवन को चुना और गायों को चराने एवं उनकी रक्षा का दायित्व नागकन्याओं को सौपा गया।नागकन्याओं ने गोपीवन में रहकर गाय चराने के साथ साथ शंकर का नियमित पूजन आरम्भ किया एक बार शिवलीला के प्रभाव से नागकन्यायें अर्थात् गोपियों की गायें ओझल हो गई गाये ढूढ़ते ढूढ़ते उन्हें इस क्षेंत्र में शाडिल्य ऋषि की गुफा के दर्शन हुए गुफा के प्रति गोपियों की जिज्ञासा बढ़ती गई।मूलनारायण की पुत्री ने नागकन्याओं सहित गुफा में प्रवेश का प्रयत्न किया लेकिन वे गुफा में प्रवेश करने में असफल हुई। तब उन्होंने शाण्डिल्य ऋषि का ध्यान करते हुए कहा यदि हमारी शिव भक्ति सच्ची है।तो हम गुफा को पार कर जाएं।इस तरह शिव कृपा से वे गुफा में प्रवेश पाकर प्रविष्ट हो गई उन्हें आशा थी कि यहां उन्हें शिव के दर्शन होगें निराश गोपिकाये गायों को ढूढते हुए दूसरे जगंल में पहुचीं जहां उन्होंने गायों के झुण्ड के बीच एक ज्योर्तिमय लिंग को देखा व उसकी स्तुति की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उस लिंग से प्रकट होकर गोपियों को दर्शन देकर कृतार्थ किया।इस तरह से शाण्डिल्य ऋषि की इस गुफा व गोपीश्वर को प्रकाश में लाने का श्रेय नागराज मूलनारायण की पुत्री को जाता है।
सनातन धर्म के सजग प्रहरी शाण्डिल ऋषि कश्यपवंशी थे।भगवान श्रीरामचन्द्र जी के पूर्वज अंशुमान के पुत्र राजा दिलीप के ये पुरोहित थे केदारखण्ड़ के ६४वें अध्याय में नारदकृत शिव सहस्त्र नाम में भी शाण्डिल्य ऋषि का नाम आता है।

*शाण्डिल्यो ब्रह्यशौण्डाख्य: शारदो वैद्यजीवन*(श्लोक १२६)

शाण्डिल्य ऋषि की तपोभूमि सनीउडियार व हवनतोली,गोपीश्वर मंदिर के अलावा कमस्यार घाटी व नाग पर्वतों पर अनेक दुर्लभ मंदिर है।यदि इन्हें तीर्थाटन एंव पर्यटन से जोड़ा जाए तो ये आस्था व रोमाचं के प्रमुख केन्द्र बन सकते है।पवित्र नागपुर पर्वत में फेनिल नाग जी का मंदिर भी है।इनका पूजन करने से धन धान्य तथा सुख समृद्धि में बृद्धि होती है।इन्ही क्षेत्रों में कालीय नाग जी के पुत्र भद्रनाग जी का भी वास है।यही वह क्षेत्रं है।जहां नागराज माँ भद्रकाली का पूजन करते है।माँ भद्रवती देवी व भद्रनाग जी का पूजन करने से सर्प भय नही रहता है।भद्रा के दक्षिण की ओर कालीय नाग द्वारा माँ काली का पूजन किया जाता है।चटक,श्वेतक आदि नाम के कई नाग यहां अदृश्य रुप से वास करते है।पुराणों में दिशा निर्देश दिया गया है कि गोपीश्वर का पूजन करने के पश्चात् खर नामक महानाग का पूजन करना चाहिए

*हरं गोपीश्वरं पूज्य शिखरे मुनिसत्तमाः।खराख्यं हि महानागं पूजयेत् सुसमाहित।।(स्कंदपुराण मानसखण्ड अ०८२श्लो०२) *

इन्हीं पर्वतों में विराजमान गोपालक नामक नाग की माहिमां भी पुराणों ने गायी है।यहां विराजमान काली का पूजन समस्त दुख व भय का नाश करने का अचूक अस्त्र बतलाया गया है।कांडा स्थित कालिका का दरबार काली भक्तों के लिए जगतमाता की ओर से अद्भूत सौगात है।अलग अलग नामों से पुकारे जाने वाले पर्वतों में कोटीश्वरी व शाकरीं देवी के भी दरवार है।इनका पूजन दुर्गतिनाशक कहा गया है।नाग पर्वतों पर विराजमान कालीय नाग के बड़े पुत्र फेनिल नाग का पूजन समस्त अमंगल को हरने वाला बताया गया है।त्रैलोक्यनाग की पूजा आरोग्यता को प्रदान करती है।वनछोर के शिखर पर विराजमान मूलनारायण नाग की आराधना दुर्लभ सिद्धियो को देने वाली कही जाती है।भगवान नागराज के प्रति स्थानीय लोगों में गहरी आस्था है।भगवान नारायण से वर पाकर इन्होने सदा के लिए उनका नाम अपने नाम के साथ जोड़ लिया।और अमरता को प्राप्त हुए।इनकी माता का नाम पुगंवी है।नारायणी नदी के किनारे इनका दरवार है।इन पर्वत प्रान्तों में शेषनाग जी भी पूजे जाते है।मूलनारायण के बायी ओर सर्वपापहारी त्रिपुरनाग का पूजन किया जाता है।इन्ही पर्वतों में कालीयनाग के नाती सूचूड़नाग भी पूजे जाते है।नागपर्वतों में विराजमान धौलीनाग,वासुकी नाग,वासुकीनाग की पुत्री वेलावती,इतावर्त,कर्कोटक,पुण्डरीकनाग, कुण्डलीनाग,गौरनाग,शतरुप महानाग,सुन्दरीनाग,हरिनाग,पिगंलनाग,मधुनाग,धनन्जय,सुराष्ट्र नामक नाग भी वरदायी देवता के रूप में पूज्यनीय है।ये नाग यहां सुनन्दा देवी की भी पूजा करते है।
अन्ततः ये सभी नाग मिलकर के अपनी परम आराध्या माँ त्रिपुर सुन्दरी की पूजा करते है।इनका दरवार वेणीनाग के निकट गंगोलीहाट मार्ग पर है।नागराज मूलनारायण ने भगवती त्रिपुरादेवी की आराधना से दुर्लभ सिद्धियों को प्राप्त किया।तथा मूलनारायणी की कृपा प्राप्त की।

कहा जाता है।इन्हीं मूलनारायणी की कृपा से सुग्रीव को राम मिले व बाली द्वारा हड़पा राज्य प्राप्त हुआ।पत्नी ताराहरण से व्यथित वानरराज सुग्रीव ने हनुमान के साथ इन्ही क्षेत्रों में मूलनारायणी देवी की तपस्या की।इन्हीं के वरदान से भगवान श्री रामचन्द्र की सहायता से सुग्रीव ने बाली का बध व तारा की प्राप्ति की।इन्हीं नाग पर्वतों में नागों के आराध्य पुगींश्वर महादेव का मंदिर बेणीनाग के निकट विराजमान है।इनकी आराधना तीनों तापों का नाश करने वाली कही गई है।पुंगीश्वर महादेव जी के दर्शन वैद्यनाथ तथा महाकाल से दसगुना ज्यादा फलदायी माने गये है।

*पूगीश्वरेति विख्यातो देवदेवो महेश्वर*

नाग कन्यायें तथा नाग देवता यहां अमावस्या को खासतौर से शिवजी की पूजा करते है।तथा अन्य दिनो में देव,दानव,गंधर्व अदृश्य रुप से इनकी स्तुति करते है।पुराणों में वर्णन आता है।इस स्थान पर सत्युग में शिव विवाह के पश्चात् देवगणों ने पुंगीफल(सुपारी)से यहां शिव व शक्ति का पूजन किया तभी से यह स्थान पुंगीश्वर के नाम से जगत में प्रसिद्ध हुआ

कुल मिलाकर नागपर्वत व पर्वतों पर विराजमान नागमंदिर व शिव शक्ति पीठों की माहिमां अपरम्पार है।इस भूभाग में बहनें वाली नदियां भद्रा,सरस्वती गंगा,गुप्तसरस्वती,सुभद्रा,चन्द्रिका,सोमवती,मधुमती,शकटी,हीमगिरी,पृथा,भुजंगा,नारायणी,गौरी,जटागंगा,सुमेना, आदि नाम से पुकारी जाती है। गोपीवन की सीमा तथा वहाँ के क्षेत्र अनेक प्रतापी नागदेवताओं के स्थानों का वर्णन भी पुराणों में मिलता है
पवित्र ‘नागपुर’ पर्वत में ‘फेनिल’ नाग का पूजन करनें से धन-धान्य तथा समृद्धि बढ़ती है। वहाँ से ‘भद्रपुर’ तक का क्षेत्र ‘गोपीवन’ कहा जाता है। गोपीश्वर-परिवार के देव, गन्धर्वादि वहां रहते हैं। ‘भद्रा’ के दाहिनो ओर ‘भद्रपुर’ है। वहीं ‘कालीय’ का पुत्र ‘भद्रनाग’ रहता है।वहीं ‘भद्रनाग’ की पूजा करने से इस लोक में सर्प-भय नहीं रह जाता। वहाँ पर गुफा में नागकन्याबों तथा नागों से ‘भद्रवती देवी’ की पूजा की जाती है।
भद्रा क्षेत्र में ‘चटक’, श्वेतक, ‘कालीय’ नाग आदि नागों का वास माना गया है नाग तीर्थों में विराजमान तमाम शिव लिंगों का पूजन दुर्लभ मुक्ति के दाता मानें गये है मूलनारायण व उनकी माता पुंगवी भी नागों की आराध्य है पर्वतों में सुनन्दा, महानन्दा, हरप्रिया आदि देवियाँ नागकन्याओं तथा नागप्रमुखों से पूजित हैं। पिंगलेश्वर महादेव नागों से पूजित होकर जगत का कल्याण नाग पर्वत मालाओं से ही करते है ‘पिङ्गल’ नाग’ ‘गौर’ नाग ‘बालि’ नामक नाग सहित तमाम नागों का वर्णन भी पुराणों में मिलता है

कुल मिलाकर नागभूमि की महिमां अपरम्पार है बेड़ीनाग के आंचल में स्थित तमान पर्वत श्रृंखलाएं सदियों से नाग देवताओं की आराधना व पूजा का केन्द्र रही है

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