रहस्य :चम्पावत के इस क्षेंत्र में स्थित है, खाटू नरेश के पिता घटोत्कच का उद्वार करनें वाली शक्ति का भव्य दरबार

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अखिलतारिणी / चम्पावत/
प्राकृतिक सौन्दर्य से समृद्ध उत्तराखण्ड में तीर्थाटन का सदियों से ही विशेष महत्व रहा है। शिव शक्ति के विभिन्न रूपों की पूजा से लेकर भूमि व कुल देवताओं की पूजा के लिए प्रसिद्व उत्तराखण्ड में कदम-कदम पर देवालयों की भरमार है
। इसी भूमि पर जहां केदारनाथ, बद्रीनाथ गंगोत्री, यमुनोत्री, जैसे प्रस्रिद्व तीर्थ स्थल हैं, वहीं जागेश्वर धाम, बागनाथ, चित्रेश्वर, रामेश्वर, पाताल भुवनेश्वर, हेमकुण्ड साहिब, रीठा साहिब, नानकमत्ता जैसे पावन तीर्थ स्थल भी हैं। इसके अतिरिक्त गंगोलीहाट की महाकाली कोटगाड़ी की कोकिला देवी, चितई के गोलू जैसे महिमामयी देवी-देवताओं के मंदिर तो गांव-गांव में हैं
इसी कारण उत्तराखण्ड में तीर्थाटन दैवीय व सांसारिक दोनों ही दृष्टियों से बहुत महत्वपूर्ण है। राज्य के गढ़वाल मण्डल में जहां प्रस्रिद्व चार धााम तीर्थयात्रियों के आकर्षण का विषय है वहीं कुमाऊं में ग्राम एवं लोक देवताओं की महिमा श्रद्वालुओं की धार्मिक चेतना को जगाती है। यहां एक से बढ़कर एक कल्याणकारी, न्यायकारी, प्रतापी ग्राम देवता वास करते हैं जिनमें से कुछ पौराणिक गाथाओं से जुड़े हैं तो अधिकतर मध्यकाल और उत्तर मध्यकाल के इतिहास को प्रतिबिंबित करते हैं

इन लोक देवताओं के विभिन्न रूपों में अद्भुत समानता है। लगभग सभी देवता अपने अराधक से प्रसन्न होने पर विभिन्न प्रकार से उनका कल्याण करते हैं और अपनी अवमानना करने वाले पर अप्रसन्न होने पर उसका अनिष्ट करते हैं। उनका यह प्रयोजन अपने अराधक को सत्य व धर्म के मार्ग पर लाना होता है। कुल मिलाकर कल्याण करना ही इनका कार्य है। इनकी महिमा कुछ ऐसी है कि जो इन पर अटूट आस्था रखता है या अपने अधिकारों के लिए कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं काट सकता वे न्याय के लिए इनकी शरणागत हो जाते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जब असाध्य रोगों के समक्ष हार मान लेता है तो रोगी के परिजन इनके पास आकर उसके स्वस्थ होने व लम्बी उम्र की कामना लेकर इनकी शरणागत आते हैं क्योंकि लोक देवताओं के मंदिर आने पर अराधकों की कामना पूरी होती है इसलिए आज के वैज्ञानिक एवं भौतिकतावादी युग में भी लोगों का उन पर अटूट विश्वास बना हुआ है यह केवल मोक्ष अथवा मुक्ति का मार्ग नहीं है बल्कि सामाजिक, सांसारिक ज्ञान का भी माध्यम है। ग्राम देवताओं, लोक देवताओें न्याय देवताओं की यह विरासत तीर्थाटन को व्यापक आयाम देती है। इन मंदिरों की यात्राओं व दर्शन से सहज में ही इनकी कृपा प्राप्त होती है और क्षेत्र के इतिहास और सामाजिक विकास को जानने समझने का मौका मिलता है

इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लगभग सभी ग्राम देवताओं का प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध शिव या शक्ति से जोड़ा जाता है। इस कारण यहां ग्राम देवताओं के मंदिरों के आस-पास शिव व शक्ति दोनों की पूजा अवश्य होती है। नैनीताल में चित्रेश्वर, भीमेश्वर, अल्मोड़ा में जागेश्वर, नागनाथ, बागेश्वर में बागनाथ, नीलेश्वर, बैजनाथ, चम्पावत में बालेश्वर, क्रांतेश्वर, मानेश्वर, पिथौरागढ़ में रामेश्वर, भुवनेश्वर, मल्लिकार्जुन, शैलेश्वर, कोटेश्वर, गुप्तेश्वर, थलकेदार आदि अनगिनत देवी-देवता इसी श्रेणी में आते हैं

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अगर आध्यात्म के साकार दर्शन करने हों तो हिमालय की छवि ही काफी है फिर इस देव भूमि के तो कहने की क्या जहां तैतीस करोड़ देवी-देवताओं के प्रत्येक देवालय के प्रति श्रद्वालुओं की अनूठी व गहरी श्रद्वा है। पौराणिक गाथाओं को जोड़ें तो देव दरबारों के बारे में स्थानीय जनमानस में मान्यता प्रचलित है कि जो भी भक्तजन व श्रद्धालु इन देवालयों में अपनी आराधना के श्रद्वापुष्प अर्पित करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा उसके रोग, शोक, दुःख, दरिद्रता एवं विपदाओं का भी हरण हो जाता है। सांसारिक कामनाओं की चाहत वाले भक्त पुत्र, ऐश्वर्य आदि की मनोकामना को लेकर यहां पधारते है
विरक्त व्यक्ति मुक्ति की इच्छा से तथा कर्तव्य में प्रवीण व्यक्ति मन, वचन एवं कर्म से प्रभु में समर्पण भाव रखते हुए अपने पूर्वजों, पितरों के कल्याण एवं लोक कल्याण की महान कामना को लेकर कृपानिधान से उनकी कृपा की प्रार्थना करते हैं। *उत्तराखण्ड की धरती पर अखिलातारिणी मंदिर ऐसा दिव्य व पावन स्थान है जहां पहुंचकर आत्मा अनायास ही अलौकिक आभा के दर्शन करती है। इस स्थान पर पहुंचकर सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त व्याबिायां यू शांत हो जाती हैं। जैसे सूर्य की रोशनी पाते ही अंधकार का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। अखिल ब्रहृमाण्ड की नायिका के रूप में भक्तजन श्रद्वापूर्वक इस देवी की स्तुति करते हैं

जनपद चम्पावत के लोहाघाट शहर से लगभग 18 किमी. की दूरी पर पवित्र पहाड़ी की चोटी पर स्थित अखिलतारिणी माता का मंदिर सदियों से ऋषि-मुनियों की आराधना केन्द्र रहा है। कहते हैं कि इस देवी दरबार में मांगी गई मनौती कभी भी व्यर्थ नहीं जाती है। जो भी , निष्ठा भाव से इनकी पूजा-अर्चना करता है, जगत माता उनकी समस्त अभीष्ट अभिलाषायें पूर्ण करती है। धन-धान्य, सुख-सम्पदा, संतान, भक्ति व मुक्ति की अभिलाषा को लेकर दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। इस प्राचीन शक्ति पीठ की महिमा अंनत है

सदियों से भक्तों का यहां आवागमन लगा रहा है। स्कंद पुराण के मानस खण्ड में इस स्थान का बडा़ ही मनोहारी उल्लेख मिलता है। इस स्थल पर शक्ति का अवतरण कब और कैसे हुआ इसके स्पष्ट प्रमाण नहीं हैं, कहा जाता है कि सर्वप्रथम महाबली भीम ने अखिलतारिणी देवी के दर्शन किए इन्हीं की कृपा से भीम पुत्र घटोत्कच को परम गति मिली। इसलिए इन्हें भीमा देवी भी कहते हैं*

लोहाघाट के क्षेत्रान्तर्गत खिलपति गांव में स्थित अखिलतारिणी मंदिर के बारे में अनेक दंत कथाऐं भी प्रचलित हैं। कहते हैं कि जब महाबली भीम ने इस देवी की आराधना व दर्शन किए। उसके पश्चात यह स्थान काफी समय तक गोपनीय रहा। इसके प्रकाश में आने के बारे में पुजारी बताते हैं कि प्राचीन समय में खिलपति गांव में बोहरा परिवार रहता था। उनके पास एक सुंदर गाय थी जो इस शक्ति स्थल पर आकर अपना दूध स्वयं अर्पित कर देती थी। गाय स्वामी यह सोचकर अचंभित रहता था, आखिर इसके थनों का दूध कहा जाता है। यही सोचकर उसने एक दिन गाय का पीछा किया इस स्थान पर आकर गाय ठहर गई और स्वयं अपना दूध शक्ति को अर्पित करने लगी। इस दृश्य को देखकर उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। उसने कुल्हाड़े से शक्ति पर वार कर डाला जिसका घाव आज भी शक्ति स्थल पर देखा जा सकता है

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अखिल ब्रंहमााण्ड की नायिका माता अखिलतारिणी मंदिर के आसपास अनेक पौराणिक देव स्थल व तीर्थ स्थलों की भरमार है। 8-10 किमी की दूरी पर स्थित घटोत्कच मंदिर चैकी गांव के निकट है जो महाभारत की वीर गाथा को प्रकट करती है। अखिलतारिणी मंदिर में पूजा का दायित्व पाण्डेय लोग संभाले हैं। पूर्व में विण्डा गांव के तिवारी लोग यहां पूजा-अर्चना का कार्य देखते थे बाद में यह पूजा इन्होंने पुल हिन्डोला के पाण्डेय लोगों को दान में दे दी

मंदिर के पूर्व में 8 किमी की दूरी पर स्थित हरेश्वर महादेव का मंदिर शिव भक्तों के लिए शक्ति की अलौकिक सौगात है। 12 किमी. उत्तर में चमदेवल ;चैमूद्ध का शिवालय भी माता अखिलतारिणी की शोभा में चार चांद लगाता है। 18 किमी दूर शैल गांव में स्थित अम्बिका देवी का दरबार भी माता अखिलातारिणी की महिमा का बखान करती है। इस मंदिर में भगवती की विलक्षण मूर्ति है जो काले पत्थर की है। जिसमें विशेष चमक है। समीपस्थ स्थित मड़लक गांव की भगवती के दर्शन भी जन्म जन्मान्तरों के पापों का हरण करती है।

अखिलतारिणी देवी का एक रूप पुल हिन्डोला का पूर्णागिरी मंदिर भी है जो 9 किमी की दूरी पर है। सिलिंग गांव के बाौनी लोग इस देवी के दरबार में पूजा-अर्चना करते हैं। इस संबंध में एक कथा आती है- प्रति वर्ष इस गांव के लोग माता पूर्णागिरी के दर्शन हेतु जाते थे। एक बार पूस माह में भयानक बर्फ के गिर जाने से सारे रास्ते बंद हो गये और वे पूर्णागिरी नहीं जा सके। रात्रि में तभी गांव के एक व्यक्ति को स्वप्न में देवी ने दर्शन दिए तथा बताया कि इस पहाड़ी में मेरी एक सोने की प्रतिमा है उसे खोजकर वहीं स्थापित करो। पूर्णागिरी की दिव्य मूर्ति यहां स्थापित हुई। पूर्णागिरी शक्ति पीठ के दर्शन तभी पूर्ण माने जाते हैं। ईड़ाकोट के तिवारी लोग यहां पुजारी हैं। पुल हिन्डोला का पूर्णागिरी दरबार अखिलतारिणी महिमा का बखान करती है

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देवी के अखिलतारिणी दरबार में अषाढ़ी मेला धूमधाम के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि आदि अन्य अवसरों पर भी यहां मेले आयोजित होते हैं। यहां से देवी के दो डोले उठते हैं, जो खिलपति गांव का भ्रमण कर मंदिर में वापस आते हैं। इस दौरान गांव में तीन दिन का भण्डारा होता है। मंदिर परिसर में देवी का एक ऐतिहासिक झूला भी है। जो लकड़ी का है तथा 25-30 फिट उचा है और मोटी जंजीर लगी हुई है। पूजा स्थल मुख्य भवन के भीतर की तरफ है जहां पर देवी शक्ति रूप में स्थित है। बाहर के कक्षों में कालिका देवी की प्राचीन मूर्ति है जिसके ठीक सामने बाबा सिध्द्वनाथ की धूनी है। भीतर रहने का कमरा है। धर्मशाला भी मंदिर परिसर में है जो स्थानीय जनता के सहयोग से बनाया गया है। *मोस्टा देवी का वीर गण है जिसका स्थान मंदिर के बायी तरफ प्रांगण में झूले के पास है। मंदिर में अष्ट धातु का एक ऐसा घण्टा है जिसकी आवाज चम्पावत तक सुनाई देती है। देवदार, अखरोट, उतीश, बांज, बुरांश की शोभा से मंदिर की महिमा अतुलनीय लगती है। दिगालीचैड़ कस्बे से भी मंदिर को आने का रास्ता है जो डेढ़ किमी पैदल मार्ग है। पोखरी, बोहरा, फाकर, बुंगा, विण्डा, बांकू, ढूंगा, चैड़ला, खिलपति सहित अनेक गांवों के लोगों की मां के प्रति अटूट श्र्रा है। वर्ष भर में दो बार मां का डोला उठने से मंदिर की छटा बड़ी ही निराली लगती है। आषाढ़ पूर्णिमा को चलने वाले दो डोलों में सवार करने वाले लोगों पर अखिलतारिणी व कालिका का अवतरण होता है। इस मंदिर में नौली देवी का गण ऐड़ी देवता व ब्यानबाुरा का स्थल भी उपस्थित है। लोहाघाट, चम्पावत, टनकपुर, बनबसा, पिथौरागढ़, खटीमा आदि क्षेत्रों से भी लोग यहां आते हैं

स्कद पुराण के मानस खण्ड में भी इस स्थान का वर्णन मिलता है। भीम ने इसी देवी की कृपा से अखिल लोक उ्रार करने वाली भगवती से वर प्राप्त करके दानवीर कर्ण के हाथों महाभारत के यु्रद्व में मारे गये। अपने पुत्र घटोत्कच को भूमण्डल में प्रतिष्ठित किया। देवपुष्पों से सुपूजित अखिलतारिणी की कृपा के प्रताप से ही समग्र संसार का उद्व्रार करने वाली भगवती पृथ्वी का भेदन कर प्रकट हुई तथा उन्हें परम शांति व वीरता का वरदान देकर अंतध्र्यान हो गई, तभी से यह देवी जगत के कल्याण के लिए यहीं पर दिव्य शक्ति के रूप में स्थित है। नैसर्गिक सौन्दर्य के धनी इस स्थान से नंदा देवी, पंचाचूली, आदि के दर्शन होते है*//// रमाकान्त पन्त////

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