मानेश्वर महादेव के दर्शन- पूजन से मिलती है लौकिक समृद्धि एवं पितरों को परम शान्ति

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मानेश्वर महादेव के दर्शन- पूजन से मिलती है लौकिक समृद्धि एवं पितरों को परम शान्ति
  पाण्डवों ने इस तीर्थ पर किया था अपने पिता का श्राद्ध तर्पण
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चम्पावत के मानेश्वर महादेव जी का मन्दिर  एक ऐसा पावन तीर्थ है जहाँ पहुंचकर श्रद्धालु भक्तों को अनेकानेक अद्भुत एवं दिव्य अनुभूतियां सहज ही होने लगती हैं ।  प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर नैसर्गिक वातावरण के मध्य स्थित इस मनोरम देव स्थल की महिमां अदभुत, अलौकिक, निराली एवं अकल्पनीय है। धर्म, संस्कृति, इतिहास, आध्यात्म एवं महादेव की लीलाओं का विराट वैभव मानो यहाँ कण- कण में समाहित है। 
माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु भक्त यहाँ पहुंच कर मानेश्वर महादेव की पवित्र पिण्डी के दर्शन- पूजन – अर्चन आदि करते हैं, उन्हें इस लौकिक जगत की सम्पूर्ण समृद्धि प्राप्त होती है और जो श्रद्धालु भक्त इस तीर्थ पर अपने पितरों का श्राद्ध तर्पण करते हैं, उनके समस्त पितरों को परम शान्ति एवं परम आनन्द की प्राप्ति हो जाती है ।  
मानेश्वर महादेव मन्दिर में स्थित स्वयम्भू शिव पिण्ड़ी आदि काल से ही ऋषि-मुनि, साधु-संत, देव- दनुज, यक्ष, गन्धर्व तथा साधकों द्वारा सेवित, वन्दित एवं पूजित मानी गयी है । पौराणिक कथानुसार मानेश्वर महादेव जी के शरणागत होकर ही पाण्डवों ने अपने पिता पाण्डु का श्राद्ध इसी मानेश्वर तीर्थ में किया था । कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान जब पाण्डव देवशूमि के मानस क्षेत्र भ्रमण पर थे, तब पाण्डवों ने अपनें पिता पाण्डु का श्राद्ध मानसरोवर तीर्थ के तट पर करने की इच्छा से मानसरोवर की यात्रा आरम्भ की । पाण्डवों की यह इच्छा अपनी माता की इच्छा के सम्मान को लेकर थी । पाण्डवों की माता कुंती चाहती थी कि कभी मानसरोवर के पवित्र जल से उनके पति पाण्डु का श्राद्ध हो । माता की इच्छा को पूर्ण करने के लिए पाण्डवों ने द्रोपदी संग बनवास काल में हिमालय की ओर प्रस्थान किया । चलते-चलते वे कूर्मांचल पर्वत के मानेश्वर तीर्थ पहुंचे थे कि इसी दिन श्राद्ध की तिथि आ गयी । माता के संकल्प को पूर्ण करनें के लिए अर्जुन ने अपने बाण से मानसरोवर के जल को यही प्रकट कर दिया और भगवान मानेश्वर  के सानिध्य में विधि पूर्वक मानसरोवर के जल से पाण्डवों ने अपने पिता महाराजा पाण्डु का श्राद्ध कर्म सम्पन्न किया ।
स्कंद पुराण के मानस खण्ड के पैतीसवें अध्याय में इस अलौकिक स्थान की महिमां का वर्णन महर्षि वेद व्यास जी ने सुन्दर शब्दों में करते हुए लिखा है –
व्यासजी ने उत्तर दिया मुनिवरों कूर्माचल के मध्य में विद्याधरों से सेवित मानसेश्वर नामक पर्वत है। उसके शिखर पर ‘मानसेश्वर’ महादेव विराजमान है। यहाँ विराजित शिव भोगप्रद भी हैं और मोक्षदायक भी हैं, वही भक्तों को शिवलोक का मार्ग बतलाते हैं। उन भगवान शंकर की ब्रह्माजी ने मन में सृष्टि की थी। इस बात को जानकर देवों, गन्धवों आदि ने भी इनका अर्चन किया। यहीं पर मानसरोवर की अन्तिम सीमा भी देखी गयी। इसको भगवान शंकर ने ही दिखाया।
 ऋषियों ने फिर पूछा ब्रह्मर्षि। भगवान शंकर ने मानसरोवर का रहस्य किस प्रकार विदित कराया। 
इस पर व्यासजी ने उत्तर दिया ऋषिवरों! सत्ययुग के आरम्भ में निकुम्भ नाम से शिव का एक प्रमुख गण था। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए तत्पश्चर्या की। शिवजी को प्रसन्न हुआ देख उसने पवित्र जल को प्रवाहित करने वाली नदियों के बारे में शिवजी से पूछा। तब देव देवेश ने  मानसरोवर को ही सब पर्वतीय नदियों का उद्भव बतलाया । तत् पश्चात आनन्दित होकर निकुम्भ ने मानसरोवर की सीमा के अन्त होने की बात पूछी । भगवान शिव ने कुर्मांचल पर्वत के शिखर पर मानसरोवर में समुदभूत जल को अपने चरण से प्रकट होता हुआ दिखाकर कहा हे गणनायक! हिमालय में समग्र जल मानसरोवर से ही प्रकट हुआ है।
व्यास जी ने कहा  ऋषिवरों! इस प्रकार भगवान शंकर की बात सुन सरोवर का अन्त देख वह गण परम पद को प्राप्त हुआ। तभी से जो भी वहां पर स्नान कर देवेश का पूजन करते हैं, उन्हें लौकिक ऐश्वर्य के पश्चात अन्ततः मुक्तिलाभ होता है। व्यास जी ने आगे कहा कि वहाँ पिण्डदान करने वालों के सभी पितृगण ब्रह्मलोक प्राप्त करते हैं। ‘गण्डकी’ और लोहावती नदियों के मध्य स्नान कर शिव पूजन करने वालों को परम गति मिलती है । जो लोग हिडिम्बा सहित घटोत्कच को प्रणाम कर मानसेश का पूजन करते हैं, वे इस लोक में विपुल भोग भोगने के बाद अन्त में शिवसायुज्य प्राप्त कर लेते हैं। हे विप्रवरों ! मैंने आप लोगों को मानसेश्वर का महात्म्य बता दिया है। इसका श्रवण करने मात्र से शिवलोक प्राप्त होता है  
कुल मिलाकर इस स्थान का विराट आध्यात्मिक महत्व है मंदिर परिसर में कई संतों की समाधियां है जनपद मुख्यालय से लगभग 8 किमी की दूरी पर पिथौरागढ़ – चम्पावत मोटर मार्ग से लगभग सवा किलोमीटर स्थित मानेश्वर महादेव जी के निकट ही पूर्णागिरी माता का प्राचीन मन्दिर भी है मानेश्वर महादेव जी के चरणों में राजा निर्भय चंद की भी आपार श्रद्धा थी कहा जाता है आठवी शताब्दी में उनके द्वारा ही यहाँ पर मन्दिर का निर्माण किया गया यहाँ स्थित गुप्त नौलें का जल दैहिक दैविक भौतिक तापों के निवारण के लिए सुखद माना जाता है यह विशेष पुण्यप्रद क्षेंत्र माना गया है
मदन मधुकर
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