अवंतिका मंदिर कमेटी के अध्यक्ष जीवन कबड्वाल ने दी शारदीय नवरात्रियों की शुभकामनाएं, बताई माँ की महिमां

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लालकुआँ/ माँ अवंतिका मंदिर कमेटी के अध्यक्ष जीवन कब्ड्वाल ने समस्त क्षेत्रवासियों व माँ अवंतिका के भक्तों को शारदीय नवरात्रियों की शुभ कामनाएं देते हुए सभी के लिए मंगल कामनाएं की है यहाँ अवंतिका मंदिर में एक मुलाकात के दौरान श्री कब्ड्वाल ने कहा
कुमाऊं के प्रवेश द्वार लालकुआं नगर में अवन्तिका माता के रुप में स्थित देवी बड़े ही श्रद्वा के साथ पूजित है, मान्यता है, कि मर्यादित, संयमित नीतिसम्मत, सिद्वान्तपरक, मूल्यपरक कुल मिलाकर शान्तिपूर्वक जीवन यापन व्यतीत करने के इच्छुक भक्तों के लिए माँ अवन्तिका की शरणागति ही हर तरह के संशय, संकट ,भय ,रोग,शोक दुःख ,दरिद्र, एवं विपदाओं से मुक्त करती है। शिव के साथ माँ का पूजन वैभव को प्रदान करने वाला कहा गया है।
उन्होंनें कहा मानस भूमि के प्रवेश द्वार लालकुआं नगर के उतर दिशा में माता अवन्तिका का दरबार सदियों से पूज्यनीय है, इस स्थान पर माता अवन्तिका की पूजा कब से होती है यह सब अज्ञात है। कुछ देवी भक्तों का मानना है, कि पूर्वकाल में घनघोर जंगल होने के कारण वट वृक्ष के नीचे माता की एक छोटी सी मूर्ति थी जिसे भक्तजन ललिता देवी, वन देवी, कोकिला देवी, त्रिपुर सुन्दरी आदि तमाम रुपों में अपनी अपनी भावनाओं से इस देवी को पूजते थे, हिमालय की और जाने वाले ऋषि मुनी संतजन इस क्षेत्र में विश्राम के दौरान इस देवी को विभिन्न रुपों में पूजकर हिमालय भूमि की और प्रस्थान करते थे, इसलिए नगर का यह क्षेत्र हिमालयी संस्कृति की आधार भूमि मानी जाती है, देवभूमि हिमालय के बारे में पुराणों में कथन है
अस्त्युन्तरस्या दिशी देवतात्मा हिमालयों नाम नगाधिराजः’

उन्होंनें कहा वास्तव में महाशक्ति ही परम ब्रहमा के रुप में हिमालय भूमि के कदम-कदम पर प्रतिष्ठित है, यहां पधारने वाले लोग सबसे अधिक श्रद्वा स्वभाविक रुप से माता श्री के चरणों में अर्पित करते है, हिमालय भूमि में प्रवेश से पूर्व यहां से गुजरने वाले आगन्तुकों को अवन्तिका माता के दर्शन के बाद ही हिमालय दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, हिमालय भूमि में नौ दुर्गाओं दस महाविघाओं सहित अनके स्वरुपों में उनकी लीलाऐं दृष्टिगोचर होती है
परमात्मास्वरुपिणी अवन्तिका शक्ति मन्दिर परिसर में आज धीरे-धीरे अनेकों देवी देवताओं के छोटे-छोटे मन्दिर है, जिनका निमार्ण स्थानीय भक्तजनों ने बड़े ही श्रद्वा भाव के साथ किया है, चैत्र, आषाढ़, अश्विन, और माघ इन मासों के चारों नवरात्रों में यहां अवन्तिका देवी का विधि का पूर्वक पूजन किया जाता है।
उन्होंनें कहा कुमाऊं के प्रवेश द्वार व जनपद नैनीताल की तलहटी पर स्थित अवन्तिका माता की महिमा का वर्णन अनन्त व अगोचर है, अवन्तिका देवी के बारे में व पुराणों में अनेको कथाएं मिलती है, अवन्तिका नाम से प्रसिद्व रमणीय नगरी उज्जैन देह धारियों को मोक्ष प्रदान करने वाली तथा भगवान शिव की परम प्रिय नगरी कही गयी है। परम पुण्यमयी व लोकपावनी नगरी अवन्तिका की महिमा से ही तमाम देवी व शिव भक्तों की अनेकों गाथाएं जुड़ी हुई है, इस नगरी में ही भगवान शिव तीसरे ज्योर्तिलिंग महाकालेष्वर नाम से विराजमान है।
उन्होंनें बताया माँ अवन्तिका देवी करुणामयी, दयामयी तथा ममता का अथाह सागर कही गयी है, अपने भक्तों से स्नेह रखना तथा उनका सर्वत्र मंगल करना माँ का परम स्वभाव है। शास्त्रकारों का कथन है, कि विषम परिस्थितियों के बीच जो भक्त सम्पूर्ण श्रद्वा विश्वास व समर्पण की भावना से अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प माँ के चरणों में अर्पित करता है, वह कल्याण का भागी बनता है, इसलिए माता अवन्तिका की अराधना, उपासना वदंना मनुष्य के लिए कल्याणकारी बतलायी गयी है, इसी शक्ति तत्व में माता के सभी रुप समाहित है, जो सृष्टि के कल्याण के लिए अनेकानेक लीलाओं का सतत सृजन करती है।

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