लालकुआं में आयोजित होने जा रही श्री रामलीला के मंचन में ये प्रसिद्ध कथावाचक देंगें तबले पर ताल

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हल्द्वानी / अपनी सुधामयी वाणी की धार से श्रीमद्भागवत कथा व अन्य पुराणों का सुंदर शब्दों में वाचन करने वाले उत्तराखण्ड़ के प्रसिद्ध कथावाचक शास्त्री श्री नवीन चंद्र पांण्ड़ेय जी को संगीत के क्षेत्र में भी महारथ हासिल है। तबला वादक के रूप में उनकी समूचे राज्य में एक विशेष पहचान है।

सनातन संस्कृति से आपार प्रेम रखने वाले शास्त्री जी को लोग आदर पूर्वक श्री राम लीला के मंचन में तबला वादन के लिए खासतौर से आमंत्रित करते है। इनके तबले की ताल कलाकारों में गजब के उत्साह का संचार करती है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में श्रीराम लीला मंचन के अवसरों पर तबले पर अपनी जबरदस्त कौशलता का प्रदर्शन कर चुके शास्त्री श्री नवीन चन्द्र पाण्डेय विगत कुछ वर्षों से लालकुआं शहर में आयोजित होने वाली श्रीराम लीला के मंचन में अपनी कला का हुनर दिखा रहे हैं। इस वर्ष भी 22 सितम्बर से नगर में आयोजित होने जा रही श्री राम की लीला के मंचन स्थल पर श्री शास्त्री जी के तबले की गूंज रहेगी

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श्री राम कार्यों के प्रति उनके हृदय में जबरदस्त समर्णण का भाव है। वे इन दिनों हल्द्वानी से प्रतिदिन लालकुआँ पहुंचकर कलाकारों के प्रशिक्षण में अपना अमूल्य सहयोग प्रदान कर रहे हैं। मूल रुप से उत्तराखंड के संस्कृतिक पहचान में अपना गौरवमयी स्थान रखनें वाले ग्राम पीपलटाडा पोस्ट मनेला जिला अल्मोड़ा के रहनें वाले शास्त्री जी वर्तमान समय में मानस विहार कुसुमखेड़ा के पास हल्द्वानी में रहते हैं । इनके पिता स्व० आनन्द बल्लभ पाण्डेय देश के नामी संगीतज्ञों में एक थे। सांरगी, हारमोनियम, व तबले की उन्हें विशेष जानकारी होनें के कारण उन्हें संगीत प्रभाकर की उपाधी प्राप्त थी। *पिता से प्राप्त सांस्कृतिक विरासत को आगे बढते हुए शास्त्री जी ने तबला वादन के क्षेत्र में विशेष रूप से उत्तराखंड में बहुत अच्छा नाम कमाया है। अपने पिता को अपना आदर्श मानने वाले संपूर्णानंद विश्वविद्यालय वाराणसी से एम० ए० बी० एस० यू० की शिक्षा प्राप्त करने वाले व महावीर विश्वविद्या पीठ दिल्ली से बी० एड० की शिक्षा ग्रहण कर चुके शास्त्री श्री नवीन चंद्र पाण्डेय कहते हैं , कि देवभूमि उत्तराखंड का देवत्व अतुलनीय है ।यहां के सांस्कृतिक विरासत को सही तरीके से आगे बढ़ाने के लिए वर्तमान में संगीत की शिक्षा हर एक के लिए नितांत आवश्यक है क्योंकि संगीत का जन्म ही उत्तराखंड की धरती पंचप्रयागों में से एक रुद्रप्रयाग में हुआ है। इस विषय में केदारखंड में संगीत की शिक्षा का विराट वर्णन मिलता है। बारहाल इस वर्ष भी उनके तबले की ताल लालकुऑ में आयोजित श्री राम लीला में श्रीराम के कार्यों को समर्पित होगी