भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा जो भारत और बांग्लादेश में कुल मिलाकर 2510 किमी की दूरी तय करती हुई उत्तराखंड में हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी के सुंदरवन तक विशाल भू भाग को सींचती है, देश की प्राकृतिक संपदा ही नहीं, जन जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2071 कि.मी तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के कारण भी जाना जाता है। 100 फीट (31 मीटर) की अधिकतम गहराई वाली यह नदी भारत में पवित्र मानी जाती है तथा इसकी उपासना माँ और देवी के रूप में की जाती है। भारतीय पुराण और साहित्य में अपने सौंदर्य और महत्व के कारण बार-बार आदर के साथ वंदित गंगा नदी के प्रति विदेशी साहित्य में भी प्रशंसा और भावुकतापूर्ण वर्णन किए गए हैं।
वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस असीमित शुद्धिकरण क्षमता और सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसका प्रदूषण रोका नहीं जा सका है।आलम यह है कि इसे रोकने में सरकारी तंत्र का रवैया भी सुस्त है। तभी तो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने मौखिक रुप से टिप्पणी करते हुए कहा है कि महाकुंभ मेले में करोड़ों लोग आते हैं, अगर सीवेज के मल-जल को गंगा में गिरने से नहीं रोका गया तो लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा।
गंगा बेसिन का लगभग 79 फीसदी क्षेत्र भारत में है। बेसिन में 11 राज्य शामिल हैं, जैसे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली। गंगा बेसिन से जुड़े सवालों को लेकर गंगा मुक्ति आंदोलन की ओर से बिहार के मुजफ्फरपुर के चंद्रशेखर भवन ,मिठनपुरा में ” गंगा बेसिन : समस्याएं एवं समाधान” विषयक राष्ट्रीय विमर्श में जुटे देश के आठ राज्यों और नेपाल के प्रतिनिधियों ने एकजुट होकर गंगा के सवाल पर देशव्यापी अभियान चलाने का संकल्प लिया। राष्ट्रीय विमर्श के केन्द्र में नदियों का गाद से पेट भरना , प्रदूषण ( औद्योगिक और नगरीय कचरा ) पानी की कमी , बालू उठाव और खनन , नदी की जैव विविधता, ग्लेशियर का पिघलना , जलवायु संकट , कार्बन उत्सर्जन , पारिस्थितिकी असंतुलन , औद्योगिक क्रांति से पनपे विकास की विनाशकारी अवधारणा और जल जंगल जमीन पर जीने वाले समुदाय का अधिकार रहे। कार्यक्रम में ऑन लाइन जुड़कर आईआईटी कानपुर के प्रो. डॉ.राजीव सिन्हा , बीबीसी के चर्चित पत्रकार रहे राम दत्त त्रिपाठी, पूर्व सांसद एवं चौथी दुनिया के संपादक संतोष भारतीय , बिहार सरकार में अपर मुख्य सचिव रहे व्यास जी एवं विजय प्रकाश , उत्तराखंड के नदी कर्मी सुरेश भाई सहित तमाम लोगों की चिंता इस बात को लेकर रही कि आखिर विनाश का खेल कब तक जारी रहेगा। उत्तराखंड के सुरेश भाई का कहना था कि मध्य हिमालय में स्थित गौमुख ग्लेशियर में हो रहे बदलाव को समझना बहुत जरूरी है। समय रहते यदि इसके चारों ओर के पर्यावरण संरक्षण और संयमित विकास पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाले दिनों में बहुत बड़ी समस्या पैदा हो सकती है। उत्तराखंड में गंगा के उद्गम आपदा और जलवायु परिवर्तन के चलते बुरी तरह प्रभावित हैं। इस भयानक स्थिति के बाद भी गंगा की एक महत्वपूर्ण धारा भागीरथी के उद्गम से ही गंगा की निर्मलता को लेकर एनजीटी ने बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। दूसरी बात है कि भागीरथी के उद्गम में लाखों देवदार के पेड़ों पर संकट की तलवार लटक रही है। यहां चौड़ी सड़क बनाने के लिए घने देवदार के जंगल को काटने की तैयारी चल रही है । इस विषय को तो राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बनाया जाना ही चाहिए और एक बार फिर देशवासी उद्गम से लेकर देश में जहां-जहां से गंगा बह रही है उन तमाम राज्यों से हो रहे प्रदूषण, अतिक्रमण, शोषण के खिलाफ एक बार फिर से “नदी बचाओ अभियान” की तर्ज पर एकत्रित होकर आवाज बुलंद करना चाहिए।
पूर्व सांसद अली अनवर का कहना था कि गंगा का सवाल धार्मिक मामला नहीं है, जिसका राजनीतिक दोहन किया जा रहा है, बल्कि यह सांस्कृतिक मामला है। धार्मिक भावनाओं का शोषण करने के लिए राजनीतिक दल के लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। नमामि गंगे योजना के नाम पर पिछले 10 साल से लूट मची है। यह योजना एक तरह से फेल है। पैसे भ्रष्टाचारियों व ठेकेदारों की जेब में जा रहे हैं। यकीनन यह सब गंगा को मारने की योजना है। विकास का विद्रूप चेहरा जो सभ्यता और संस्कृति की पावन धारा में सड़ांध पैदा करने से बाज़ नहीं आता। इस विकास का लक्ष्य गंगा की पवित्रता और अविरलता सुनिश्चित करना नहीं है, बल्कि इसकी निगाहें गंगा सफाई के लिए आवंटित बजट की बंदरबांट पर ही ज्यादा टिकी है।
गंगा एक संस्कृति का नाम हैं इसलिए गंगा की लड़ाई संस्कृति बचाने की लड़ाई हैं। गंगा मुक्ति आंदोलन के संस्थापक अनिल प्रकाश कहते हैं कि गंगा की हत्यारी आधुनिक विकास की नीति हैं। दिल्ली के पत्रकार प्रसून लतांत कहते हैं कि योजनाएं जब तक जनता की अपेक्षा के प्रतिकूल होगी तो यही होगा। गंगा या नदी घाटी की सभ्यता को बचाने के प्रयास तभी सार्थक होंगे, जब गंगा पर आश्रित समुदाय से विमर्श कर योजनाएं बने। मधुपुर झारखंड़ के पर्यावरणविद सामाजिक कार्यकर्ता घनश्याम जी की चिंता बांधों को लेकर है, उनके अनुसार अमेरिका के केनंसी वैली के तर्ज पर कोलकाता बंदरगाह को साफ़ करने के लिए दामोदर को बांधा गया, तत्पश्चात फरक्का बराज बनाया गया। फरक्का बराज का विरोध उस वक्त इंजीनियर कपिल भट्टाचार्य ने किया था । गंगा मुक्ति आंदोलन के प्रणेता अनिल प्रकाश ने गंगा समेत अन्य नदियों को दोहन से बचाने के लिए बड़े आंदोलन का आह्वान किया साथ ही कहा कि जब दूसरे देश में बांध तोड़े जा रहे हैं, तब वहीं आज भारत में विश्व बैंक से कर्ज लेकर बांध पर बांध बनने को हरी झंडी दी जा रही है। इसके मूल में राजनेता, नौकरशाही और ठेकेदारों का गठजोड़ है। सारा खेल कमीशन का है। इसके कारण पूरी व्यवस्था भ्रष्टाचार में लिप्त है। क्या कारण है कि बांधों के सवाल पर सरकारी कमेटी में शामिल विशेषज्ञों की राय को नजर अंदाज किया जा रहा है।
कार्यक्रम में राजस्थान महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, भागलपुर, कहलगांव एवं नेपाल के दर्जनों ऐसे लोग शामिल हुए, जो पर्यावरण, नदी, जल-जंगल-जमीन को लेकर काम कर रहे हैं। इस मौके पर वीरेंद्र क्रांति वीर, हेमलता महस्के, अखिलेश कुमार, कृष्ण कुमार माढ़ी, आदित्य सुमन, गणेश, राजा राम सहनी, चंदेश्वर राम, बागमती संघर्ष मोर्चा से नवल किशोर सिंह, ठाकुर देवेंद्र, डॉ संतोष सारंग, जगरनाथ पासवान, राम एकबाल राय, अरविंद, कृष्णा प्रसाद, डॉ नवीन झा, श्याम नारायण यादव, राजीव, शाहिद कमाल ने शिरकत की। साथ ही फैसला लिया गया कि 22 फरवरी 2025 को गंगा मुक्ति आंदोलन के वर्षगांठ पर कागजी टोला कहलगांव , भागलपुर में पुनः देश भर से परिवर्तनवादी जुटेंगे और आगे की योजना बनाएंगे । गंगा मुक्ति आंदोलन ने कई मुद्दों के साथ बिहार की नदियों में फ्री फिशिंग एक्ट बनाने के आंदोलन को तेज करने का निर्णय लिया है। 1990 में बिहार सरकार ने पारंपरिक मछुआरों को नदी में निःशुल्क मछली पकड़ने का अधिकार दिया था , जिसे छल और फरेब से अब शिथिल किया जा रहा है। बिहार में अभी स्पेशल जमीन सर्वे भी चल रहा है। नदियों की जमीन का सीमांकन (चौहद्दी ) और रकबा निर्धारित करने को लेकर अभियान चलाने की बात कही गयी। इसके साथ ही संकल्प लिया गया कि गंगा की अविरलता और निर्मलता बहाली के लिए,गाद के स्वाभाविक निदान के लिए फरक्का बराज को खोलने सहित सभी बांध बराज तटबंध को खत्म कर नदियों की प्राकृतिक अवस्था बहाल करने और किसी भी प्रकार का प्रकृति के साथ छेड़छाड़ न करने के विरुद्ध अभियान जारी रहेगा।
(कुमार कृष्णन -विनायक फीचर्स)
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