पितरों के प्रति समर्पण का अनूठा अवसर है सर्वपितृ अमावस्या

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अमावस्या की शांति, आकाश का मौन और दीपक की लौ में झिलमिलाती श्रद्धा… यही वह क्षण है जब हम अपने पितरों का स्मरण करते हैं। पितृपक्ष का समापन सर्वपितृ अमावस्या से होता है, जिसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है। यह दिन उन सभी ज्ञात-अज्ञात पितरों को समर्पित है जिनका श्राद्ध किसी कारणवश तिथि-विशेष पर नहीं हो सका। इसीलिए इसे “सर्वपितृ” अमावस्या कहा गया है।
ऋग्वेद में पितरों का आह्वान करते हुए कहा गया है-
*“पितॄननक्तोऽवसा गृणीषे स्वधाभिर्मधुमद्भिर्घृतैश्च।*
*उप नः पीतये हविर्यजत्रा अग्ने तान्वक्षि यक्षि च स्वधाभिः॥”* (ऋग्वेद 10/15/1)
अर्थात्, हे अग्निदेव! स्वधा सहित पितरों को मधुर और घृतयुक्त हवि पहुँचाइए ताकि वे तृप्त हों और हमें आशीर्वाद प्रदान करें।
इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, क्षिप्रा आदि नदियों के तट पर स्नान, पिंडदान और तर्पण का विशेष महत्व है। गया, हरिद्वार, काशी और पुष्कर जैसे तीर्थों में सर्वपितृ अमावस्या पर हजारों श्रद्धालु एकत्रित होकर श्राद्ध करते हैं। गया महात्म्य में उल्लेख है कि फल्गु नदी पर किया गया पिंडदान 21 पीढ़ियों तक के पितरों को मोक्ष प्रदान करता है।
गरुड़पुराण में स्पष्ट कहा गया है—
*“पितॄणां तु प्रसन्नानां प्रसन्ना: सर्वदेवताः।*
*तस्मात् सर्वप्रयत्नेन कार्यं श्राद्धं विशेषतः॥”* (गरुड़पुराण, पूर्व 5/10)
अर्थात, जब पितर प्रसन्न होते हैं तो समस्त देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं। अतः श्राद्ध विशेष प्रयासपूर्वक करना चाहिए।
मनुस्मृति भी पितरों की तृप्ति को देवताओं की तृप्ति के समान मानती है—
*“श्राद्धेन पितरः तृप्ता देवा तृप्यन्ति तर्पणात्।*
*तर्पितैः पितृभिर्नित्यं तृप्तं भवति पावनम्॥”* (मनुस्मृति 3/203)
अर्थात, श्राद्ध से पितर तृप्त होते हैं और पितरों की तृप्ति से देवता भी तृप्त हो जाते हैं।
महाभारत के अनुशासन पर्व में भी यह सत्य प्रतिपादित हुआ है—
*“यत्पितॄणां तु संतोषः यद्देवानां च तर्पणम्।*
*ऋषीणां चैव यत्प्रीतिः सर्वं श्राद्धे प्रतिष्ठितम्॥”* (महाभारत, अनुशासन पर्व)
अर्थात, पितरों का संतोष, देवताओं का तर्पण और ऋषियों की प्रीति- ये सब श्राद्ध में प्रतिष्ठित हैं।
सर्वपितृ अमावस्या केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि यह जीवन-दर्शन है। यह हमें याद दिलाती है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े बिना भविष्य को मजबूत नहीं बना सकते। पितरों का स्मरण हमारे भीतर कृतज्ञता, श्रद्धा और विनम्रता को जागृत करता है। यही कारण है कि इसे “पितृ तृप्ति दिवस” कहा जाता है।
इस पावन अवसर पर अपने पितरों का स्मरण कर, विधि-विधान से तर्पण और पिंडदान करके हम न केवल उनका आशीर्वाद पाते हैं, बल्कि अपने जीवन को भी पुण्यमय और पावन बनाते हैं। यही सर्वपितृ अमावस्या का वास्तविक संदेश है।

(विजय कुमार शर्मा-विनायक फीचर्स)

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