साडिल्य ऋषि की तपोभूमि सनि उडियार में छायी रौनक : भद्रकाली महोत्सव को लेकर जबरदस्त उत्साह : अद्भुत महिमां समेटे है यह क्षेत्र , प्रवासी भी पहुंचनें लगे : भेट- घाट का सिलसिला शुरू

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बागेश्वर/ सनिउडियार के इण्टर कालेज मैदान में माँ भद्रकाली को समर्पित भद्रकाली महोत्सव भेट- घाट का आयोजन 22 दिसम्बर से 24 दिसम्बर तक होगा आयोजन को लेकर समूचे क्षेत्र में विशेष उत्साह है आयोजन को भव्य एवं दिव्य बनानें के लिए आयोजक मण्डल व्यापक तैयारियों में जुटा हुआ है
समिति के अध्यक्ष केवलानन्द पाण्डे संरक्षक नारायण सिंह धामी संयोजक राजेन्द्र सिंह उपाध्यक्ष होशियार सिंह धामी सचिव दरवान सिंह आदि ने लोगों का आवाहन करते हुए कहा कि अधिक से अधिक संख्या में पहुंचकर महोत्सव की शोभा बढ़ाये
भेंट – घाट के इस महोत्सव में एक से बढ़कर एक नामी कलाकार व स्थानीय कलाकार अपनी शानदार प्रस्तुतियां देंगें महोत्सव का उद्देश्य पारम्परिक कला संस्कृति व सांस्कृतिक धरोहरो को संजोना और उसे नई पीढ़ी तक पहुंचाना है
महोत्सव में कुमाऊँनी एवं गढ़वाली संस्कृति से ओत – प्रोत रंगारंग कार्यक्रम स्थानीय कलाकारो के कार्यक्रम खेल लोकप्रिय कुमाऊंनी गढ़वाली कलाकारों की प्रस्तुतियां बेहद आकर्षण का केन्द्र होगी

महोत्सव के माध्यम से माँ भद्रकाली दरबार की महिमा को जन-जन तक पहुंचाना भी महोत्सव का उद्देश्य है क्योंकि कमस्यार घाटी बागेश्वर में स्थित माँ भद्रकाली का दरबार उत्तर भारत का एक ऐसा दिव्य पावन दरबार है जहां बड़े-बड़े ऋषि मुनियों ने तपस्या करके अलौकिक सिद्धियां प्राप्त की व संसार को अलौकिक ज्ञान प्रदान किया यही वह भूमि है जहां ऋषि मुनियों ने विराट हवन यज्ञ करके संसार को यज्ञ की महिमां से अवगत कराया इस क्षेत्र में माँ भद्रकाली के दो पौराणिक मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है इनकी प्रसिद्धि पुराणों में सर्वाधिक है किंतु तीर्थाटन एवं पर्यटन के हिसाब से यह स्थल गुमनामी के साए में गुम है
यहां यह भी बताते चलें की माँ भद्रकाली के आंचल में एक से बढ़कर एक महाप्रतापी तीर्थ स्थलों की लंबी श्रृंखलाएं मौजूद हैं जो युगों – युगों से आस्था एवं भक्ति का अद्भुत संगम है विराट आध्यात्मिक महत्व का केंद्र होने के बावजूद यह सभी तीर्थ स्थल गुमनाम है इन्हीं तमाम तीर्थ स्थलों की महिमा को उजागर करने एवं माँ भद्रकाली की महिमा को जन-जन तक प्रसारित करने के उद्देश्य से आयोजित इस महोत्सव को लेकर क्षेत्र में गजब का उत्साह देखा जा रहा है

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*🌹जनपद बागेश्वर का सबसे प्राचीन भद्रकाली मन्दिर गुमनामी के साये में गुम कमस्यार घाटी में है माँ भद्रकाली का एक और प्राचीन मंदिर*

माँ भद्रकाली की महिमां कमस्यार घाटी में सर्वत्र फैली हुई है इनकी अद्भूत लीला का एक और शक्ति स्थल यहाँ पर है माॅ भद्रकाली के इस गुप्त स्थान की जानकारी बहुत ही कम लोगों को है माँ भद्रकाली का यह भव्य मंदिर बेहद आकर्षण का केन्द्र है यहाँ पहुंचकर जो निराली शान्ति मिलती है उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है भद्रा नदी के तट पर इस मंदिर के भीतर एक विशाल पत्थर गुफा के आकार को लिए हुए है जिनके निचें एक पिण्ड़ी की पूजा होती है साथ में दो और छोटी – छोटी पिण्डीयों की भी यहाँ पूजा होती है प्राकृतिक रुप से प्रतिष्ठित माँ भद्रकाली के इस दरबार की आध्यात्मिक मनोहरता मन को निर्मल कर देती है

भद्रकाली गाँव में स्थित माँ भद्रकाली के भव्य दरबार की भातिं ही देवी को यहाँ भी तीन रूपों में पूजा जाता है मंदिर के भीतर विशाल पत्थर की छत्र छाया में स्थित यह शक्ति स्थल माँ भद्रकाली की अद्भूत लीला का प्रतीक है माँ भद्रकाली मंदिर के तट से बहनें वाली इसी भद्रावती नदी के ऊपर लगभग पाँच किलोमीटर नीचें माँ भद्रकाली का प्रसिद्ध दूसरा मंदिर एक गुफा के ऊपर स्थित है जो उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में एक है लेकिन माँ का यह स्थान गुमनामी के साये में गुम है

शाडिल्य ऋषि की तपोभूमि शनि उडियार से कुचौली जानें वाले मार्ग के मध्य से लगभग दो किलोमीटर की ऊँचाई पर पहाड़ी में स्थित माँ भद्रकाली के इस दरबार तक पैदल चलकर पहुंचा जा सकता है माँ भद्रकाली का यह प्रांचीन मूल स्थान माना जाता है शुरभ्य पहाड़ी में स्थित इस पहाड़ी की चोटी के ऊपर से ही भद्रा नदी प्रकट हुई है जहाँ से नदी प्रकट हुई है उस स्थान को भद्रकाली माता का प्रथम मूल स्थान माना जाता है यहाँ तक पहुंचना बेहद जटिल है यहाँ कोई तपोनिष्ठ योगी भक्त ही पहुंच सकता है स्थानीय भक्तों के अनुसार अन्यथा यहां पहुंचना असम्भव है इसी की निचली पहाड़ी पर माँ भद्रकाली का यह पौराणिक स्थल है कहा जाता है यहीं से माँ भद्रकाली कमस्यार घाटी के भद्रकाली गाँव में जाकर एक गुफा के ऊपर ठहर गयी इसी गुफा के नीचें से कल – कल धुन में नृत्य करती हुई भद्रकाली नदी बहती है यह मंदिर प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है लेकिन चोटी पर स्थित माँ भद्रकाली के एक अन्य प्राचीन मंदिर से लोग अनभिज्ञ से है और पौराणिक महत्व वाला माँ का यह मंदिर गुमनामी के साये में गुम है

कहा जाता है इस मंदिर के ऊपरी पर्वत से ही भद्रा नदी प्रकट हुई है और माँ ने यही से अपनी लीला बिखेरी और कमस्यार घाटी की तलहटी में भद्रकाली गाँव के निकट ठहरकर आस्था व भक्ति के संगम के रूप में पूजित हुई इससे पहले इनका प्राचीन पड़ाव सनिउडियार से लगभग तीन किलोमीटर आगे कुचौली मार्ग में छिमाली गाँव के निकट एक पर्वत पर भद्रा नदी के तट पर दिव्य रुप से रहा माँ भद्रकाली का यह प्राचीन मंदिर बारहाल गुमनामी के साये में गुम है माँ भद्रकाली के आस्थावान भक्त एवं इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा रखनें वाले संतोष काण्डपाल बताते है कि यह मंदिर पौराणिक आस्थाओं का केन्द्र है इस समूची घाटी में माँ भद्रकाली की महिमां सर्वत्र बिखरी हुई है इस क्षेंत्र में माँ के अनन्य भक्त महा प्रतापी नागों का वास है जिनके दर्शन कभी – कभार भक्त जनों को होते है उन्होंने बताया कि वे अपने स्तर से मंदिर क्षेत्र के विकास हेतु प्रयासरत है उनके दादा स्व० श्री फकीर दत्त काण्डपाल माँ के अनन्य भक्तो में एक थे उन्हें इस स्थान पर माँ के डोले के दर्शन हुए थे पूर्णमासी की रात्रि को यहाँ से माँ का डोला भद्रकाली के दूसरे मंदिर तक जाता है यह स्थान साधना की दृष्टि से बेहद उपयोगी है यहाँ पहुंचें माँ के भक्त योगेश पन्त कहते है वास्तव में यह स्थान भव्य व दिव्य है तीर्थाटन की दृष्टि से यहाँ का समुचित विकास नहीं हो पाया है गुमनामी के साये में गुम इस स्थान को प्रकाश में लाने के लिए सरकार को विशेष योजना बनायी जानी चाहिए ताकि भक्तजन दर्शनों का लाभ ले सकें

इस मंदिर के ऊपरी पर्वत पर खैरी नाग के वास स्थान का जिक्र आता है स्कंद पुराण में खैरी नाग का जिक्र आता है तथा कहा गया है गोपीश्वर महादेव के पूजन के पश्चात् खैरी नाग अर्थात् खर नाग का पूजन करना चाहिए

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व्यास जी ने मानस खण्ड में मुनिवरों के समूहों को बताते हुए इस क्षेत्र का वर्णन करते हुए कहा है शिखर पर ‘गोपीश्वर’ का पूजन कर ‘खर’ नामक महा- नाग का पूजन करना चाहिये । तब ध्यानपूर्वक ‘गोपालक’ नाग का पूजन करे। वहीं गोपियों तथा नागकन्याओं के समूह का पूजन भी करे। इनका पूजन करने से ‘गोपीश’ पद प्राप्त होता है। द्विजवरों ! तब ‘गोपीवन’ में ‘काली’ देवी का पूजन कर दुःख और भय को दूर भगा दिया जाय। नागपर्वत में जो पवित्र नदियाँ हैं, वे सब नागप्रमुखों ने स्वर्ग से बुलाई हैं। उनमें स्नान कर महेन्द्रभवन प्राप्त होता है। महर्षि शाण्डिल्य से आहूत ‘गुप्तसरस्वती’ में स्नान करने से ‘इन्द्रपुर’ मिलता है। तब पश्चिम की ओर ‘कोका’, ‘कोटीश्वरी’ तथा ‘कालिका’ का पूजन किया जाता है। दक्षिण भाग में कालीय आदि नागों से सेवित ‘भद्रा’ देवी का पूजन किया जाता है। ‘सुभद्रा-रामगङ्गा’ के मध्य जो ‘भद्रा’ की पूजा करता है, वह इक्कीस कुलों का उद्धार कर परमगति प्राप्त करता है।

तदनन्तर ‘कनक’ पर्वत के शिखर पर नागकन्याओं से सेवित ‘शाङ्करी’ देवी का पूजन कर दुर्गति से अपनी रक्षा करें। तब शिखरस्थ ‘फेनिल’ नाग का पूजन किया जाता है । वह ‘कालीय’ नाग का ज्येष्ठ पुत्र है। तथा जल तथा पुष्पों से उसका पूजन करने से किसी तरह का अमङ्गल नहीं होता । उससे आगे ‘त्रैलोक्य’ नाम का पूजन होता है उसकी पूजा आरोग्यवर्धक है। तब वन के छोर पर शिखरस्य एवं नाग कन्याओं से सेवित ‘मूलनारायण’ नाग है। तपोधनों ! उसने नारायण की आराधना कर दे दुर्लभ ‘नारायण’ नाम प्राप्त किया। उसकी आराधना करने पर दुर्लभ सिद्धियाँ सुलभ हो।
इससे आसपास नाग पर्वत का विशाल महात्म्य पुराणों में वर्णित है जिसे विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है पुराणों में कहा गया है ‘भद्रा’ के उद्गम स्थल पर ‘भद्रेश’ की पूजा करने से सिद्धि प्राप्त होती है। देव, गन्धर्व, सर्प आदि देवी का पूजन करते हैं। यहाँ ‘चटक’, श्वेतक, ‘कालीय’ नाम आदि ‘भद्रा के मूल में वास देवगन्धर्वाद से सेवित ‘भद्रा” के तीर्थो का सुन्दर जिक्र पुराणों में आया है

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कुमाऊँ का गोपीवन : जहाँ राधा कृष्ण व गोपियों को हुए शिवजी के दर्शन

कांड़ा बागेश्वर।देवभूमि उत्तराखण्ड़ प्राकृतिक सौदर्य की दृष्टि से भारत का ही नही अपितु विश्व का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है यहां के पर्यटक एंव तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हुए जो आध्यात्मिक अनूभूति होती है वह अपने आप में अद्भुत है।पर्यटन की दृष्टि से ही नहीं बल्कि तीर्थाटन की दृष्टि से भी यह पावन भूमि महत्व पूर्ण है इसी कारण यहां का भ्रमण अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा श्रेष्ठ एंव संतोष प्रदान करने वाला है,पर्यटन एंव तीर्थाटन के विकास के लिए सरकार समुचित सहायता व प्रोत्साहन कब देगी यह तो समय ही बतलाऐगा, किन्तु इतना जरूर है।गुमनामी के साये में बदहाल तीर्थ स्थल यदि प्रकाश में लाएं जाएं तो ये तमाम तीर्थ विराट महत्व को प्रकट कर आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम बनकर उभर सकते है।ऐसे ही पावन तीर्थों में अद्भूत माहिमां वाला क्षेत्रं है।गोपीश्वर महादेव मंदिर।
जनपद बागेश्वर के काड़ां क्षेत्रान्तर्गत गोपीश्वर महादेव का मदिरं पौराणिक काल से परम पूज्यनीय है,स्थानीय जनमानस में इस मंदिर के प्रति अगाध श्रद्वा है।स्कंदपुराण में गोपीश्वर महादेव की महिमां का अद्भूत वर्णन करते हुए कहा गया है।गोपेश्वर के स्मरण व दर्शन से समस्त पापों का हरण हो जाता है। मिलता है।*
*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹पातका विप्रलीयन्ते गोपीश।दर्शनात् किमु भो विप्रा : पूजनात् कथयाम्यहम्(59)केदारखण्ड़ अध्याय80)*
पुराणों के अनुसार गोपीश्वर नामक इस स्थान पर गोपियों ने भगवान शंकर की आराधना करके उत्तम गति प्राप्त की गोपियों के द्वारा इस स्थान पर शिवजी की तपस्या किये जाने से ही इस स्थान का नाम गोपीश्वर पड़ा।इस स्थल की महिमां इतनी विराट है,कि उसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है।इस क्षेत्रं से होकर बहने वाली पवित्र नदी भद्रा की महिमां गोपेश्वर की गरिमा को दर्शाती है।पुराणों में कहा गया है।भद्रा में स्नानकर उसके बायीं ओर गोपेश्वर का पूजन करने से मोक्ष प्राप्त होता है।इसके पादतल से होकर बहने वाली सरस्वती नदी भद्रा में मिलती है।
*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹यस्य वामे महादेवो गोपीश:पूज्यते द्विजाः ।निमज्य मुनिशादूर्ला भद्रातोये प्रयन्नतः।।,,,,,पूज्य गोपेश्वरं देवं प्रयाति परमं पदम्।*
महार्षि भगवान वेद ब्यास जी ने गोपीश्वर की महिमां का बखान करते हुए कहा कि इस स्थान पर भगवान शंकर की पूजा करने से पृत मातामहादि पूर्वजों द्वारा किये गये पाप भी प्रभावहीन होकर क्षय को प्राप्त होते है।शिवजी की आराधना के लिए भूमण्डल में यह भूभाग सर्वोत्तम तथा शिवलोक की प्राप्ति कराने वाला कहा गया है।हिमालय की गोद में बसे उत्तराखण्ड़ के पवित्र आचलं जनपद बागेश्वर की भूमि में स्थित गोपेश्वर कभी गोपीवन के नाम से प्रसिद्व रहा हैं।सौदर्य से परिपूर्ण घाटी नागगिरी पर्वत के समीप गोपीश्वर महादेव में शिव जागृत रुप में विराजमान बताये जाते है,कहा जाता है,कि जो प्राणी भगवान गापीश्वर के इस दरवार में अपने भावनाओं के श्रद्वापुष्प भक्ति के साथ भोलेनाथ जी के चरणों में अर्पित करता है।वह समस्त भयों से रहित होकर जीवन का आनन्द व मोक्ष प्राप्त करता है।इस दुर्लभ स्थान की सबसे बड़ी विशेषता यह है,कि वर्णशंकर दोष का यही निवारण होता है।कहा तो यहां तक गया है।दुरात्मा मानवों के पाप गोपीश्वर मण्डल में पहुंचने के पूर्व तक ही विघमान रहते है।यहां पहुचनें पर पूर्वजो के पाप भी क्षय हो जाते है।गोपीश्वर का पूजन करने पर इक्कीस बार सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने का फल मिलता है।
गोपीश्वर नाथ की अपरम्पार महिमां के बारे में ऋषियों की जिज्ञासा को शान्त करते हुए स्कंद पुराण में ब्यास भगवान ने इस पावन स्थल के बारे में बताया है,कि कभी यहां के पावन पर्वतों पर नाग समुदाय ने माता कामधेनु की सेवा की थी।पुराणों में इस भूभाग को नागपुर क्षेत्र कहा है।ऊँचे पर्वतों पर विराजमान नाग देवताओं के मंदिर गोपीश्वर की अद्भूत महिमां को उजागर करते है।गोपीश्वर व उसके आसपास के तमाम पर्वत नाग पर्वतों के नाम से प्रसिद्ध है।इन तमाम मंदिरो में आज भी विधिवत नागों का पूजन होता है।नाग पर्वत, नागपुर के विषय में अनेक रहस्यमयी दंत कथाएँ आज भी लोगों की जुबां पर सुनी जा सकती है।पुराणों ने भी इस विषय में शब्द की प्रमाणिकता को प्रकट करते हुए कहा है।सत्युग के आरम्भ में व्रह्मा जी ने सारी पृथ्वी को अनेक खण्ड़ों में विभक्त कर दिया था।विभक्त भूभागों में देवता,दानव,गन्धर्व,अप्सरायें,विधाधर,तथा भांति भांति पशु,पक्षी आदि को रहने के लिए अनेक स्थान वितरित किये।इसी भातिं ब्रह्मा जी ने नागों के लिए हिमालय के आंचल में नागपुर नामक स्थान नियत किया।ब्रह्मा के बनाये गये नियमों को सिरोधार्य मानकर नागों ने यह भूखण्ड़ प्राप्त किया।जो नागपुर के नाम से जाना जाता है।इसी नागपुर में कामधेनु ने नागों की सेवा से सतुष्ट होकर उनसे वरदान मांगनें को कहा इस पर नाग देवता बोले हमें अपने समान ही गो,,,,कुल प्रदान करके कृतार्थ कीजिए कामधेनु से वर पाकर अंसख्य गायों को प्राप्त करके उनके चरने के लिए नागों ने गोपीवन की रचना की और उस गोचर भूमि में गायों को चराने एंव उनकी रक्षा करने के लिए नागकन्याओं को जिम्मेदारी सौपी गई गोपीवन गोपीश्वर में गायों को चराने के साथ साथ नागकन्यायें गोपीश्वर की आराधना में तत्पर रहती थी।तभी भगवान भोलेनाथ की लीला के प्रभाव से एक बार उन्हें इस पहाड़ के अग्रभाग की तलहटी पर एक अद्भूत गुफा देखी गुफा के समक्ष सरस्वती गंगा के भी दर्शन किए वहां उन्होनें शिवजी की भी पूजा की यह गुफा वर्तमान में सानिउडियार के नाम से प्रसिद्ध है।मान्यता है,कि इसी गुफा में शाडिल्य ऋषि ने भगवान शंकर की तपस्या करके उन्हें संतुष्ट किया था।इस गुफा को देखकर नागकन्याओं की जिज्ञासा गुफा के रहस्य को लेकर बढ़ गयी नागराज मूलनारायण की कन्या के साथ नाग कन्याओं ने उसमें प्रवेश की चेष्टा की लेकिन वे असफल हुई निराश नागकन्याओं ने भगवान शंकर की स्तुति करते हुए कहा यदि हमारी शिवभक्ति सच्ची है।तो हम गुफा को पार कर जाएं भगवान शंकर को आगे करके वे गुफा में प्रवेश कर गई उन्हें आशा थी अवश्य ही इस गुफा में भगवान शंकर उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करेगें लेकिन उनकी यह आस अधूरी रह गई इतना ही नही उनकी गायें भी गुम हो गयी गायों को ढूढ़ते ढूढते भटकते भटकते नाग कन्यायें दूसरे वन में पंहुच गई उस वन के गोचर भूमि में हरी भरी घास के बीच उन्होनें अपनी गायों को चरते देखा और सोचा ये गाये घास के लोभ में यहां तक पहुंच गयी इसी बीच उन्होने गायों के समुदाय के मध्य तेजोमय भगवान शिव के अलौकिक स्वरुप को देखा उन्होने देखा कि इस स्वरुप से चराचर जगत दीप्तिमान् हो रहा है।उन्हीं गायों के मध्य भगवान शिव के अलौकिक स्वरूप वाले ज्योतिर्मय लिंग के तेजो मण्डल से आकाश के मध्यवर्ती सूर्य की ज्योति फीकी पड़ गई है।शिवजी के इस स्वरुप के दर्शन पाकर नागकन्याये धन्य हो गई ।ये ही नागकन्यायें गोपियों के नाम से भी प्रसिद्ध थी।गोपियों ने शिव को प्रणाम कर भांति भांति प्रकार से उनका पूजन किया।गोपियों की भगवान गोपीश्वर के प्रति की गई यह स्तुति पुराण में काफी प्रसिद्ध है
*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹नमो हरायामितभूषणाय चितासमिदभस्मविलेपनाय।बृषध्वजाय सुवृषप्रभाय शिवाय शान्ताय नमो नमस्ते।।नमो विरूपाय कलाधराय षडर्धनेत्राय परावराय।ऋषिस्तुतायापरिसेविताय नमो नमस्ते बृषवाहनाय।।*
अर्थात् असंख्य भूषणभूषित,चिताभस्मलिप्तांग,वृषध्वज,मोर की कान्ति स्वरुप शान्त शिव को हम प्रणाम करते है।विरूप,कलाधर,त्रिनेत्र,चन्द्रशेखर तथा महर्षियों से संस्तुत शंकर को हम बार बार नमस्कार करते है।
गोपियों(नागकन्याओं)की प्रार्थना सुनकर शिवजी ने गोपियों को प्रत्यक्ष दर्शन दिए।तथा उन्हें वरदान देकर अर्न्तध्यान हो गये शिवजी के वरदान के प्रभाव से गोपियां भी गायों के साथ शिवजी में प्रविष्ट हो गयी।इस प्रकार वे उत्तमगति को प्राप्त हुई और यह स्थान जगत में गोपीश्वर के नाम से प्रसिद्व हुआ गोपीश्वर के स्मरण तथा दर्शन से पापों का हरण हो जाता है।जनपद बागेश्वर के कांडा नामक स्थान से लगभग चंदकिलोमीटर की दूरी पर पो० सिमकौना स्थित गांव को मणगोपेश्वर के नाम से भी पुकारते है।रावल लोग इस मंदिर के पुजारी है।

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राज्य में पर्यटन एंव तीर्थाटन की आपार सभांवनाएं है।स्थानीय लोक कलाओं के विकास व सास्कृतिक आदान प्रदान में तीर्थाटन एंव पर्यटन का विशेष महत्व है। मानव सभ्यता के विकास में तीर्थाटन एंव पर्यटन की विशेष भूमिका होती है।तमाम स्थलों के बेहतर विकास के लिए प्रसिद्ध स्थलों साथ ही जो स्थल गुमनामी के साये में है,उन्हें भी प्रकाश में लाने के लिए सरकार को भरसक प्रयास करने चाहिए।गोपीश्वर क्षेत्रं अपनी अलौकिक सुन्दरता व धार्मिक क्षेत्र के रुप में प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है।इसके आसपास कई ऐतिहासिक धार्मिक व प्राकृतिक स्थल है जो पर्यटन एंव तीर्थ के रुप में अपना विशेष स्थान रखते है।लेकिन गुमनामी के साये में गुम है।जिनका प्राकृतिक सौदर्य के अलावा आध्यात्मिक महत्व भी है धर्म,दर्शन और आध्यात्म के साधकों को यहां का वातावरण सदा ही आकर्षित करता रहा है।यहभूमि ऋषि मुनियों की तपस्या स्थली है। एक से बढ़कर एक महाप्रतापी ग्राम देवता यहां पर्वतों पर वास करते है,जोअनेक पौराणिक कथाओं,गाथाओं को अपने आप में समेटे है।

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महामंगल को प्रदान करती है कपूरी गाँव की माँ भगवती अलौकिक रहस्यों का अद्भूत आध्यात्मिक संगम है देवी का यह दरबार

जनपद बागेश्वर के कमस्यार घाटी में स्थित कपूरी गांव का सौंदर्य अपनें आप में अदितीय है सौंदर्य की दृष्टि से यह गांव जितना सुंदर है आध्यात्मिक दृष्टि से उतना ही मनभावन है इस गाँव का मनोहारी वर्णन शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है

यूं तो समूची कमस्यार घाटी आध्यात्मिक जगत की एक विराट धरोहर है इस घाटी व घाटी के पर्वतों पर एक से बढ़कर एक महा प्रतापी देवी देवताओं का वास है इन देवी देवताओं की महिमां का वर्णन पुराणों में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है कपूरी गाँव की चोटी पर स्थित माँ भगवती का दरबार यहां युगों- युगों से आस्था भक्ति का एक अद्भूत संगम है इस स्थान पर पहुंच कर सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त ब्याधियाँ यूं शांत हो जाती हैं जैसे अग्नि की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है

प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर कमस्यार घाटी सदा से उपेक्षित रही है इसी उपेक्षा के दंश की परिधि में कपूरी गाँव भी है और यहाँ का सुरभ्य आध्यात्मिक स्थल माँ भगवती का पौराणिक दरबार गुमनामी के साये में गुम है

देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती में तीर्थाटन का पौराणिक काल से विशेष महत्व रहा है कुमाऊँ की धरती पर कमस्यार घाटी भी विराट आध्यात्मिक चेतना का केन्द्र रहा है शक्ति पीठ व नाग मंदिरों एवं शिवालयों की श्रृंखला में इस पावन भूमि का कोई जबाब नही है यहाँ हर गाँव के देवता के प्रति सभी गाँवों के लोगों की आस्था रहती है शिव शक्ति के विविध रूपों की पूजा से लेकर भूमि व कुल देवताओं की पूजा के लिए प्रसिद्ध यहाँ की धरती में तीर्थाटन दैवीय और सांसारिक दोनों ही दृष्टियों से काफी महत्वपूर्ण है

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर सुंदर पर्वतमालाएं व घाटियों मैं बिखरा अलौकिक वातावरण इन सबके बीच कमस्यार घाटी का कपूरी गाँव व गाँव की ऊँची पहाड़ी पर गुफा के भीतर माँ भगवती का भव्य दरबार रहस्य रोमांच की अद्भुत धरोहर है स्थानीय भक्तजन बताते हैं कि यहाँ पर देवी के दरबार में पूजन की परम्परा सदियों से चली आ रही है ऐसी मान्यता है कि जब हवनतोली आदि क्षेत्रों में ऋषियों ने पौराणिक काल में जब विराट यज्ञ किया तो यज्ञ की सफलता के लिए सर्वप्रथम कपूरी की माँ भगवती से आशीर्वाद लिया

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कुछ भक्तजन इसे कपिल मुनि की तपोभूमि भी बताते है स्कंद पुराण में माँ चण्डिका के समीप गिरिजा देवी का वास बताया गया है इस कारण कुछ भक्त माँ गिरिजा के रूप में देवी का पूजन करते है तो कुछ भक्त चौसठ योगिनियों की स्वामिनी के रूप में माँ भगवती की उपासना करते है कुछ भक्त माँ भगवती की स्तुति ब्रह्मचारिणी के रूप में करते है बारहाल अनन्त स्वरूपों में विराजित कपूरी की माँ भगवती का गुफा रूपी भवन बेहद गूढ़ रहस्यों को अपनें आँचल में समेटे हुए है
माँ कपूरी की भगवती को कई भक्त कपूरी देवी के नाम से भी पुकारते है श्रीमद् देवी भागवत में पर्वत के शिखर व शिखर की गुफा में निवास करनें वाली कपूरी देवी की स्तुति में एक श्लोक इस प्रकार आया है

*कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया , कूटस्था कुधरा कम्रा कुक्षिस्था खिल विष्टपा*

अर्थात् कर्पूरलेपना कृष्णा कपिला कुहराश्रया ( बुद्धिरूपी गुहा में स्थित रहनें वाली कूटस्था ( पर्वत शिखर पर निवास करने वाली कुधरा( पृथ्वी को धारण करनें वाली) कम्रा ( अत्यन्त सुन्दरी) कुक्षिस्थाखिलविष्टपा( अपनी कुक्षि में स्थित अखिल जगत की रक्षा करनें वाली देवी के अलावा

माँ कपूरी की स्तुति कौशिकी, कमलाकारा (कमलके समान सुन्दर आकार धारण करनेवाली),
कामचारप्रभञ्जिनी (स्वेच्छाचार का ध्वंस करनेवाली),कौमारी, करुणापाङ्गी (करुणामय कटाक्षसे भक्तों पर कृपा करनेवाली), ककुबन्ता (दिशाओंकी अवसानरूपा), करिप्रिया (जिन्हें हाथी प्रिय है) केसरी, केशवनुता (भगवान् श्रीकृष्णके द्वारा प्रणम्य ,कदम्बकुसुमप्रिया (कदम्बके पुष्पसे प्रेम करनेवाली), कालिन्दी, कालिका, काञ्ची, कलशोद्भवसंस्तुता (अगस्त्यमुनिसे स्तुत होनेवाली) काममाता, क्रतुमती (यज्ञमय विग्रह धारण करनेवाली), कामरूपा, कृपावती कुमारी, कुण्डनिलया (हवन- कुण्डमें विराजने वाली), किराती (भक्तों का कार्य साधन करने के लिये किरात-वेष धारण करनेवाली), कीरवाहना (तोतापक्षीको वाहनरूप रखनेवाली) कैकेयी, कोकिलालापा, केतकी, कुसुमप्रिया, कमण्डलुध (ब्रह्मचारिणीके रूप में कमण्डलु धारण करनेवाली) काली, कर्मनिर्मूलकारिणी (आराधि होनेपर कर्मोंको निर्मूल कर देनेवाली) आदि अनेक स्वरूपों में की जाती है

इन्हें अःकारमनुरूपिणी (अ:कार अर्थात् विसर्गरूप मन्त्रमय विग्रहवाली), कात्यायनी (कात्यायन ऋषि द्वारा उपासित) कालरात्रि (दानवोंके संहारके लिये कालरात्रि के रूप में प्रकट करनेवाली), कामाक्षी (काम को नेत्रों में धारण करनेवाली), कामसुन्दरी (यथेच्छ सुन्दर स्वरूप धारण करनेवाली)
कमला, कामिनी, कान्ता, कामदा, कालकण्ठिनी (कालको अपने कण्ठमें समाहित कर लेनेवाली), करिकुम्भस्तनभरा (हाथीके कुम्भसदृश पयोधरोंवाली), करवीरसुवासिनी (करवीर अर्थात् महालक्ष्मी क्षेत्रमें निवास करनेवाली) कल्याणी, कुण्डलवती, कुरुक्षेत्रनिवासिनी, कुरुविन्ददलाकारा (कुरुविन्ददलके समान आकारवाली), कुण्डली, .कुमुदालया, कालजिह्वा (राक्षसों के संहार के लिये कालरूपिणी जिह्वासे सम्पन्न), करालास्या (शत्रुओंके समक्ष विकराल मुखाकृतिवाली), कालिका, कालरूपिणी, कमनीयगुणा (सुन्दर गुणोंसे सम्पन्न), कान्तिः, कलाधारा (समस्त चौंसठ कलाओं को धारण करने वाली), कुमुद्वती आदि नामों से भी पुकारा जाता है
कुचौली गाँव के निवासी स्व० श्री पूरन चन्द्र पन्त माँ कपूरी देवी के प्रति अपनी भावनाएं प्रकट करते हुए कहा करते थे सम्पूर्ण तीर्थों के स्नान, समस्त यज्ञों की दीक्षा, सभी व्रतों, तपों तथा चारों वेदों के पाठों का पुण्य और पृथ्वी की प्रदक्षिणा- इन सभी साधनों के फल- स्वरूप शक्तिस्वरूपा भगवती माता कपूरी की सेवा सुलभ हो जाती है,
साधना व उपासना करनें वाले साधकों में श्रेष्ठ चिटगल गाँव निवासी स्व० श्री गोविन्द बल्लभ पन्त देवी पीठों में किये जानें वाले यज्ञों को सर्वश्रेष्ठ बताते थे उन्होनें बताया श्रीमद्देवी भागवत में यह उल्लेख है
जिस प्रकार देवताओं में विष्णु, विष्णु भक्तों में नारद, शास्त्रों में वेद, वर्णों में ब्राह्मण, तीर्थों में गंगा, पुण्यात्मा पवित्रों में शिव, व्रतों में एकादशी, पुष्पों में तुलसी, नक्षत्रों में चन्द्रमा, पक्षियों में गरुड, स्त्रियों में मूलप्रकृति; राधा; सरस्वती तथा पृथिवी, शीघ्रगामी तथा चंचल इन्द्रियों में मन, प्रजापतियों में ब्रह्मा, प्रजाओं में राजा, वनों में वृन्दावन, वर्षों में भारतवर्ष, श्रीमान् लोगों में श्री, विद्वानों में सरस्वती, पतिव्रताओं में भगवती दुर्गा और सौभाग्यवती श्रीकृष्ण-भार्याओं में राधा सर्वोपरि हैं, उसी प्रकार समस्त यज्ञों में देवीयज्ञ श्रेष्ठ है यहाँ किये जानें वाला यज्ञ समस्त मनोरथों को पूर्ण करता है

कमस्यार घाटी के कपूरी गाँव के पर्वत की ऊँची चोटी पर गुफा में विराजमान प्रकृति देवी माँ भगवती की जो-जो कलाएँ प्रकट हुईं, वे सभी पूजित हैं। दूर दराज क्षेत्रों से लोग यहाँ पहुंचकर पूजा अर्चना करते है

पुराणों में वर्णित है प्रकृति की गोद में स्थित इस तरह की देवियों का सबसे बड़ा सम्मान नारी का सम्मान है इसलिए जो मनुष्य नारी जाति का हृदय से सम्मान करता है वह कपिला अर्थात् कपूरी देवी की कृपा का भागी बनता है
*🌹☘️कलांशांशसमुद्भूताः प्रतिविश्वेषु योषितः ॥ योषितामवमानेन प्रकृतेश्च पराभवः । ब्राह्मणी पूजिता येन पतिपुत्रवती सती ॥ प्रकृतिः पूजिता तेन वस्त्रालङ्कारचन्दनैः । कुमारी चाष्टवर्षीया वस्त्रालङ्कारचन्दनैः ॥ पूजिता येन विप्रस्य प्रकृतिस्तेन पूजिता । सर्वाः प्रकृतिसम्भूता उत्तमाधममध्यमाः ॥*

जो-जो ग्रामदेवियाँ हैं, वे सभी प्रकृति की कलाएँ हैं । देवी के कलांश का अंश लेकर ही प्रत्येक लोक में स्त्रियाँ उत्पन्न हुई हैं। इसलिये किसी नारी के अपमान से प्रकृति का ही अपमान माना जाता है । जिसने वस्त्र, अलंकार और चन्दन से पति-पुत्रवती साध्वी ब्राह्मणी का पूजन किया; उसने मानो प्रकृति देवी का ही पूजन किया है। इसी प्रकार जिसने आठ वर्षकी विप्रकन्याका वस्त्र, अलंकार तथा चन्दन से पूजन सम्पन्न कर लिया, उसने स्वयं प्रकृति देवीकी पूजा कर ली। उत्तम, मध्यम अथवा अधम-सभी स्त्रियाँ प्रकृति से ही उत्पन्न होती हैं ॥
*कपूरी की माँ भगवती की सुन्दर स्तुति में कहा गया है सभी मंगलों का भी मंगल करने वाली, सबका कल्याण करने वाली, सभी पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतजनों की रक्षा करने वाली तथा तीन नेत्रों वाली हे गौरि ! माँ कपूरी आपको नमस्कार है*

कुल मिलाकर कपूरी गांव की चोटी में सुन्दर पर्वत की गुफा में विराजमान माँ भगवती की महिमा का वर्णन कर पाने में इस वसुंधरा में कोई भी समर्थ नहीं है क्योंकि भक्तजन इन्हें वसुंधरा देवी भी कहते है यहां देवी कब वह किस प्रकार प्रकट हुई इस बारे में कोई स्पष्ट उल्लेख तो नहीं है किंतु इतना जरूर है कि कमस्यार घाटी के महा रहस्यों में यह एक ऐसा परम रहस्य है जिसे सजाने और संवारने की प्रबल आवश्यकता है तीर्थाटन की दृष्टि से यह क्षेत्र पूर्णतया उपेक्षित है क्योंकि इस घाटी पर विराजमान देवी-देवताओं शक्तिपीठों की अपनी एक अलग ही महिमां पुराणों ने गाई है भगवती द्वारा यहां के निकटतम पहाड़ियों में ही दैत्यों का संहार किया गया इन क्षेत्रों में माँ ने विश्राम किया और यही क्षेत्र मां जगदंबा के परम पूजनीय स्थलों में एक है माँ भद्रकाली मंदिर समिति के संरक्षक योगेश पंत , योगाचार्य मोहन सिंह बिष्ट एवं सामाजिक कार्यकर्ता महेश राठौर ने कहा कि यदि इस तीर्थ का समुचित विकास किया जाए तो यह स्थल अपने आप में एक अदितिय अलौकिक स्थल के रूप में जगत में प्रसिद्ध होगा
माँ भगवती का इस दरबार से माँ भद्रकाली मन्दिर तक डोला चलनें की बात भी कही जाती है यह स्थान जनपद बागेश्वर के कमस्यार घाटी में है यहाँ पहुंचने के लिए एक रास्ता बास पटान पुल से तथा दूसरा रास्ता बागेश्वर से हवनतोली भद्रकाली होते हुए है
*🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹@ रमाकान्त पन्त शेष जारी*

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