समस्त मंगल का मूल है,भगवती भद्रकाली : योगेश पंत

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भद्रकाली(बागेश्वर) समस्त मंगलों का मंगल करने वाली,मंगलों को मंगलता का वैभव प्रदान करने वाली,वर देने वालों को भी वरदान देने वाली,सर्व शत्रुविनासिनी,सर्व सुखदायिनी,सर्व सौभाग्यदायिनी,लोक कल्याणकारिणी,सर्व स्वरुपा, कल्याणी माता श्री भद्रकाली की महिमां अपरम्पार है,यह उद्गार माँ भद्रकाली मंदिर समिति के मुख्य संरक्षक योगेश पंत ने प्रकट किये।
श्री पंत ने कहा आदि व अनादि से रहित भगवती भद्रकाली की कृपा से ही समस्त चराचर जगत की क्रियायें सम्पन्न होती है।यह देवी जय को भी जयता प्रदान करती है।उन्होनें बताया
जनपद बागेश्वर की पावन भूमि पर कमस्यार घाटी में स्थित माता भद्रकाली का परम पावन दरवार सदियों से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है।कहा जाता है,कि माता भद्रकाली के इस दरबार में मांगी गई मनौती कभी भी ब्यर्थ नही जाती है,जो भी श्रद्वा व भक्ति के साथ अपनी आराधना के श्रद्वा पुष्प माँ के चरणों में अर्पित करता है,वह परम कल्याण का भागी बनता है। माता श्री महाकाली के अनन्त स्वरुपों के क्रम में माता भद्रकाली का भी बड़ा ही विराट वर्णन मिलता है।जगत जननी माँ जगदम्बा की अद्भूत लीला का स्वरुप अनेक रुपों में माता श्री भद्रकाली की महिमां को दर्शाता है।पुराणों के अनुसार माता भद्रकाली का अवतरण दैत्यों के सहांर व भक्तों के कल्याण के लिए हुआ है।कहा जाता है,कि जब रक्तबीज नामक महादैत्य के आंतक से यह वंशुधरा त्राहिमाम हो उठी थी,तब उस राक्षस के विनाश हेतु माँ जगदम्बा ने भद्रकाली का रुप धारण किया। तथा महापराक्रमी अतुलित बलशाली दैत्य का संहार किया, रक्त बीज को यह वरदान प्राप्त था,कि उसका जिस किसी के साथ भी युद्व होगा युद्व के समय उसके शरीर से गिरने वाली रक्त की बूंदों से उसी के समान महाबलशाली दैत्य उत्पन्न होगें।जगदम्बा माता ने भद्रकाली का विराट रुप धारण करके उसके रक्त की बूदों का पान करके उसका सहांर किया।
श्री पंत ने बताया
कि यहां पर माँ भद्रकाली पूर्ण रूप से वैष्णवस्वरूप में पूज्यनीय है, माँ भद्रकाली को ब्रह्मचारिणी के नाम से भी जाना जाता है। वैष्णों देवी मन्दिर के अलावा भारत भूमि में यही एक अद्भूत स्थान है, जहां माता भद्रकाली की महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती तीनो रुपों में पूजा होती है। इन स्वरुपों में पूजन होने के कारण इस स्थान का महत्व सनातन काल से पूज्यनीय रहा है, माँ भद्रकाली की एतिहासिक गुफा अद्भूत व अलौकिक स्वरुप है, जो मन्दिर के नीचे है, गुफा के नीचे कल कल धुन में नृत्य करते हुए नदी बहती है, इसी गुफा के ऊपर माँ भद्रकाली विराजमान है।देवी के इस दरबार में समय समय पर अनेकों धार्मिक अनुष्ठान सम्पन होते रहते है।मन्दिर में पूजा के लिये चंद राजाओं के समय से आचार्य एवं पूजारियों की व्यवस्था की गई है।
श्री योगेश पंत ने कहा उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ मण्डल में बागेश्वर जनपद अंतर्गत बागेश्वर मुख्यालय से लगभग ३० किमी पूर्व में पहाड़ की सुरभ्य मनमोहित वादियों के बीच में स्थित इस देवी के दरवार की एक विशेषता यह है,कि प्रायः माँ जगदम्बा के मन्दिर एवं शक्ति स्थल पहाड़ की चोटी पर होते है ,लेकिन यह मन्दिर अन्य शक्ति स्थलों की अपेक्षा चारों ओर रमणीक शिखरों के मध्य बीच घाटी में स्थित है। और इन शिखरों पर नाग देवताओं के मन्दिर विराजमान हैं । जो यहां आने वाले आगन्तुकों को बरबस ही अपनी ओर खीचं लेते है। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता साधना के लिए जगत माता की ओर से भक्त जनों के लिए अनुपम उपहार है।
भद्रकाली मन्दिर से एक नदी निकलती है, जिसको भद्रा नदी कहते है।देव,गन्धर्व,सर्प,आदि भद्रेश का पूजन करते है, चटक,श्वेतक,काली आदि नाग यहां पर भद्रकाली की पूजा कर धन्य है।
*तत्र भद्रवती नामा कन्दरायां महेश्वरी।पूज्यते नागकन्याभिर्नागैश्रवान्यैस्तथैव च।।
इस भूभाग से होकर बहने वाली नदियों में सुभद्रा नदी की बड़ी महिमां है।कहा गया है, सुभद्रा नदी में स्नान करके भद्रकाली का पूजन करने से परम गति की प्राप्ति होती है।
*सुभद्रासरितस्तोये निमज्य मुनिसत्तमां: ।देंवी भद्रवतीं पूज्य नरो याति परां गतिम्।।*
भ्रदकाली के निकटतम तीर्थ स्थलो में क्षेत्रपाल के पूजन का भी अद्भूत महात्म्य है।भद्रकाली मन्दिर के नीचे गुफा के भीतर मनभावन आकृतियां है,तथा बीच में एक शिवलिगं है।
उन्होने बताया अनन्त रुपों में अपनी लीला का विस्तार करने वाली अनन्त स्वरुपा सर्वस्वरुपिणी मां भद्रकाली की उत्पत्ति की एक गाथा दक्ष प्रजापति के यज्ञ से भी जुड़ी हुई ह

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