हिमालय के सुन्दर गाँव बना की उपमाँ स्वर्ग से ऊपर

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बना/बेरीनाग/ हिमालय की पावन भूमि जनपद पिथौरागढ़ के बेरीनाग क्षेत्र में स्थित ग्राम बना आध्यात्मिक दृष्टि से जितना समृद्धशाली है, सनातन धर्म के प्रचार प्रसार की दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण भी, तीर्थाटन के लिहाज से बना क्षेत्र का अवलोकन करें तो विश्व की सर्वोपरि शक्ति दस महाविद्याओं में एक प्रसिद्ध एंव पौराणिक शक्तिपीठ माँ त्रिपुरा सुंदरी का भव्य मंदिर बना ग्राम के पास ही स्थित है ।यह देवी क्षेत्रवासियों की ईष्ट देवी व कुलदेवी के रूप में परम पूजनीय है।

यही वह देवी है जिसनें भगवान विष्णु की चिन्ता का हरण किया और बिष्णु चिन्तानिवारिणी देवी के नाम से जगत में पूजित एंव वन्दित है। बना गाँव के चारों ओर स्थित नागपर्वतों पर अदृश्य रुप से विराजमान नागराजाओं सहित भगवान मूलनारायण भी माँ त्रिपुरा देवी की आराधना करते है, इस विषय में स्कध पुराण में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है। यही कारण है, कि बना गाँव के समीप स्थित त्रिपुरा देवी को पभ्या गाँव के महान् शिव एंव भद्रकाली के भक्त स्व० प्रयाग दत्त पंत शक्तिपीठों का शिरोमणी कहते थे। अपनें जीवन काल में परम प्रतापी आध्यात्मिक पुरुष स्व० प्रयाग दत्त पंत ने इस स्थान पर अपनी सुधामयीवाणी की धार से अनेक पुराणों का सुन्दर वाचन किया। उनके प्रति चिरस्थायी यादें आज भी लोगों के हृदय में श्रद्वा भाव के साथ झलकती है।

शिवालय व शक्तिपीठों की अद्भूत श्रृखंला अलौकिक विरासत के रुप में बना गाँव के चारों ओर के पर्वतों पर झलकती है। कोटेश्वर महादेव की पौराणिक गुफा की कथाओं में भी बना गाँव का जिक्र आता है। यह गुफा बना गाँव से कुछ ही किमी दूर कोटेश्वर गाँव में स्थित है। जिसकी गाथा महर्षि भृगु, राजा मृत्युजंय आदि से जुड़ी हुई है।विराट आध्यात्मिक महत्व को दर्शाता बना गांव में प्रकृति का अनुपम वातावरण, सीढ़ीनुमा सुन्दर खेत, देवदार, बाँज, उतीश, काफल, बुराशं के मनोहारी वन ,लोक देवताओं के मंदिर बरबस ही आगन्तुकों को आकर्षित करते है।

बना गाँव में पंत जाति के भारद्वाज गोन्नीय ब्रह्मामणों का वास है। सनातन संस्कृति के प्रचार प्रसार में यहाँ के लोगों का अपूर्व योगदान रहा है। यहाँ के पंत भवदास घराने से है। माना जाता है, कि महातपस्वी ब्राह्मण भवदास जी द्वारा इस गाँव को बसाया गया। ऐसा उल्लेख मिलता है, महाराष्ट्र के कोंकण जिले से सन् 1270 के आस -पास पाण्डित जयदेव पंत, अपनें दामाद पंडित दिनकर राव पंत (पराशर गोत्र ) के साथ कुमाऊँ आये।

प० जयदेव पंत की पीढ़ी में भवदास महावीर पुरुषों में एक मानें गये है। जय देव जी के पुत्र रविदेव, फिर रामदेव, उनसे भानुदेव, उनके आगे श्रीधर, और फ़िर बलभद्र, उनके पुत्र शिवदेव, आगे उनके तीन पुत्र दामोदर, शंभुदेव, भानुदेव हुए दामोदर से शर्म व श्रीनाथ दो पुत्र हुए भानुदेव के नाथ और विश्वरूप, शंभुदेव के भवदास इन्हीं चार भाइयों के नाम से शर्म, श्रीनाथ, नाथू, भवदास घरानें हुए।अपनी वीरता के बल पर तत्कालीन मणकोटी राजाओं के दरबार में ये परम पूज्यनीय होनें के साथ- साथ प्रतिष्ठा पाये महाबली व साहसी होनें के कारण भवदास ने सेनाध्यक्ष के रुप में वीरता के साथ धर्म व आध्यात्म की पताका फहरायी। इनके तीन पुत्र हुए प० गजाधर, प० गदाधर, प० जयन्त,गजाधर के पुत्र प० हरि शर्मा, हरि शर्मा के प० राम पंत, वासुदेव दो पुत्र हुए, वासुदेव राजा लक्ष्मीचन्द के मन्त्री बनें। बताया जाता है, कि सन्1605 में कुमाऊँ के राजा लक्ष्मीचंद ने प० वासुदेव पंत के तीन पुत्रों को तीन गाँव जागीर में दिये।
जिनमें मार्कण्डेय पंत को बना जो कि जो कि प० जयदेव पंत की 14 वीं पीढ़ी में हुए। प० शिवराम पंत को तल्ला गराऊँ, प० हरिहर पंत को खितोली प० मार्कण्डेय पंत के दो पुत्र प० वीरभद्र व प० इन्द्रदेव जिनकी सन्तानों विस्तार के साथ इस गाँव में बसती गयी। वर्तमान समय में तेरहवी, चौहदवी, एंव पन्द्रहवी पीढ़ी इस गाँव में निवास करती है।

कुल मिलाकर प्राचीन काल में शंकर जी ने एक सौ मन्वन्तर तक जिन भगवती का तप किया था। वह भगवती त्रिपुरा देवी बना गाँव की शोभा है।वर्तमान में मंदिर के पुजारी राजू उपाध्याय यहाँ भक्तों का मार्ग दर्शन करते है।इससे पूर्व केशव दत्त,गोपालदत्त,कृष्णानन्द उपाध्याय ने माता त्रिपुरा सुन्दरी के भक्तों का मार्ग दर्शन करते रहे है।श्री राजू उपाध्याय चौथी पीढ़ी में है। जो वर्तमान में माता त्रिपुरा देवी की महिमां से यहां पधारने वाले भक्तों को अवगत कराने के साथ साथ पूजा अर्चना क़खाते है।*

बना,के अलावा क्वैराली,भण्डारी गांव,चचरेत,धारी,भटीगांव,सुकलायाड़ी,पभ्या,खेती,काकोड़,मन्तोली,बादोली,गुरैना,देवातल,व्याती,चौड़मन्या,पीपली,जाड़ापानी,ढनौली,खितोली सहित तमाम आसपास के ग्रामीणों की माता त्रिपुरा सुन्दरी के चरणों में अगाध श्रद्वा झलकती हैं।मंदिर के पुजारी के अनुसार श्री महाकाली मंदिर गंगोलीहाट की भातिं ही यह स्थान परम जागृत स्थली के रूप में विख्यात है। जिस प्रकार हाटकालिका को सात भदेलों के माध्यम से शंकरार्चाय जीं ने कीलित किया उसी तरह इस स्थान को भी उनके द्वारा सात भदेलों से कीलित किया गया है। माँ त्रिपुरा सुन्दरी का यह जागृत दरवार आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है।
कुल मिलाकर के मेरे बचपन का बना अब पलायन से खाली होता जा रहा है गांव में चंद परिवार ही रहते हैं। अतीत से यादों की महक को समेटे बना भूमि की उपमाँ स्वर्ग से ऊपर हैै।///@ रमाकान्त पन्त///

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