उत्तराखण्ड के पर्वतीय और तराई क्षेत्रों में वन्य मानव–वन्य जीव संघर्ष लगातार बढ़ता जा रहा है। पहाड़ों की शांत वादियों में इस संघर्ष ने लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित कर दिया है। गांवों के आसपास जंगली जानवरों की बढ़ती सक्रियता ने न केवल जन–जीवन को खतरे में डाला है, बल्कि किसानों की आजीविका और पशुधन पर भी गहरा असर छोड़ा है।
बाघ–तेंदुए का खतरा बढ़ा, ग्रामीणों में दहशत
पिछले कुछ महीनों में राज्य के कई इलाकों — नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत और पौड़ी — से तेंदुए व बाघ के हमलों की घटनाएँ सामने आई हैं। कई गांवों में शाम होते ही लोग घरों में कैद हो जाते हैं। पशुधन पर हमले बढ़े हैं और कई जगह जनहानि की घटनाएँ भी दर्ज हुई हैं।
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि जंगलों में भोजन की कमी और निरंतर बदलती जलवायु के कारण वन्य जीव अब बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं।
एक ग्रामीण ने बताया, “रात तो दूर, दिन में भी तेंदुए गांव की गलियों में दिख जाते हैं। बच्चों और बुजुर्गों को बाहर निकलना मुश्किल हो गया है।”
हाथियों का आतंक — तराई क्षेत्रों की बड़ी समस्या
तराई के क्षेत्रों — लालकुआँ, हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर और रुद्रपुर — में वन्य हाथियों का आतंक लगातार बढ़ रहा है। हाथियों के झुंड अक्सर खेतों में घुसकर फसलें नष्ट कर देते हैं। कई ग्रामीणों के घर और झोपड़ियाँ भी हाथियों द्वारा नुकसान पहुँचाए जाने की खबरें आती रहती हैं।
वन विभाग के अनुसार, हाथियों के पारंपरिक मार्ग (कॉरिडोर) बाधित होने और मानवीय गतिविधियों के विस्तार के कारण संघर्ष की घटनाएँ बढ़ी हैं।
मानवीय विस्तार और जंगलों की सिकुड़न — संघर्ष का मूल कारण
विशेषज्ञों के अनुसार वन्य जीव–मानव संघर्ष के पीछे मुख्य कारण हैं—
अनियंत्रित शहरीकरण और सड़क निर्माण
वन क्षेत्रों में बढ़ती मानव पहुंच
भोजन और पानी की कमी से वन्य जीवों का स्थानांतरण
जलवायु परिवर्तन से आवासीय क्षेत्र बदलना
इन कारणों से जंगली जानवर अपने प्राकृतिक आवासों से विस्थापित होकर मानव बस्तियों की ओर बढ़ने को मजबूर हो रहे हैं।
वन विभाग की चुनौतियाँ और प्रयास
वन विभाग ने कई प्रभावित क्षेत्रों में—
● पिंजरे लगाना
● रेस्क्यू टीमें सक्रिय रखना
● रात्रिकालीन गश्त
● सोलर फेंसिंग
● चेतावनी बोर्ड
जैसे कदम उठाए हैं।
लेकिन पहाड़ी इलाकों की भौगोलिक कठिनाइयों के कारण बड़े स्तर पर समाधान अभी भी चुनौती बना हुआ है।
स्थानीय जनता ने की सशक्त वैकल्पिक व्यवस्था की माँग
ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग और स्थानीय प्रशासन को—
सुरक्षित पशु–मार्ग (कॉरिडोर)
गांवों में मजबूत फेंसिंग
क्षतिपूर्ति प्रक्रिया को त्वरित बनाने
आधुनिक निगरानी तकनीक
ग्रामीणों के लिए सुरक्षा प्रशिक्षण
जैसे कदम तुरंत उठाने चाहिए।
समस्याओं के बीच उम्मीद की किरण
सरकार और वन विभाग द्वारा संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार, तकनीकी हस्तक्षेप और वन्य जीव प्रबंधन योजनाओं पर काम किया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि वैज्ञानिक प्रबंधन और सामुदायिक सहभागिता को मजबूत किया जाए, तो उत्तराखण्ड इस संघर्ष को काफी हद तक कम कर सकता है।
वन्य मानव संघर्ष केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि एक मानवीय और सामाजिक मुद्दा भी है। इसका समाधान प्रकृति, वन्य जीव और मानव—तीनों के संतुलित सह-अस्तित्व में ही निहित है।
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