सीएम धामी की जीत से चम्पावत की समृद्धशाली संस्कृति के विकास की प्रबल संभावना

ख़बर शेयर करें

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की प्रचंड जीत से चम्पावत के चहुमुखी विकास की संभावनाएं प्रबल हो उठी है यहां कदम – कदम पर बिखरा सौंदर्य व सौंदर्यशाली स्थलों में बिखरी अलौकिक गाथाएं अपने आप में समूचे विश्व में अदितीय हैं जन मानस में अब यह आशा जागृत होनें लगी है कि विश्व के मानस पटल पर यहां की समृद्धशाली संस्कृति अपनी विशेष पहचान बनाऐगी

उल्लेखनीय है कि हिमालय के ऑचल में स्थित चम्पावत का आध्यात्मिक महत्व बड़ा ही बिराट है। देवभूमि के इस भूभाग में एक से बढ़कर एक पावन तीर्थ स्थलों की लम्बी श्रृंखलाएं सदियों से आस्था व भक्ति की सुन्दर गाथाओं को अपनें आप में समेटे हुए है। इन्हीं पावन स्थलों में एक है, बालेश्वर महादेव का मन्दिर ,भगवान भोलेनाथ के इस ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व वाले अद्भूत मन्दिर की छटा बरबस ही आगन्तुकों को अपनी ओर खीच लेती है। पुराणोंं में कहा गया है, यह पावन स्थान शिव भक्तों के लिए शिव भक्ति का सुन्दर सेतु है। बालेश्वर मन्दिर के आसपास की तमाम पहाड़ियों की चोटियों में शिव महिमाओं को समेटे अनेकों शिवालय व देवी के पावन पीठ पुरातन काल से परम पूज्यनीय इन तमाम आध्यात्मिक स्थलों का वर्णन पुराणों में विस्तार से मिलता है। बालेश्वर महादेव के इसी भूभाग क्षेत्र में भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार लेकर हर के साथ हरि की लीला को विस्तार दिया अलौंकिक विरासत को समेटे कुर्मांचल पर्वत पर विराजमान देवालयों की महिमा का वर्णन बडा ही मनोहारी है। बालेश्वर महादेव के सानिध्य में चम्पावत क्षेत्र के अनेकों मंदिर रामायण, महाभारतकाल व उससे पूर्व से भी ऋषि-मुनियों की यह तपःस्थली रहे है

यह नगरी कभी कैलाश मानसरोवर यात्रा पथ का प्रथम पडाव थी। इसी भूमि पर महाबली कुंभकर्ण, महावीर घटोत्कच व उनकी माता हिडिम्बा को परम शांति प्राप्त हुई थी। वानरराज बाली ,व सुग्रीव ने यहां के पर्वतों में भगवान शिव की घोर आराधना के पश्चात उनसे वरदान स्वरूप अपार बल प्राप्त किया। ऐतिहासिक तपस्या की गवाह देता बालेश्वर मंदिर के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है। कुर्मांचल नामक पर्वत श्रेणियां जनपद चम्पावत के धार्मिक महत्व की गाथा को विराट वैभव के रुप में समेटे हुए है। वानरराज बाली की इसी तपोभूमि में तमाम पावन स्थलों में एक स्थल है। ऋषेश्वर महादेव का मंदिर
ऋषेश्वर महादेव जी का मंदिर भगवान शिव की ओर से अपने भक्तों के लिए अनुपम भेंट है। ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य एक बार इस पावन मंदिर के दर्शन कर लेता है वह अश्वमेघ यज्ञ के समान फल का भागी बनता है। प्राचीन समय में शिव भक्त जब कैलाश यात्रा पर जाते थे तो सर्वप्रथम ऋषेश्वर के चरणों में ही अपनी आराधना के श्रद्धापुष्प अर्पित करते थे। मन्दिर के समीपस्थ ही बहती लोहावती नदी में स्नान करने के पश्चात आगे की यात्रा सम्पन्न होती थी।

ऋषेश्वर के रूप में भगवान शिव की आराधना करके ही भीम ने अपने पुत्र घटोत्कच का उद्धार किया। इस संबंध में कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में घटोत्कच के मारे जाने के पश्चात उसकी आत्मा भटक गयी। स्वप्न में प्रकट होकर अपने पिता भीम को उसने यह व्यथा सुनायी तथा कुर्मांचल की पहाडी को अपने लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान बताया। तब भीम ने यहां पहुंच कर ऋषेश्वर, बालेश्वर, क्रान्तेश्वर, मानेश्वर, महादेव की घोर आराधना के पश्चात उनकी कृपा से अखिल ब्रह्माण्ड की नायिका माँ अखिलतारिणी को प्रकट किया। कहा जाता है कि महादेव की कृपा से योगमाया रूपिणी भगवार शंकर को प्रिय लगने वाली संसार का उद्धार करने वाली भगवती पृथ्वी का भेदन कर प्रकट हुई तब भीम ने शिव कृपा से देवी से ’कुंभकर्ण‘ के सिर को तोडकर इस क्षेत्र के वन में परिणित होने का वर मांगा, तब भीम ने अपनी गदा से कुंभकर्ण के सिर को को तोडकर गण्डकी नदी प्रवाहित की और साथ में लोहावती नदी भी प्रवाहित की। इन दोनों के संगम पर अपने पुत्र घटोत्कच को स्थान दिलाया। चम्पावत मुख्यालय से लगभग दो किमी. की दूरी पर शिव कृपा से स्थापित घटोत्कच मंदिर भक्तों की मनौती पूर्ण करने में सहायक माना जाता है। यहीं पास में हिडिम्बा का मंदिर भी है।

शिव कृपा से किस प्रकार महाबली कुंभकर्ण को यहां स्थान प्राप्त हुआ, इस विषय में स्कंद पुराण के मानस खण्ड में वर्णन मिलता है कि ऋषि पुलस्त्य के पुत्र व लंकापति रावण के लघु भ्राता कुंभकर्ण ने बाल्यकाल से ही महाबलशाली शरीर को प्राप्त किया तथा सत्रह वर्ष तक भगवान शिव की घोर आराधना के पश्चात अनेक वर प्राप्त किये। जिनमें से एक वर यह था कि मेरी मृत्यु के समय मेरा सिर लंका में न गिरकर ऐसे पवित्र स्थान पर गिरे जहां साक्षात शिव का वास हो तथा वह स्थान जलमग्न हो। चिरकाल के बाद दशरथ पुत्र श्री रामचन्द्र जी ने जब सुग्रीव की सहायता से लंका पहुंच कर उसका सिरोभेदन कर दिया तब भगवान शंकर ने वरदान का स्मरण कर रामचन्द्र जी ने वानरश्रेष्ठ हनुमान से कुंभकर्ण के सिर को कुर्मांचल ले जाने को कहा। यहां सिर पडते ही उसने परम गति को प्राप्त किया और यह स्थान सरोवर में तब्दील हो गया। बाद में भगवान,बालेश्वर ऋषेश्वर, की कृपा व माता अखिलतारिणी से वरदान प्राप्त करने के पश्चात भीम ने इसके टुकडे-टुकडे कर इसे अपने पुत्र घटोत्कच के लिए समर्पित कर दिया।

भगवान विष्णु के कुर्मू अवतार व उनके चरणों से चिन्हित होने के कारण इस नगर का नाम कुर्मांचल पडा। और यह कुमाऊं उद्गम नाम भी माना जाता है यह भूमि सप्तऋषियों की आराधना स्थली भी कही जाती है। इसी पावन भूमि पर महर्षि वशिष्ठ मुनि ने अनेक ऋषियों सहित भगवान शिव की लंबे समय तक तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ऋषेश्वर में भगवान शिव ने वशिष्ठ मुनि को दर्शन दिए और शिवलिंग के रूप में जगत के कल्याण के लिए यहीं पर स्थित यह मंदिर चम्पावत जनपद के लोहाघाट नगर में लोहावती नदी के किनारे स्थित है। प्राचीन काल में जंगल के बीच इस शिवलिंग की पूजा बारह गांव के लोग करते थे। सन् १९६० के लगभग १०८ श्री बालक बाबा जी ने इस मंदिर से नदी पर उतरने के लिए सीढयां बनवाई। इसके बाद सन् १९७० श्री श्री १०८ बाबा हीरानंद ने भक्तजनों का सहयोग लेकर धर्मशाला का निर्माण करवाया। इन्हीं की प्रेरणा से इस समय यहां पर अनेक मंदिर बने हैं, जिनमें राम मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, काली मंदिर, हनुमान मंदिर, देवी मंदिर, गणेश मंदिर एवं भैरव मंदिर स्थापित हैं। वर्ष भर इस मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है लेकिन श्रावण मास में यहां भक्तों की विशेष चहलकदमी रहती है

 

बालेश्वर महादेव की इस भूमि पर कुमाऊँ के लोक देवता गोलज्यू का भी प्राचीन दरबार सदियों से आस्था का प्रतीक है।गोरलचौड़ में इनके दरबार में मनौती मांगने के लिए भक्तों की आवाजाही लगी रहती है। बालेश्वर की इस बंसुधरा पर द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण व बलराम ने भी अपनें पग धरे
कहा जाता है, कि देवाधिदेव महादेव भूतभावन भगवान शिव को समर्पित बालेश्वर महादेव के मंदिर का भव्य निर्माण चंद राजाओं ने करवाया । यहाँ रत्नेश्वर महादेव के साथ चंपावती देवी के अलावा अनेकों देवी- देवताओं का पूजन होता है। कुल मिलाकर बालेश्वर महादेव की महिमा का वर्णन अतुलनीय है जिसे सपनों में नहीं समेटा जा सकता है।//// @ रमाकान्त पन्त///

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad