गुफा में विराजमान इस गुप्त देवी का रहस्य आज भी गुप्त, माँ भद्रकाली दरबार तक चलती है इस देवी की अदृश्य डोली

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गोपीश्वर महादेव के सानिध्य में एक गुफा में विराजमान है देवी की अदृश्य शक्तियां क्षेत्र वासियों की है गहरी आस्था

गुफा के द्वार पर भव्य मन्दिर का रामनवमी से निर्माण शुरू

इस मन्दिर के दर्शन के बाद ही अन्य देवी देवताओं के दर्शन का है विधान

गुफा के भीतर आज भी मौजूद है माता की चौकी

जनपद बागेश्वर के काण्डा व कमस्यार क्षेत्र की भूमि आध्यात्म के एक से बढ़कर एक अद्भूत रहस्यों को अपने आँचल में समेटे हुए है शक्तिपीठ व शिवालयों की श्रृंखलाओं के साथ- साथ नाग मन्दिरों की गाथाएं यहां सर्वत्र सुशोभित है पवित्र पहाड़ियों की इन्ही चोटियों में धपोला सेरा क्षेत्र में स्थित गोपीवन व गोपीश्वर महादेव का जिक्र पुराणों में सुंदर शब्दों में वर्णित है इसी भूभाग में देवी का एक मनोरम स्थान है जिसे भगवती देवराडी देवी माता के नाम से पुकारा जाता है आध्यात्मिक दृष्टि से यह स्थान जहाँ युगों – युगों के इतिहास को अपने आप में समेटे है वहीं सांस्कृतिक वैभव की विराट आभा के यहाँ दर्शन होते है
माँ भगवती देवराडी देवी का मंदिर बागेश्वर जनपद के अंतर्गत ग्राम पंचायत भदौरा पोस्ट ऑफिस धपोलसेरा तहसील कांडा
में स्थित है ग्राम सभा भदौरा में स्थित देवी का यह दरबार जगतमाता की ओर से भक्तों के लिए अनुपम व अद्वितीय भेंट है यूं तो कहा जाता है देवराडी देवी का यह प्राचीन स्थल पौराणिक काल से पूजनीय है लेकिन यहां पर देवी मंदिर कि स्थापना वर्ष 1944 में की गयी जिसे स्थानीय भक्तजनों द्वारा इन दिनों भव्य स्वरूप दिया जा रहा है आपसी सहयोग से निर्माण पथ पर अग्रसर मंदिर निर्माण को लेकर श्रद्धालु बेहद उत्साहित है
समाजिक कार्यक कर्त्ता धीरज धपोला ने बताया कि यहाँ के पुजारी पंत उपजाति के लोग रहे है इस प्राचीन स्थल पर चालीस के दशक में जब मन्दिर बनाया गया तब स्वर्गीय श्री गौरी दत्त पंत को विधिवत पूजा- अर्चना का दायित्व सौपा गया उनके देहांत के बाद स्वर्गीय श्री लक्ष्मी दत्त पंत जी को यह दायित्व सौंपा गया उनके दिवगंत होने के पश्चात अब कैलाश दत्त पंत यहाँ देवी भक्तों को पूजा अर्चना का कार्य सम्पन करवाते है

श्री धपोला के अनुसार इस क्षेत्र के बुर्जुग एवं जानकार लोग बताते है कि माता का यह स्थान रहस्यभरी गाथाओं का अद्भूत भण्डार है यह देवी मंगलस्वरूपा देवी के रूप में परम पूजनीय है देवी के इस गांव मे एक विशाल नदी हुआ करती थी जो धपोला सेरा से बहती हुई गोपीश्वर महादेव का कल – कल धुन में वंदन करते हुए मंदिर के निकट से होते हुए भंडारीसेरा और भदौरा के बीच निकलती थी यह नदी वर्तमान समय में भी बहती है लेकिन अब इस नदी में पानी की मात्रा बहुत ही कम रह गयी है लेकिन इस नदी के प्रति पौराणिक आस्था आज भी प्रबल है दंत कथाओं के अनुसार देवराड़ी देवी का पूर्व में मध्य रात्रि में डोला निकलता था इस डोले में देवी के साथ उनके गण भी चलते थे अदृश्य रूप से चलने वाला डोला रात्रि के समय लगभग 12 बजे गुफा से निकलता था और भदौरा गांव में स्थित हरू सैम देवता भी माँ का वंदन करते है मंदिर के सामने वाले रास्ते से गुप्त देवीयों देवियों के गणों की टोलीयो के साथ डोली में सवार होकर देवराडी देवी भद्रावती नदी में स्नान करने के पश्चात माँ देवी वहाँ से भद्रकाली मन्दिर में प्रवेश करती थी और उसके पश्चात देवी माँ वहाँ से रात्रि के तीसरे पहर अर्थात् तीन से चार बजे के बीच भद्रावती नदी से वापस होकर अपनी डोली में सवार होकर वापस गुफा में लौट आती थी और उसके बाद लुप्त हो जाती थीं कहा जाता है इस समय में किसी भाग्यवान व्यक्ति को यदि देवी की कृपा से इस डोले के दर्शन हो जाते थे तो वह सर्व सौभाग्य शाली माना जाता था विशेष पर्व अवसरों पर आज भी इस डोले की आहट सात्विक भक्तजन महसूस करते है समय के प्रभाव के साथ हालांकि प्रबल आस्था के कम होने से डोले चलने का आभास अब कभी कभार ही माँ के परम भक्तों को प्राप्त होता है

बारहाल ग्राम पंचायत भदौरा में स्थित देवराडी देवी का शक्ति स्थल आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है गुप्त देवी के नाम से भी स्थानीय लोग इनकी पूजा करते है देवी का गुप्त रहस्य आज भी गुप्त ही है सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ जहां पर माता की प्राचीन प्रतिमां है वहां से एक एक अदभूत गुफा के दर्शन होते है इस अलौकिक अद्भूत गुफा का रहस्य आज भी गुमनामी के साये में गुम है इस गुफा का अन्तिम छोर कहां है यह सब अज्ञात है अनुमान के अनुसार इस गुफा की लम्बाई लगभग चार से पाँच किलोमीटर तक बतायी जाती है जो काण्डा के कालीका माता मंदिर तक पहुँचती है और गुफा के भीतर अनेक गुफाएं है और माता की चौकी भी कुछ दूरी तक साहस करके भक्तजन गुफा में प्रवेश करते है गुफा के भीतर आध्यात्म का एक अद्भूत संसार है जो खोज का विषय है विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ गुफा में शुसोभित है कई प्रकार के धार्मिक और पौराणिक सांस्कृतिक आकर्षण यहाँ देखने को मिलते हैं और श्री धपोला के अनुसार कई स्थानीय लोगों का कहना है कि इस गुफा के अंदर पेड़ और बीच में एक छोटा तालाब भी है जहाँ से आगे तक का रास्ता बंद है सुरक्षा की दृष्टि से जिसके विभिन्न कारण है साहसी भक्त इस गुफा में दो सौ मीटर तक दर्शन कर सकते हैं

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मान्यता है कि जब आप देवराडी देवी के दर्शन को आये तो किसी अन्य मन्दिर के दर्शन पहले ना करे इस मंदिर में कोई भी श्रद्धालु अन्य किसी भी मंदिर के दर्शन करने के बाद किसी भी प्रकार से इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है अगर कोई भी श्रद्धालु अन्य मंदिरो में दर्शन करने के बाद यहाँ के मंदिर में प्रवेश करता है तो माँ देवीराडी देवी अपना किसी ना किसी प्रकार उसका रास्ता रोक देती है और कई बार ऐसा हुआ भी है इस देवी के दर्शन का जब लक्ष्य हो तो सबसे पहले इस देवी के दर्शन करें फिर अन्यत्र दर्शन का विधान है
पुराने बुजुर्गों का कहना है कि इस मंदिर में जो भी श्रद्धालु आते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है और यहाँ पर मंदिर में किसी भी प्रकार का शोर वह डोल नगाड़े नहीं बजाए जाते हैं और मंदिर के आस पास और मंदिर में पूजा पाठ बड़े शांति पूर्वक किया जाता है पहले इस मंदिर में काफ़ी दूर दूर से लोग आकर दर्शन करते थे और जिन लोगों को इस मन्दिर के बारे में जानकारी है वह लोग यहाँ आज भी पूजा अर्चना करने के लिए बड़े ही श्रद्धा भाव से आते हैं और पहले यहाँ पर पूरे क्षेत्र वासियों द्वारा मिलकर विशाल मेले का आयोजन किया जाता था लेकिन पलायन के चलते अब वह रौनक नही है जिन लोगों को इस मंदिर की जानकारी है वही यहाँ आकर पूजा पाठ करते हैं और इस मंदिर में दर्शन करने के लिए खँटोली से और कण्डा के नारायण गांव से सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं

 

इधर रामनवमी के पावन पर्व के अवसर पर से यहां एक भव्य मंदिर के निर्माण के शुभारंभ के कार्य की आधारशिला शुरू कर दी गई है माँ के आस्थावान भक्त धीरज धपोला ने विशेष जन जागृति अभियान चला कर इस क्षेत्र के तमाम भक्त जनों को साथ लेकर सभी के सहयोग से भव्य मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ करवा दिया है विधिवत पूजा-अर्चना के साथ देवी के गुफा के मुख्य द्वार पर निर्मित हो रहे मंदिर निर्माण को लेकर समूचे क्षेत्र में विशेष उत्साह है

श्री धपोला ने बताया कि श्री रामनवमी के पावन अवसर पर जिस दिन से माँ के मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया उसी रात्रि माँ के तमाम भक्तों को स्वप्न में माँ ने दर्शन देकर कृतार्थ किया अनेकों चमत्कार व रहस्य का साक्षी देवी का यह दरबार निकट भविष्य में यहाँ आने वाले भक्तों के लिए आस्था का अदभुत केंद्र बनेगा ऐसा क्षेत्र वासियों को विश्वास है

बारहाल योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण व बलराम जी के गुरु शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि राधा कृष्ण व गोपियो के आराध्य देव गोपेश्वर महादेव गोपीवन भूभाग के निकट देवराडी गाँव की इस गुप्त देवी के रहस्य को कोई नही जानता है अनुमान लगाया जाता  है कि ये भगवान श्री कृष्ण की आराध्य देवी भी है क्योंकि माँ भद्रकाली भगवान श्री कृष्ण की ईष्ट देवी मानी जाती है और भद्रकाली तक इस देवी के डोली चलने की कहावते आज भी आम जनमानस में विशेष रूप से प्रसिद्ध है माँ भद्रकाली के गुप्त रहस्यों को अपने आप में समेटे देवराडी देवी को गुप्त देवी के रूप में भी पूजा जाता है इस कारण इन्हें केशव स्तुता भी कहा जाता है 

गोपीश्वर महादेव मन्दिर के निकट होने के कारण कुछ भक्तजन इस देवी को भगवान शिव की विशेष गुप्त शक्ति के रूप में भी पूजते है यहाँ यह बताते चले कि कुमाऊँ की धरती में जनपद बागेश्वर के अन्तर्गत धपोलासेरा क्षेत्र में गोपीश्वर महादेव जी का जो मन्दिर है उस मन्दिर क्षेत्र की विराट महिमां पुराणों में वर्णित है स्कंद पुराण में इस मन्दिर व आसपास की गुफाओं का सुन्दर वर्णन करते हुए व्यास जी ने ऋषियों से कहा है गोपीश्वर मण्डल का समूचा क्षेत्र बड़ा ही जागरूक क्षेत्र है दुरात्मा मानवों के पाप गोपीश्वर मण्डल में पहुंचने के पूर्व तक ही विद्यमान रहते है गोपीश्वर क्षेत्र में देवी देवताओं का पूजन करने से इक्कीस बार पृथ्वी की परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है ऐसा वर्णन भी पुराण में वर्णित है जिसका श्लोक इस प्रकार है

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*त्रिः सप्तकृत्वा सकलां धरित्रि प्रकम्यम् यद्याति महीतलै वै*
स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 80 वें अध्याय में गोपीश्वर महात्म्य के अन्तर्गत अनेक गुप्त गुफाओं का वर्णन गोपियों व नाग कन्याओं के प्रसंग में आया है इन गुफाओं में विराट शक्तियों का अदृश्य वास माना गया है जिन्हें भू देवी के रूप में भी पूजा जाता है दस महाविधाओं में प्रधान देवियाँ भी आसपास की पर्वत श्रृंखलाओं में वास करती है
जिस भद्रावती नदी में गुप्त देवराडी देवी के स्नान का जिक्र दंत कथाओं में आया है वह नदी भी परम पूजनीय है

प्रसंगवश यहाँ यह भी बताते चले कि जनपद बागेश्वर का यह भूभाग आध्यात्म जगत में प्राचीन काल से ही काफी प्रसिद्ध रहा है।नागराजाओं व विभिन्न नागों सहित कभी शाण्डिल ऋषि,कुशंडी ऋषि, पंतजली ऋषि, सहित असंख्य ऋषि मुनियों की तपस्या का केन्द्र रहा यह पावन क्षेत्रं तीर्थाटन की दृष्टि से बेहद उपयोगी है भद्रावती के इन्ही क्षेत्रों में ऋषि – मुनियों ने तपस्या करके दुर्लभ सिद्धियां प्राप्त की।
इसे शिव व शक्ति की वासभूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। इसी पावन भूमि पर आस्तीक आदि ऋषियों ने नागों के साथ मिलकर माँ भद्रकाली का वैभवशाली यज्ञ किया।इस महायज्ञ के बारे में पुराणों में विस्तार के साथ कथा आती है।जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है।नाग पर्वत व इस भूमि में निवास करने वाले नागों के मन में भगवान शिव की प्रेरणा से यह इच्छा जागृत हुई।कि इस क्षेत्रं में माँ भद्रकाली के विशेष यज्ञ का आयोजन करके ब्रह्मा जी के दर्शन किये जाएं।यज्ञ के आयोजन को लेकर नागप्रमुख मूल नारायण जी की अध्यक्षता में बैठक हुई।जिसमें फेनिल नाग सहित अनेक नागों ने भाग लिया फेनिल नाग के अनुरोध पर ब्रह्मणों व महर्षियों ने भद्रा का आवाहन कर यज्ञ आरम्भ किया।ऋषियों के आवाहन से जो भद्रा प्रकट हुई वह इस क्षेत्रं की पवित्र नदी है। इस नदी से देवराडी देवी के स्नान की बातें दंत कथाओं में प्रचलित है इस नदी में स्नान का बड़ा ही महत्व है।पुराणों में कहा गया है।जो व्यक्ति श्रद्वा के साथ भद्रा नदी में स्नान करता है।वह ब्रह्म लोक का भागी बनता हैं।इस प्रकार नागों ने भद्रा की कृपा से यज्ञ सम्पन करके ब्रह्मा जी के दर्शन किए।जिस गोपीवन भूभाग में नागों ने यज्ञ किया उस गोपीवन का भी पुराणों में अद्भूत जिक्र आता है।
गोपीवन में महादेव जी का प्राचीन मंदिर है।जो श्रद्वा व भक्ति का संगम है।पुराणों में बताया गया है,कि भद्रकाली व गोपेश्वर का पूजन करने से सारी पृथ्वी की इक्कीस बार परिक्रमां का फल प्राप्त होता है।पुराणों में स्पष्ट है।
*त्रिः सप्तकृत्वा सकलां धरित्रीं प्रकम्य यद्याति महीतलै वै।।*
यज्ञ के बाद नागसमुदाय ने नागपुर में पन्द्रह साल तक कामधेनु की सेवा व तपस्या की नागों की सेवा से संतुष्ट होकर कामधेनु ने नागों से वर मागनें को कहा नागों ने वरदान स्वरुप अनेक गो कुल मांगे।गायों के कुलों को प्राप्त करके नागों ने उनके चरने के लिए गोपीवन को चुना और गायों को चराने एवं उनकी रक्षा का दायित्व नागकन्याओं को सौपा गया।नागकन्याओं ने गोपीवन में रहकर गाय चराने के साथ साथ इस क्षेत्र की देवियों का स्मरण कर शंकर का नियमित पूजन आरम्भ किया देवराडी देवी भी उन्हीं में एक मानी जाती है
इस भूभाग के बारे में यह भी वर्णन आता है एक बार शिवलीला के प्रभाव से नागकन्यायें अर्थात् गोपियों की गायें ओझल हो गई गाये ढूढ़ते ढूढ़ते उन्हें इस क्षेंत्र में शाडिल्य ऋषि की गुफा के दर्शन हुए गुफा के प्रति गोपियों की जिज्ञासा बढ़ती गई।मूलनारायण की पुत्री ने नागकन्याओं सहित गुफा में प्रवेश का प्रयत्न किया लेकिन वे गुफा में प्रवेश करने में असफल हुई। तब उन्होंने मां भद्रकाली का का ध्यान करते हुए कहा यदि हमारी शिव भक्ति सच्ची है।तो हम गुफा को पार कर जाएं।इस तरह शिव कृपा से वे गुफा में प्रवेश पाकर प्रविष्ट हो गई उन्हें आशा थी कि यहां उन्हें शिव के दर्शन होगें निराश गोपिकाये गायों को ढूढते हुए दूसरे जगंल में पहुचीं जहां उन्होंने गायों के झुण्ड के बीच एक ज्योर्तिमय लिंग को देखा व उसकी स्तुति की स्तुति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उस लिंग से प्रकट होकर गोपियों को दर्शन देकर कृतार्थ किया।इस तरह से शाण्डिल्य ऋषि की इस गुफा व गोपीश्वर को प्रकाश में लाने का श्रेय नागराज मूलनारायण की पुत्री को जाता है। इन पर मां भद्रकाली की असीम कृपा थी शनीउडियार के नाम से प्रसिद्व यह गुफा वर्तमान में घोर उपेक्षा की बीन बजाते हुए गुमनामी के साये में गुम है।यही हाल गोपीश्वर महादेव का है। और गोपीश्वर महादेव जी के सानिध्य में भू देवी के रूप में पूजित देवराडी देवी को तो अधिकांश लोग जानते ही नही
सनातन धर्म के सजग प्रहरी शाण्डिल ऋषि कश्यपवंशी थे।भगवान श्रीरामचन्द्र जी के पूर्वज अंशुमान के पुत्र राजा दिलीप के ये पुरोहित होने के साथ-साथ मां भद्रकाली के परम उपासक थे देवराडी माता के प्रसंग में यहाँ यह भी बताते चले कि राजा दीलिप की तपोभूमि भी काण्डा कमस्यार क्षेत्र ही रही है जिस चण्डिका गुफा का वर्णन पुराणों में मिलता है वह इसी भूभाग का हिस्सा है
शाण्डिल्य ऋषि की तपोभूमि भद्रकाली क्षेत्र सनीउडियार व हवनतोली,गोपीश्वर मंदिर के अलावा कमस्यार घाटी व नाग पर्वतों पर अनेक दुर्लभ मंदिर है। जो माँ भद्रकाली की महान महिमा का बखान करते हैं इन्हीं में एक है देवराडी देवी जिन्हें भू देवी के रूप में भी पूजा जाता है यदि इन्हें तीर्थाटन एंव पर्यटन से जोड़ा जाए तो ये आस्था व रोमाचं के प्रमुख केन्द्र बन सकते है।
आध्यात्म की विराट आभा यहाँ पर्वतों में सर्वत्र विखरी हुई है भद्रा के दक्षिण की ओर कालीय नाग द्वारा माँ काली का पूजन किया जाता है।चटक,श्वेतक आदि नाम के कई नाग यहां अदृश्य रुप से वास करते है।पुराणों में दिशा निर्देश दिया गया है कि गोपीश्वर व उसके आसपास के तीर्थो का पूजन करने के पश्चात खर नामक महानाग का पूजन करना चाहिए
*हरं गोपीश्वरं पूज्य शिखरे मुनिसत्तमाः।खराख्यं हि महानागं पूजयेत् सुसमाहित।।(स्कंदपुराण मानसखण्ड अ०८२श्लो०२) *
इन्हीं पर्वतों में विराजमान गोपालक नामक नाग की माहिमां भी पुराणों ने गायी है।यहां विराजमान काली का पूजन समस्त दुख व भय का नाश करने का अचूक अस्त्र बतलाया गया है।कांडा स्थित कालिका का दरबार काली भक्तों के लिए जगतमाता की ओर से अद्भूत सौगात है।अलग अलग नामों से पुकारे जाने वाले पर्वतों में कोटीश्वरी व शाकरीं देवी के भी दरवार है।इनका पूजन दुर्गतिनाशक कहा गया है।नाग पर्वतों पर विराजमान कालीय नाग के बड़े पुत्र फेनिल नाग का पूजन समस्त अमंगल को हरने वाला बताया गया है।त्रैलोक्यनाग की पूजा आरोग्यता को प्रदान करती है।वनछोर के शिखर पर विराजमान मूलनारायण नाग की आराधना दुर्लभ सिद्धियो को देने वाली कही जाती है।भगवान नागराज के प्रति स्थानीय लोगों में गहरी आस्था है।भगवान नारायण से वर पाकर इन्होने सदा के लिए उनका नाम अपने नाम के साथ जोड़ लिया।और अमरता को प्राप्त हुए।इनकी माता का नाम पुगंवी है।नारायणी नदी के किनारे इनका दरवार है।इन पर्वत प्रान्तों में शेषनाग जी भी पूजे जाते है।मूलनारायण के बायी ओर सर्वपापहारी त्रिपुरनाग का पूजन किया जाता है।इन्ही पर्वतों में कालीयनाग के नाती सूचूड़नाग भी पूजे जाते है।नागपर्वतों में विराजमान धौलीनाग,वासुकी नाग,वासुकीनाग की पुत्री वेलावती,इतावर्त,कर्कोटक,पुण्डरीकनाग, कुण्डलीनाग,गौरनाग,शतरुप महानाग,सुन्दरीनाग,हरिनाग,पिगंलनाग,मधुनाग,धनन्जय,सुराष्ट्र नामक नाग भी वरदायी देवता के रूप में पूज्यनीय है।ये नाग यहां सुनन्दा देवी व भाद्रकाली की भी पूजा करते है।अन्ततः ये सभी नाग मिलकर के अपनी परम आराध्या माँ त्रिपुर सुन्दरी की पूजा करते है। भद्रकाली व इनका पूजन भक्ति को प्रगाढ़ गति प्रदान करता है।माँ त्रिपुर सुन्दरी का दरवार वेणीनाग के निकट गंगोलीहाट मार्ग पर है।नागराज मूलनारायण ने भगवती भद्रकाली की प्रेरणा से त्रिपुरादेवी की आराधना से दुर्लभ सिद्धियों को प्राप्त किया।तथा मूलनारायणी की कृपा प्राप्त की।
कहा जाता है।इन्हीं मूलनारायणी की कृपा से सुग्रीव को राम मिले व बाली द्वारा हड़पा राज्य प्राप्त हुआ।पत्नी ताराहरण से व्यथित वानरराज सुग्रीव ने हनुमान के साथ इन्ही क्षेत्रों में मूलनारायणी देवी की तपस्या की। व भद्रकाली की कृपा प्राप्त की इन्हीं के वरदान से भगवान श्री रामचन्द्र की सहायता से सुग्रीव ने बाली का बध व तारा की प्राप्ति की।इन्हीं नाग पर्वतों में नागों के आराध्य पुगींश्वर महादेव का मंदिर बेणीनाग के निकट विराजमान है।इनकी आराधना तीनों तापों का नाश करने वाली कही गई है।पुंगीश्वर महादेव जी के दर्शन वैद्यनाथ तथा महाकाल से दसगुना ज्यादा फलदायी माने गये है।
*पूगीश्वरेति विख्यातो देवदेवो महेश्वर*
नाग कन्यायें तथा नाग देवता यहां अमावस्या को खासतौर से शिवजी की पूजा करते है।तथा अन्य दिनो में देव,दानव,गंधर्व अदृश्य रुप से इनकी स्तुति करते है।पुराणों में वर्णन आता है।इस स्थान पर सत्युग में शिव विवाह के पश्चात् देवगणों ने पुंगीफल(सुपारी)से यहां शिव व शक्ति का पूजन किया तभी से यह स्थान पुंगीश्वर के नाम से जगत में प्रसिद्ध हुआ
कुल मिलाकर नागपर्वत व पर्वतों पर विराजमान नागमंदिर व शिव शक्ति पीठों की माहिमां अपरम्पार है। जो भद्रकाली की विराट महिमां दर्शाती है।इस भूभाग में बहनें वाली नदियां भद्रा,सरस्वती गंगा,गुप्तसरस्वती,सुभद्रा,चन्द्रिका,सोमवती,मधुमती,शकटी,हीमगिरी,पृथा,भुजंगा,नारायणी,गौरी,जटागंगा,सुमेना, आदि नाम से पुकारी जाती है।

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