प्रयागराज में स्थित माँ ललिता देवी शक्तिपीठ प्राचीन काल से परम पूज्यनीय है देश के तमाम पावन शक्तिपीठों में इस शक्तिपीठ की गणना प्रमुखता के साथ की जाती है देश व दुनियां से प्रयाग पधारने वाले भक्तजन यहां पहुंच कर माँ ललिता के दर्शन करके अपने जीवन को धन्य समझते हैं देवी भागवत में भी इस तीर्थ का जिक्र बड़े ही सुनहरे शब्दों में किया गया है
*प्रयागे ललिता प्रोक्ता कामुकी गन्धमादने । मानसे कुमुदा प्रोक्ता दक्षिणे चोत्तरे तथा*
इन्हे प्रयाग में ‘ललिता’ तथा गन्धमादन पर्वत ‘कामुकी’ नाम से कहा गया है। ये दक्षिण मानसरोवरों में कुमुदा तथा उत्तर मानसरोवर में सभी कामनाएं पूर्ण करने वाली भगवती ‘विश्वकामा’ कही गयी हैं। इन्हें गोमन्त पर देवी ‘गोमती’, मन्दराचल पर ‘कामचारिणी’ चैत्ररथ में ‘मदोत्कटा’, हस्तिनापुर में ‘ जयन्ती’ कान्यकुब्ज में ‘गौरी’ तथा मलयाचल पर ‘रम्भा’ कहा गया है
माँ ललिता भगवती एकाम्रपीठ पर ‘कीर्तिमती’ नामवाली कही गयी हैं। लोग उन्हें विश्वपीठ पर ‘विश्वेश्वरी’ और पुष्करमें ‘पुरुहूता’ नाम से पुकारते है
ललिता देवी को केदारपीठ में ‘सन्मार्गदायिनी’, हिमवत्पृष्ठपर ‘मन्दा’, गोकर्ण में ‘भद्रकर्णिका’, स्थानेश्वर में ‘भवानी’ बिल्वक में ‘बिल्वपत्रिका’, श्री शैलमें ‘माधवी’ तथा भद्रेश्वरमें ‘भद्रा’ कहते हैं
वराह पर्वतपर ‘जया’, कमलालय में ‘कमला’, रुद्रकोटि में ‘रुद्राणी’, कालंजर में ‘काली’, शालग्राम में ‘महादेवी’, शिवलिंग में ‘जलप्रिया महालिङ्गमें ‘कपिला’ और माकोटमें ‘मुकुटेश्वरी’ कहा गया है
भगवती मायापुरी में ‘कुमारी’, सन्तानपीठ में ‘ललिताम्बिका’, गया में ‘मंगला’ और पुरुषोत्तम क्षेत्र में ‘विमला’ कही गयी हैं। वे सहस्राक्षमें ‘उत्पलाक्षी’, हिरण्याक्षमें ‘महोत्पला’, विपाशामें ‘अमोघाक्षी’, पुण्ड्रवर्धनमें ‘पाडला’, सुपार्श्वमें ‘नारायणी’, त्रिकूटमें ‘रुद्रसुन्दरी’, विपुलक्षेत्रमें ‘विपुला’, मलयाचलपण देवी ‘कल्याणी’, आदि अनन्त नामों से विभिन्न स्थानों पर इनकी स्तुति होती है
प्रयागराज के प्राचीन शक्ति स्थलों में माँ ललिता देवी पावन आस्था का केन्द्र है प्रयागराज तीर्थ को सभी तीर्थों में सर्वोत्तम माना गया है इस तीर्थ नगरी में स्थित माँ ललिता देवी भी भगवती की विराट महा शक्तियों में एक है यह मंदिर देवी के प्रमुख इकावन शक्तिपीठों में एक है 51 शक्ति पीठों में इसकी गणना होती है प्रयागराज मीरापुर में स्थित भगवती के इस दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है यहां पर प्रतिदिन हजारों भक्त माँ के दर्शन को पधारते है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दक्ष प्रजापति के यज्ञ में माँ सती ने भगवान शिव का सम्मान न होने पर योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर डाला जब शिव गणों ने शिवजी को यह समाचार सुनाया तो क्रोधित शिव ने अपनी जटाओं से भद्रकाली व वीरभद्र को प्रकट किया जिन्होंने दक्ष के यज्ञ को विध्वंस कर डाला और दक्ष प्रजापति के शीष की आहुति दे डाली बाद में भगवान विष्णु की प्रार्थना पर दक्ष को जीवन दान दिया
शिवजी माता सती के विरह में व्याकुल हो उठे और माँ सती की देह को लेकर आकाश मार्ग का भ्रमण करने लगे
विष्णु भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए देवी सती के शरीर के अंग जिन-जिन स्थानों पर गिरे वहां पर देवी के शक्ति पीठ बने मान्यता है कि यहाँ माँ की अंगुली गिरी जिस कारण यह स्थल परम पूज्यनीय हुआ
माँ देवी ललिता त्रिपुर सुंदरी का ही स्वरूप कही जाती है इनकी चार भुजा और तीन नेत्र हैं। इनमें षोडश कलाएं पूर्ण है इसलिए इन्हे षोडशी कहकर भी पुकारा जाता है।
@ रमाकान्त पन्त



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