तीर्थाटन का प्रमुख केन्द्र बन सकता है ऊधाणेश्वर महादेव, शिव भक्त सूबेदार केदार सिंह व निक्की मेहरा की मेहनत से निखरा यहां का आध्यात्मिक रंग

ख़बर शेयर करें

 

गंगावली का गौरव कहे जाने वाला चिटगल धाम के पावन तीर्थ स्थल उधाणेश्वर महादेव को विकसित करने के लिए हर संभव होने चाहिए चिटगल गाँव व जीबल गाँव की परिधी में अनेक ऐसे पावन पौराणिक तीर्थ स्थल मौजूद है,जिनका आध्यात्मिक महत्व सदियों पुराना है, देवताओं के मामा श्री श्री1008 सागरीय सैम देवता का प्राचीन मंदिर जहाँ चिटगल गाँव की शोभा है वही छुरमल देवता का मंदिर प्राचीन काल से पूजनीय स्थल है चिटगल के सैम मंदिर के भीतर स्वयंभू पिण्ड़ी के रूप में यहां उनकी पूजा होती है। गुसाणी देवी की यह मूल जन्म भूमि है।इसी भूमि पर जन्म लेकर गुसाणी माता ने अपनी लीला संसार में बिखेरी इन सबके अलावा अनेक लोक देवताओं की विरासत को समेटे चिटगल व जीबल की सरहद में उधाणेश्वर महादेव जी भी विराजमान है।वियावान वनों के मध्य नीले गगन के तले बाँज के बृक्ष की छाव में खुले आकाश के नीचे पर्वत की चोटी पर स्थित उधाणेश्वर की महिमां को स्थानीय शिव भक्त अपरम्पार बतातें है। हालांकि अब जीबल गांव के लोगों ने यहाँ पर भव्य मंदिर का निर्माण कर दिया है
पवित्र पहाड़ो की चोटी में स्थित भगवान भोलेनाथ की इस पिण्ड़ी के दर्शन का महत्व भक्तजन सर्वसौभाग्य का उदयीकरण मानतें है क्षेत्र के वरिष्ठ समाज सेवी दिलीप सिंह महर ने कहा कि पर्यटन एंव तीर्थाटन की दृष्टि से यहां के विकास के लिए हर सभंव प्रयास होने चाहिए क्षेत्र में तीर्थाटन की अपार सभांवनाए है। सभी पौराणिक महत्व वाले तीर्थों स्थलों को सूचीबद्व कर विकासित करनें के प्रयास किये जाएं तो यहां के पावन स्थल तीर्थाटन के प्रमुख केन्द्र बन सकते है
गौरतलब है, कि यहीं से जीबल व पाताल भुवनेश्वर के वनों की शरहद शुरु होती है। दुर्गम वनों की श्रृखलां के मध्य चोटी पर पहुंचकर इस पिण्ड़ी के दर्शन होते है। गुप्तड़ी पाताल भुवनेश्वर मार्ग पर टुपई की घाटी से एक मार्ग चिटगल गाँव को दूसरा मार्ग जीबल को जाता है , यहीं से उधाणेश्वर की पहाड़ी शुरु होती है।यहां तक पहुंचनें का अब मार्ग निर्मित हो चुका है उल्लेखनीय है, कि सुन्दर सोभायमान चोटी पर पहुंचकर भव्य मंदिर के भीतर ऊधाण के दर्शन होते है।ऊंचाई पर स्थित होनें के कारण यहां से चारों ओर का वातावरण बड़ा ही मनोरम लगता है। यहां पहुचकर आत्मा दिव्य लोक का अनुभव करती है। इस दुर्गम स्थल के बारे में किवदंती है। कि यहां अदृश्य रुप से सिद्धयोगी जन साधनारत है। जिनके दर्शन किसी सौभाग्यशाली बिरलें मनुष्य को ही होतें है। कहा जाता है कि वर्षों पूर्व चिटगल गाँव की एक महिला यहां के जगंल में घास काटने गयी उसके साथ में उसका छोटा बच्चा भी पिछे पिछे चल पड़ा वियावान जगंल में माँ और बेटे दोनों बिछुड़ गये घर पहुंचकर महिला ने रोते बिलखते अपने परिजन व गाँव वालों को बच्चे के बिछड़ने की ब्यथा बताई काफी ढूढ़ खोज के बाद भी बच्चें का पता नहीं चला थकहार कर उदास बैठै ग्रामीणों ने समझ लिया कि किसी जगंली जानवर ने बालक को अपना निवाला बना लिया होगा। एक के बाद एक दिन ब्यतीत होनें के बाद ग्रामीणों ने जगंल में पुनः खोज प्रारम्भ की तो भरी दोपहरी में उपरोक्त शिव पिण्ड़ी के पास बालक रोता मिला परिजनों व ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नही रहा उन्हें अपनी आखों पर विश्वास नहीं हुआ अचम्भित परिजन व गाँव वाले यह नहीं समझ पा रहे थे। आखिर वह कौन सी शक्ति थी जिसके बल पर खूखांर जंगली जानवरों से घिरे भयावह जंगल में बालक जीवित बच गया ।बाद में जब उस छोटे बच्चे से पूछा गया। कि वह इस जगंल में कैसै रहा तो उसने भोलेपन अदांज में बताया कि यहां पर मुझे एक बाबाजी यहां पर खीर खिलाते थे मेरे साथ खेलते थे इस प्रकार अनेक प्रकार की रहस्य भरी बातें बतानें के पश्चात् लोगों का हृदय बाबा उधाणेश्वर के प्रति श्रद्वा से भर आया आस्था, श्रद्वा, व भक्ति का सगंम ऊधाणेश्वर का इतिहास अनजान है।इस स्थान पर शिव पिण्ड़ी कैसै प्रकट हुई या कहा से आयी यह सब अज्ञात है। पुराणों में यहां के पर्वत दारूगिरी के नाम से प्रसिद्ध है।यदि उधाणेश्वर में बेहतर सुविधाएं हो जाएं तो इस स्थान को तीर्थाटन के रूप में विकसित किया जाए तो यह स्थान आध्यात्म की महान् धरोहर बनकर ऊभर सकता है। ऊधाणेश्वर की निचली पहाड़ी** पर शिव के अशांवतार सैम देवता का प्राचीन मंदिर चिटगल गाँव में है वही जीबल में चोटी पर छुरमल देवता विराजमान है चिटगल में यहां स्वंयभू पिण्ड़ी के रूप में सैम देवता की पूजा प्राचीन काल से होती आयी है इसी के समीपस्त पहाड़ी पर
इस गांव की मुख्य देवी गुस्याणी देवी है। इनके पिता हीरामणी दादा वशिष्ठ व परदादा व्यास जी थे। कहा जाता है* कि जब गंगोली क्षेत्र में राजाओं का राज था उस दौर में गुस्याणी का जन्म हुआ। राज कर की झंझावत में बालपन में ही गंगोलीहाट-जजुट पैदल मार्ग पर मणकोट के पत्थर में इन्हें जोरदार तरीके से पटका गया। मणकोट के पत्थर पर पछेटी गयी इस देवी के प्रतीक चिन्ह आज भी उस पत्थर पर देखा जा सकता है। मान्यता है कि पत्थर पर पछेटी जाने के बाद गुस्याणी अदृश्य हो गयी। प्रतीक पत्थर पर शेष रह गया और बाद में समूचे क्षेत्र में हाहाकार मच गया। महाकालिका के आंचल में हुई इस अन्याय भरी अकाल अबोध मौत को शायद महाकाली भी बर्दाश्त नहीं कर सकी और गंगावली घाटी त्राहिमाम हो उठी। बाद में इन्हीं देवी की कृपा से क्षेत्र में आयी विपदाएं शांत हुई और इन्हें देवी के रूप में पूजा जाने लगा। इस विषय पर बहुत लम्बी दंत कथा है जिसे स्थानीय लोगों के मुंह से सुना जा सकता है।कहा गया है।
*जैसै सतियों में माता पार्वती श्रेष्ठ़ है,देवताओं में विष्णु,सरोवरों में समुद्र,नदियों में गंगा,योगियों में याज्ञवल्क्य,भक्तों में नारद,शिलाओं में वैष्णवी शालग्रामशिला,वनों में वदरीवन,धेनुओं में कामधेनु,मनुष्यों में विप्र,विप्रों में ज्ञानदाता,स्त्रियों में पतिव्रता,प्रियों में पुत्र,पदार्थों में सुवर्ण ,मुनियों में शुकदेव,सर्वज्ञों में व्यास देव ,देशो में भारत,मनुष्यों में राजा,देवताओं में इन्द्र ,वसुओं में कुबेर,पुरियों में कैलाशपुरी,अप्सराओं में रम्भा,गन्धर्वो में तुम्बरू,क्षेत्रों में केदार,व पर्वतों में हिमालय,हिमालय में गंगावली श्रेष्ठ है*

ऊधाणेश्वर महादेव में मंदिर का निर्माण करने में जीबल गाँव के सूबेदार केदार सिंह व निक्की मेहरा ने जी तोड़ मेहनत की इनकी श्रद्धा व भक्ति ने ही यहाँ भव्यता प्रदान की

Ad