भगवती धुर्का देवी का पावन धाम: जहाँ माँ के दर्शन मात्र से होती है मनोकामनाएं पूर्ण, स्वयम्भू पिण्डी स्वरूप में विराजमान है यहाँ आदि शक्ति

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+ स्वयम्भू पिण्डी स्वरूप में विराजमान है यहाँ आदि शक्ति
+ सालम पट्टी क्षेत्र की कुलदेवी के रूप में पूजित है माँ धुर्का देवी
+ पर्वत शिखर पर स्थित माँ के दरबार में पहुंचने पर होती है दिव्य आनन्द की अनुभूति
+ श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के अनुरूप सुविधाओं की कमी से होती है निराशा
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चेलछिना ( अल्मोड़ा ),
जनपद अल्मोड़ा के सालम पट्टी क्षेत्र में स्थित माँ भगवती धुर्का देवी का पावन धाम प्राचीन काल से ही स्थानीय लोगों के साथ ही जिले भर के ग्रामीण अंचलों के निवासियों के लिए आस्था एवं भक्ति का महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है। समय के साथ – साथ सड़क मार्गों के जुड़ने तथा आवा- गमन के साधन बढ़ने से अब दूर दराज क्षेत्रों व नगरों से भी यहाँ श्रृद्धालु व दर्शनार्थी पहुंचने लगे हैं।

सालम पट्टी के लोग माँ धुर्का देवी को अपनी कुलदेवी मानते हैं और इसी रूप में माँ का पूजन- वन्दन करते हैं। माना जाता है कि भगवती धुर्का देवी धाम में स्वयम्भू पिण्डी स्वरूप में विराजमान आदि शक्ति के दर्शन मात्र से जहाँ शरण में आए लोगों के रोग, शोक, कष्ट – क्लेश मिट जाते हैं वहीं श्रद्धापूर्वक पूजन करने से सभी प्रकार की भौतिक व सांसारिक मनोकामनाएं भी सहज ही पूर्ण हो जाती हैं।

प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर पर्वत के शिखर पर स्थित इस दरबार में पहुंचते ही आगन्तुकों को दिव्य आनन्द की अनुभूति होने लगती है। चारों ओर हरी भरी पहाड़ियों से घिरे इस पवित्र धाम की अलौकिक शान्ति सहज ही अनुभव की जा सकती है।

आदि शक्ति भगवती धुर्का देवी का यह दरबार अब धीरे-धीरे श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बनते जा रहा है। साल दर साल यहाँ पहुंचने वाले भक्तों की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए यह बात समझी जा सकती है। परन्तु सम्बन्धित विभाग द्वारा इस महत्वपूर्ण धर्म स्थल के विकास एवं सौन्दर्यीकरण के लिए अब तक कुछ नहीं किया गया है। यद्यपि स्थानीय लोगों के सहयोग से या फिर जिला योजना के तहत मूलभूत सुविधाओं के लिए कुछ काम तो हुए हैं परन्तु समय के अनुरूप जो संसाधन आवश्यक हैं, इस दिशा में अपेक्षित प्रयास नहीं हो पाये हैं। मुख्य सड़क मार्ग से दो- तीन किमी की चढ़ाई का मार्ग आज तक पगडंडी नुमा है, जो श्रद्धालुओं को काफी निराश करता है।

वैसे तो माँ धुर्का देवी के दरबार में अब साल भर भक्तों की आवाजाही रहती है, लेकिन हर वर्ष 27 जून की रात्रि को यहाँ माता के एक भव्य जागरण का आयोजन होता है, जिसमें आस – पास के ग्रामीणों के अलावा प्रदेश व देश के अलग – अलग नगरों व महानगरों से भी भक्त गण सपरिवार पहुंचते हैं। हर बार की भाति इस बार भी बीते 27 जून को यहाँ रात्रि जागरण का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ जिसमें स्थानीय ग्रामीणों के अलावा उत्तराखण्ड के विभिन्न स्थानों तथा देश के कई नगरों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्तों ने भी भाग लिया । 28 जून को जागरण के पश्चात विशाल भंडारा भी आयोजित किया गया था ।

उत्तराखंड की धरती पर माता धुर्का देवी का दरबार जगत माता की ओर से भक्तों को एक अनुपम भेंट की तरह माना गया है । कुमाऊं मंडल के जनपद अल्मोड़ा अन्तर्गत धुर्का देवी के इस चमत्कारिक दरबार को लेकर अनेक पौराणिक कथाएँ एवं जनश्रुतियां प्रचलित हैं। माना जाता है कि यह पावन दरबार गौ माता की कृपा से यहाँ उद्‌घाटित हुआ था।

गौ माता की कृपा से प्रकट हुआ देवी का यह दरबार पवित्र पहाड़ों की चोटी में स्थित है । यहाँ पहुंच कर मन को जो शांति प्राप्त होती है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है

प्रकृति की गोद में विराजित इस देवी की महिमां अदभुत है। माना जाता है कि देवी के अनन्त स्वरूपों में स्वयं एक , गौ माता ने माँ धुर्का की आराधना करके उन्हें प्रकट किया है। पौराणिक कथाओं में ऐसे अनेकानेक वृत्तान्त आये हैं।

कलिकाल में धुर्का माता के दरबार में कीर्तन का सर्वाधिक महत्व बताया गया है । माँ धुर्का देवी के पावन स्थल के दर्शन करने हेतु श्रद्धालु जनों को अल्मोड़ा से बाड़ेछीना, काफली खान हो कर चेलछीना पहुंचना होता है। यहाँ से लगभग दो किमी की पैदल यात्रा कर दरबार तक पहुंचा जाता है।एक अन्य मार्ग हल्द्वानी से भीमताल होते हुए धानाचूली बैण्ड, पहाड़पानी , शहर फाटक होकर चेलछिना पहुंचा जा सकता है। पिथौरागढ़ की तरफ से दन्या होकर यहाँ आसानी से भक्तगण पहुंच सकते हैं ।


पहाड़ी की चोटी में स्थित माँ धुर्का कष्ट निवारिणी देवी के नाम से भी प्रसिद्ध है ।कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने यहां पर देवी की आराधना करके माँ धुर्का से दिव्य शक्तियां प्राप्त की थी ।
इस स्थान के बारे में अनेक दंत कथाएं भी प्रचलित हैं । कहा जाता है कि माँ धुर्का देवी की परिधि में आने वाले एक गांव काण्डे गाँव में एक ब्राह्मण के पास एक सुंदर गाय थी । प्रतिदिन जानवरों के झुंडों के साथ वह गाय भी इस जंगल में चरनें आया करती थी और इस चोटी पर चढ़कर उपरोक्त स्थान पर शक्ति को अपना दूध अर्पित करती थी । गाय का मालिक प्रतिदिन घोर आश्चर्य में रहता था कि आखिर इसका दूध जाता कहां है ।एक दिन उसने गाय का पीछा किया । पीछा करते-करते वह उपरोक्त स्थान पर पहुंचा, जहाँ घनी झाड़ियों के बीच एक स्वयम्भू पिण्डी पर गाय को दूध अर्पित करते देखा । यह दृश्य देखा तो वह बड़े आश्चर्य में पड़ गया । क्रोधित ब्राह्मण ने जब इस पिण्डी पर कुल्हाड़ी से वार किया तो तभी आकाशवाणी हुई कि यह शक्ति स्थल है । इस घटना के बाद गाय अदृश्य हो गई ब्राह्मण ने पश्चाताप करके देवी माँ की शरण ली ।
धीरे धीरे यह बात समूचे क्षेत्र में फैल गई।स्थानीय भक्तों ने मिलकर यहाँ सुन्दर मंदिर का निर्माण कराया । तभी से माँ धुर्का देवी के पूजन की शुरुआत हुई। धुर्का गाँव के भट्ट लोग यहाँ बारीदारी अदा कर पूजा अर्चना करते है ।

एक अन्य कथा के अनुसार बाराही देवी मंदिर में लगने वाले बग्वाल मेले जिसे पत्थर मार मेला भी कहते हैं और जो प्रतिवर्ष रक्षाबंधन पर्व के दिन पर आयोजित होता है। यह बग्वाल मेला पहले धुर्का देवी के मंदिर में हुआ करता था जिसके अवशेष आज भी धुर्का में विद्यमान हैं। कहा जाता है कि बाद में माता की प्रेरणा से महाबली भीम ने यहां की शिलाओं को स्थानांतरित कर देवीधुरा के बाराही मंदिर में स्थापित कर दिया। तब से बग्वाल मेला देवीधुरा बाराही मंदिर में आयोजित होता है।
विभिन्न पर्वों पर यहां भक्तों की अच्छी खासी भीड़ भाड़ रहती है । दूर दराज क्षेत्रों में बसे लोग जब अपने घर आते हैं तो माँ धुर्का देवी का आशीर्वाद लेने अवश्य दरबार पहुंचते हैं । रहस्यमई शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित देवी के दरबार की महिमा सचमुच अनन्त है ।

मदन मधुकर

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