लोक कल्याण एवं पर्वतीय संस्कृति को समर्पित था बना के निवासी स्व० श्री गोकुलानन्द पंत का जीवन

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प्रेरक व्यक्तित्व
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लोक कल्याण एवं पर्वतीय संस्कृति को समर्पित था गोकुलानन्द पंत का जीवन
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बेरीनाग/समाज के बीच सदा से ही तमाम ऐसे महान लोग रहे हैं जिनका सम्पूर्ण जीवन मानवता के पोषण, लोक कल्याण एवं लोक संस्कृति के संरक्षण, सम्वर्धन एवं विकास को समर्पित रहा है । यह अलग बात है कि कुछ लोगों का व्यक्तित्व एवं कृतित्व लोक प्रसिद्ध हो जाता है, जबकि कुछ ऐसे भी मानवीय मूल्यों के धनी लोग रहे हैं जो परिस्थितिवष गुमनाम रह जाते हैं। मानवता के ऐसे ही एक साक्षात मूर्ति थे पण्डित गोकुलानन्द पंत, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवीय मूल्यों के पोषण, लोककल्याण एवं पर्वतीय संस्कृति के उन्नयन हेतु समर्पित कर दिया।
जनपद पिथौरागढ़ अन्तर्गत बेरीनाग के ग्राम बना निवासी पण्डित गोकुलानन्द पंत बेशक अलग अलग राजकीय सेवाओं में अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं देते रहे परन्तु सेवाकाल में भी गौ पालन एवं लोककल्याण जैसे कार्यों में सतत अपना धर्म निभाते रहे।

सच्चाई, ईमानदारी एवं कर्तव्य परायणता जैसे अपने इन्हीं मानवीय गुणों के कारण पण्डित गोकुलानन्द पंत अक्सर अपने सहकर्मियों एवं विभागीय अधिकारियों द्वारा कम पसन्द किये जाते थे। यही कारण था कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कई सरकारी नौकरियों को छोड़ना पड़ा । पूरी कर्तव्य निष्ठा व अनुशासन के साथ दायित्वों का निर्वहन करते हुए भी पण्डित पंत लोककल्याण एवं सामाजिक सरोकारों के प्रति संकल्पबद्ध होकर पल पल का सदुपयोग करने का भरसक प्रयत्न किया करते थे । यही कारण था कि समाज के बीच उनकी एक अलग ही पहचान व प्रतिष्ठा थी।
पर्वतीय संस्कृति एवं लोक कलाओं के प्रति उनका सम्मान का भाव उनके द्वारा किए गए अनेकानेक कार्यों में देखा जा सकता था। पर्वतीय संस्कृति के संरक्षण, सम्बर्द्धन एवं प्रचार प्रसार हेतु जन जन को प्रेरित व प्रोत्साहित करना पण्डित गोकुलानन्द पंत का स्वाभाविक गुण था ।
भारतीय गौवंश पर आने वाले भावी संकट का उनको युवावस्था में ही आभाष हो चला था। इसीलिए व गोवंश की सेवा तथा गोवंश की रक्षा के लिए हर किसी से आगे आकर कार्य करने की अपील किया करते थे। आज देशभर में हो रही गौवंश की दुर्दशा को देखते हुए कुछ पुराने लोग उनकी दूरदृष्टि को लेकर चर्चा करते देखे जाते हैं।
पल पल अपने जीवन को सार्थक करने का जुनून पाले पण्डित गोकुलानन्द पंत का 18 अगस्त 1980 को देहावसान हो गया । सचमुच उनका जीवन आज समाज के लिए प्रेरणा व प्रोत्साहन का अविरल स्रोत है। ऐसे महान धर्म प्रेमी, संस्कृति प्रेमी व मानवता प्रेमी कर्मयोगी के जीवन से प्रेरणा लेकर समाज व राष्ट्र के के लिए कार्य करना आज की महत्वपूर्ण जरूरत है।

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