मानवीय गुणो की अद्भूत मिशाल है संतोष काण्डपाल

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जनपद बागेश्वर के सिमाली गाँव निवासी एवं माँ भद्रकाली के परम आस्थावान भक्त संतोष काण्डपाल ने क्षेत्र में माँ भद्रकाली के प्रति भक्ति का अद्भूत संचार किया है माँ के चरणों में गहरी आस्था रखने वाले श्री काण्डपाल द्वारा देवभूमि के तमाम पावन स्थलों पर समय- समय पर विशाल भण्डारे का आयोजन किया जाता है तथा सर्व स्वरूपा माँ भद्रकाली की भक्ति का प्रचार – प्रसार भी निरंतर किया जाता है इन्हीं के अथक प्रयासों से गुमनामी के साये में गुम सिमाली गाँव की माँ भद्रकाली का मंदिर प्रकाश में आया है
जरूरतमंद लोगों की मदद हेतु सदैव तत्पर रहने वाले युवा समाज सेवी संतोष काण्डपाल की प्रसिद्धि दिन प्रति दिन लोकप्रियता की ओर बढ़ते जा रही है

सिमाली गाँव में स्थित माँ भद्रकाली की महिमां पर प्रकाश डालते हुए
कहा माँ भद्रकाली की महिमां कमस्यार घाटी में सर्वत्र फैली हुई है इनकी अद्भूत लीला का एक और शक्ति स्थल सिमाली गाँव में है माॅ भद्रकाली के इस गुप्त स्थान की जानकारी बहुत ही कम लोगों को है माँ भद्रकाली का यह भव्य मंदिर बेहद आकर्षण का केन्द्र है यहाँ पहुंचकर जो निराली शान्ति मिलती है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है भद्रा नदी के तट पर इस मंदिर के भीतर एक विशाल पत्थर गुफा के आकार को लिए हुए है जिनके निचें एक पिण्ड़ी की पूजा होती है साथ में दो और छोटी – छोटी पिण्डीयों की भी यहाँ पूजा होती है प्राकृतिक रुप से प्रतिष्ठित माँ भद्रकाली के इस दरबार की आध्यात्मिक मनोहरता मन को निर्मल कर देती है

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श्री काण्डपाल ने बताया शाडिल्य ऋषि की तपोभूमि शनि उडियार से कुचौली जानें वाले मार्ग के मध्य से लगभग दो किलोमीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी में स्थित माँ भद्रकाली के इस दरबार तक पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है माँ भद्रकाली का यह प्रांचीन मूल स्थान माना जाता है शुरभ्य पहाड़ी में स्थित इस पहाड़ी की चोटी के ऊपर से ही भद्रा नदी प्रकट हुई है जहाँ से नदी प्रकट हुई है उस स्थान को भद्रकाली माता का प्रथम मूल स्थान माना जाता है यहाँ तक पहुंचना बेहद जटिल है यहाँ कोई तपोनिष्ठ योगी भक्त ही पहुंच सकता है
उन्होनें बताया इससे आसपास नाग पर्वत का विशाल महात्म्य पुराणों में वर्णित है जिसे विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है पुराणों में कहा गया है ‘भद्रा’ के उद्गम स्थल पर ‘भद्रेश’ की पूजा करने से सिद्धि प्राप्त होती है। देव, गन्धर्व, सर्प आदि देवी का पूजन करते हैं। यहाँ ‘चटक’, श्वेतक, ‘कालीय’ नाम आदि ‘भद्रा के मूल में वास देवगन्धर्वाद से सेवित ‘भद्रा” के तीर्थो का सुन्दर जिक्र पुराणों में आया है

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